बाहुबली एमएलसी बृजेश सिंह के भतीजे और चंदौली की सैयदराजा सीट से भाजपा विधायक सुशील सिंह हत्या के एक मामले में बरी हो गए हैं. यूपी की एमपी एमएलए स्पेशल कोर्ट ने उन्हें सिपाही सर्वजीत यादव की हत्या के मामले में बरी कर दिया है. बताया जा रहा है कि सुशील सिंह को चुनावी साल में कोर्ट से बड़ी राहत मिली है.
क्या था यह मामला – पांच मार्च 2005 को सुबह नौ बजे नैनी सेंट्रल जेल से पुलिस उस जमाने के दुर्दान्त अपराधी रहे अनुराग त्रिपाठी उर्फ अन्नू को वाराणसी की अदालत में पेश कराने प्रिजन वैन से ले गए थे. पेशी से लौटते समय अनुराग त्रिपाठी के साथ सिपाही यमुना प्रसाद यादव, राधेश्याम सिंह, श्याम सुंदर सिंह, गोविंद प्रसाद, शीतला प्रसाद तिवारी, रमाशंकर गिरी, दीनानाथ, राम लखन मिश्र व सर्वजीत यादव थे.
झरिया पुलिया जीटी रोड गोपीगंज पर जब परिजन वैन के चालक सर्वजीत ने वाहन बाएं मोड़ऩे के लिए गति धीमी की, उसी समय घाट लगाये हमलावरों से परिजन वैन पर गोली और बम से ताबड़तोड़ हमला कर दिया. थोड़ी देर बाद गोली, बम चलना बंद हो जाने पर सिपाहियों ने गाड़ी से उतरकर फायर किया तो बदमाश भाग निकले थे. इस गोलीबारी में चालक सर्वजीत यादव की ड्राइविंग सीट पर ही मौत हो गई थी जबकि राधेश्याम सिंह व श्यामसुंदर तिवारी घायल हुए थे. पुलिस की तरफ से वादी मुकदमा सिपाही यमुना प्रसाद थे.
क्या थी रंजिश की वजह – साल 2000 के बाद पूर्वांचल के संगठित अपराध के क्रिया कलापों में खासा बदलाव आया था और नए शूटरों की फ़ौज खड़ी हो गयी थी. वाराणसी के अनुराग त्रिपाठी अन्नू एवं रमेश यादव बाबू जैसे दुःसाहसिक शूटरों ने बड़े माफिया और बाहुबलियों की खुला चैलेन्ज दे दिया था. अन्नू की मुन्ना बजरंगी से नजदीकी होने के बाद मऊ के विधायक मुख़्तार अंसारी का आशीर्वाद मिल गया था. इस कारण से बृजेश सिंह का खेमा खुश नहीं था, अन्नू पर पेशी के दौरान हुए इस हमले में अन्नू के सहयोगियों ने विधायक सुशील सिंह पर हमला कराने का आरोप लगाया था. इस बाबत संत रविदास नगर (भदोही) के थाना गोपीगंज में अप्रैल 2005 को मुकदमा दर्ज किया गया था.
अभियोजन पक्ष मामला साबित करने में असफल रहा- सुशील सिंह के अधिवक्ता प्रमोद सिंह, अभिषेक तिवारी एवं अभियोजन पक्ष के अधिवक्ताओं की दलीलों एवं तर्कों को सुनने, पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्यों का अवलोकन करने के बाद विशेष न्यायाधीश आलोक कुमार श्रीवास्तव ने मंगलवार को फैसला सुनाते हुए कहा कि ‘अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत पत्रावली पर ऐसा कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है, जिससे आरोपित को दोष सिद्ध करार दिया जा सके. अभियोजन पक्ष मामला संदेह से परे साबित करने में असफल रहा है.”
गैंग बिखर जाने के बाद नहीं हो पाई पैरवी – जरायम की दुनिया से जुड़े लोग बताते हैं की इस घटना के कुछ साल बाद वाराणसी जिला जेल में अन्नू की हत्या हो जाने के बाद और वर्ष 2008 में रमेश उर्फ़ बाबू यादव का एनकाउंटर हो जाने के बाद इस मुकदमे में अभियोजन पक्ष से कोई मजबूत पैरवी नहीं हो पा रही थी. ऐसे में अन्नू के पक्ष के वकीलों के पास साक्ष्य नहीं उपलब्ध हो पाए.
सुशील सिंह समर्थकों में उत्साह- इस बीच चंदौली और वाराणसी में सुशील सिंह समर्थकों में खासा उत्साह देखने को मिला. मंगलवार शाम को फैसले की सूचना मिलने के बाद समर्थकों ने वाट्सएप पर सन्देश फारवर्ड करते हुए एक दूसरे को बधाई दी है
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रिपोर्ट : उत्पल पाठक