Ayodhya Ram Mandir: अयोध्या में रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह को लेकर तैयारियों को तेजी से अंतिम रूप दिया जा रहा है. प्राणप्रतिष्ठा समारोह का शुभारंभ विराजमान रामलला के पंचकोसी परिक्रमा के साथ होगा. इस बीच रामलला के विग्रह को लेकर इस सप्ताह फैसला किये जाने की उम्मीद है. दरअसल श्रीराम जन्म भूमि ट्रस्ट भव्य राम मंदिर के लिए रामलला के बालस्वरूप की तीन प्रतिमाएं तैयार करा रहा है. इनमें से जो मूर्ति सर्वश्रेष्ठ होगी, उसे गर्भगृह में विराजमान कराया जाएगा. कहा जा रहा है कि ये मूर्तियां लगभग तैयार हो गई हैं. ऐसे में इनमें से श्रेष्ठतम प्रतिमा का चयन इस सप्ताह किया जा सकता है. इसी महीने की सात और आठ तारीख को प्रस्तावित रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की बैठक में स्थापना के लिए श्रेष्ठतम मूर्ति का चयन किया जा सकता है. हालांकि ट्रस्ट की ओर से इस संबंध में फिलहाल जानकारी नहीं दी गई है. माना जा रहा है कि निर्णय होने के बाद ट्रस्ट की ओर से इस सबंध में अवगत कराया जाएगा. श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने बताया कि जनवरी माह में अयोध्या के श्री राम जन्मभूमि मंदिर से अक्षत लाकर विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ता घर-घर पहुंचाएंगे. अयोध्या श्रीराम जन्मभूमि पर प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम का सीधा प्रसारण गांव-गांव में करने की तैयारी है.
इस बीच ट्रस्ट को इस बात पर भी फैसला करना है कि रामलला की जिन मूर्तियों को तैयार किया जा रहा है, उनमें से एक के चयन के बाद बाकी दो मूर्तियों को कहां स्थापित किया जाए. माना जा रहा है कि ट्रस्ट की बैठक में राम मंदिर की प्रतिमा पर निर्णय के साथ ही इसे लेकर भी फैसला किया जाएगा. रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट तीन प्रसिद्ध मूर्तिकारों से अयोध्या में ही रामलला की मूर्ति तैयार करा रहा है. इन मूर्तिकारों में कर्नाटक के गणेश भट्ट एवं अरुण योगीराज और राजस्थान के सत्यनारायण पांडेय हैं. सत्यनारायण पांडेय मकराना के संगमरमर से रामलला की मूर्ति गढ़ रहे हैं. मैसूर के प्रसिद्ध मूर्तिकार अरुण योगीराज कर्नाटक से प्राप्त एक अन्य चट्टान से मूर्ति बना रहे हैं. यह चट्टान श्रीराम के अनुरूप श्यामवर्णी है. वहीं गणेश भट्ट कर्नाटक की नेल्लिकारू चट्टान के काले पत्थरों से मूर्ति बना रहे हैं. नेल्लिकारू चट्टानों को श्याम शिला या कृष्ण शिला के रूप में भी जाना जाता है. उनका रंग भगवान राम एवं कृष्ण की तरह श्यामवर्णी है.
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जानकारी के मुताबिक पांच वर्षीय बालक के अनुरूप रामलला की जो मूर्ति निर्मित की जा रही है, वह 51 इंच ऊंची है. इसे श्रीराम की दिव्यता-भगवत्ता के साथ पांच वर्षीय बालक की कोमलता के अनुरूप आकार देने का प्रयास किया जा रहा है. जो मूर्ति रामलला की असीम गरिमा के निकटतम प्रतीत होगी, उसे गर्भगृह में स्थापित करने के लिए चुना जाएगा. इस तरह का प्रयास किया जा रहा है कि रामनवमी के दिन 12 बजे भगवान के माथे पर सूर्य की किरणें पड़ें. कहा जा रहा है कि सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट, रुड़की और पुणे के एक एस्ट्रोनॉमिकल संस्थान ने मिलकर कम्प्यूटरीकृत कार्यक्रम बनाया है. इसमें एक छोटा सा उपकरण है जो कि मंदिर के शिखर में लगाया जाएगा. किरणें इस माध्यम से आएंगी और फिर परावर्तित होकर भगवान के ललाट पर पहुंचेंगी.
इस बीच रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के मुताबिक प्राण-प्रतिष्ठा से पहले सरयू पूजन कर उसके जल से रामलला का अभिषेक किया जाए. फिर उन्हें रथ से नगर भ्रमण कराया जाएगा. पंचकोसी की परिधि में रामलला को भव्य रथ पर सवार कर भव्यता पूर्वक यात्री निकाली जाएगी. इसके बाद रामलला की मूर्ति को जल, फल और अन्न में एक-एक दिन रखा जाएगा, जिसे अनुष्ठान की भाषा में जलाधिवास, फलाधिवास व अन्नधिवास कहा जाता है.
बताया जा रहा है कि नौ दिवसीय समारोह के लिए श्रीराम यंत्र की स्थापना की जाएगी. कार्यक्रम के समापन के बाद इसे सरयू नदी में विसर्जित कर दिया जाएगा. समारोह में हवन के लिए 9 कुंड बनाए जाएंगे. पूरा कार्यक्रम काशी के विद्वानों की देखरेख में होगा. 108 वैदिक आचार्यों की टीम यह पूरा अनुष्ठान संपन्न कराएगी. समस्त अनुष्ठान काशी के प्रसिद्ध विद्वान गणेश्वर द्विवेदी व आचार्य लक्ष्मीकांत के निर्देशन में होना सुनिश्चित हुआ है. राममंदिर का भूमिपूजन भी गणेश्वर द्विवेदी की देखरेख में हुआ था.
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इसके साथ ही रामलला के नए मंदिर में विराजने के बाद कई नए नियम लागू करने की तैयारी है. पुजारियों के लिए बाकायदा नियमावली तैयार की जा रही है. बताया गया कि नए मंदिर के गर्भगृह में पुजारी के लिए किसी को भी प्रवेश करने की अनुमति नहीं होगी. अभी अस्थायी मंदिर में वीआईपी, संतों को गर्भगृह में प्रवेश दिया जाता है, लेकिन नए मंदिर में इस पर रोक रहेगी. रामलला की पूजा-अर्चना व सेवा करने वाला ही गर्भगृह में प्रवेश कर पाएगा. इसके अलावा किसी को भी गर्भगृह में प्रवेश की अनुमति नहीं मिल पाएगी. गर्भगृह के बाहर से ही उन्हें दर्शन की अनुमति होगी.
इसके साथ ही नए मंदिर में पुजारियों की संख्या बढ़ायी जाएगी. अभी रामलला के पूजन के लिए एक मुख्य पुजारी और चार सहायक पुजारी तैनात हैं. अब इनकी संख्या में भी बदलाव किया जा सकता है. प्रशिक्षित पुजारियों को रामलला की पूजा-अर्चना के लिए नियुक्त किए जाने की योजना है. इसके साथ ही रामजन्मभूमि परिसर में बनने वाले अन्य मंदिरों के लिए भी पुजारियों की नियुक्ति की जानी है.