20.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

छह माह के पीएम कार्यकाल में बनाया सिद्धांतों का एवरेस्ट

बलिया : अगर हौसला नहीं होगा तो कोई फैसला नहीं होगा,सब अपने भले की सोचेंगे तो किसी का भला नहीं होगा…उत्तर प्रदेश के अंतिम छोर पर बसे बलिया के आखिरी छोर इब्राहिमपट्टी गांव में जन्में भारतीय राजनीति के उस मनीषी का यह कथन है जिसमें प्रधानमंत्री पद के अपने छह माह के अल्प कार्यकाल में […]

बलिया : अगर हौसला नहीं होगा तो कोई फैसला नहीं होगा,सब अपने भले की सोचेंगे तो किसी का भला नहीं होगा…उत्तर प्रदेश के अंतिम छोर पर बसे बलिया के आखिरी छोर इब्राहिमपट्टी गांव में जन्में भारतीय राजनीति के उस मनीषी का यह कथन है जिसमें प्रधानमंत्री पद के अपने छह माह के अल्प कार्यकाल में सिद्धांतों का एक ऐसा एवरेस्ट बनाया जो आज भी भारतीय राजनीति में उसी तरह मजबूती से टिका है. आज उसी मनीषी की 93वीं जयंती है और कृतज्ञ देश उन मनीषी को आज श्रद्धासुमन अर्पित कर रहा है.

जी हां हम बात कर रहे हैं पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की जिसमें राजनीति के फर्श से अर्श तक का सफर तय किया और अपने सिद्धांतों पर चट्टान की तरह डिगे रहे. पूर्व प्रधानमंत्री अपने सिद्धांतों के अनुपालन में इस कदर कट्टर थे कि जब प्रधानमंत्री पद से त्याग पत्र देने की घोषणा के बाद राजीव गांधी ने उन्हें पत्र लिखा तो चंद्रशेखर ने उस पत्र के पीछे यह लिखकर पत्र वापस कर दिया कि एवरेस्ट पर लोग झंडा फहराने जाते है घर बनाने नहीं. चंद्रशेखर के इसी लड़ाकूपन और जुझारू व्यक्तित्व के कारण उन्हें युवातुर्क की उपाधि भी मिली. चंद्रशेखर भारतीय राजनिति में एकला चलो के सिद्धांत के पोषक भी थे.

भारतीय राजनीति के शिखर पुरूष रहे चंद्रशेखर में एक दो विशेषताएं नहीं पूरा उनका जीवन ही विशेषताओं से भरा हुए एक शोधपत्र था. चंद्रशेखर मजदूरों में कुशल मजदूर, विद्यार्थियों में कुशल विद्यार्थी, नेताओं में कुशल नेता और प्रशासनिक क्षमता में एक दक्ष प्रशासनिक अफसर की तरह थे. बलिया सतीश चंद्र कालेज के छात्रसंघ के पदाधिकारी पद से राजनीतिक सफर प्रारंभ कर भारतीय लोकतंत्र के सबसे बड़ी कुर्सी तक पहुंचने वाले चंद्रशेखर के जीवन में किसी ने कभी अहम नहीं देखा. समाजवाद के सच्चे पुजारी ने राजनीति में कभी परिवारवाद को हावी नहीं होने दिया और उनके पूरे जीवन काल तक उनके दोनों पुत्रों में किसी ने सक्रिय राजनीति में प्रवेश तक नहीं किया.

1962 से 1977 तक वह भारत के ऊपरी सदन राज्य सभा के सदस्य रहे. 1984 में पूर्व प्रधानमंत्री ने भारत की पदयात्रा की. कन्याकुमारी से कश्मीर तक की इस सफरनामे में उन्हें भारत को अच्छी तरह समझने का मौका मिला. सन 1977 मे जब जनता पार्टी की सरकार बनी तो उन्होने मंत्री पद न लेकर जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद लेना स्वीकार किया. सन 1977 में ही वो बलिया जिले से पहली बार लोकसभा के सांसद बने. चंद्रशेखर ने पहले के नेता विश्वनाथ प्रताप सिंह के राजीनामा के बाद जनता दल से कुछ नेताओं को लेकर समाजवादी जनता पार्टी की स्थापना की.

सजपा को जब कांग्रेस ने चुनाव ना करने के लिए समर्थन देने की घोषणा की तो अल्पमत में ही उनकी सरकार बन गयी. कांग्रेस ने उनके सरकार को सहयोग नकारने के बाद उन्होंने सरकार से त्यागपत्र दे दिया. पूर्व प्रधानमंत्री का जीवन आचार्य नरेंद्र देव व लोकनायक जयप्रकाश से काफी प्रभावित था. इन्हीं दोनों महान पुरूषों की प्रेरण से चंद्रशेखर ने राजनीति की एक नयी इबादत लिखी. आज राष्ट्रपुरूष चंद्रशेखर की आज जयंती है. जेपी के समग्र क्रांति के इस नायाब नायक को मेरा शत शत नमन…..

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें