UP Election 2022: उत्तर प्रदेश के फतेहपुर में कांग्रेस का एक खास कार्यकर्ता है. जवानी में कांग्रेस के प्रति प्रेम जगा तो उसका झंडा ही जिंदगी हो गई. अब तो चुनाव के वक्त प्रचार होता है. उनके लिए हर दिन प्रचार का दिन होता था. अपने शहर ही नहीं, देश में कहीं भी निकल जाते थे. वो युवा अब 77 साल का बूढ़ा है लेकिन समर्पण अब भी उतना ही है, जोश भी वैसा ही. प्रचार के बदले साधनों के बीच कांग्रेस का यह बूढ़ा सिपाही भले उपेक्षित है. कभी फतेहपुर से दिल्ली तक उनकी पूछ हुआ करती थी.
यह कहानी है, कुछ साल पहले से खागा में चाय की गुमटी चलाकर गुजारा करने वाले रामचरन की. यहां उनके कांग्रेस प्रेम के सफर की तस्वीरें भी चस्पां हैं. कोई जानना चाहे तो चाव से वो हर तस्वीर के बारे में बताते भी हैं. विजयीपुर ब्लॉक के छोटे से गांव सिलमी में रामचरन का घर है. कभी कांग्रेस नेताओं ने ही उन्हें रामचरन झंडेवाला नाम दिया था. उन्होंने 1965 में कांग्रेस का झंडा थामा था. उसकी नीतियों और रीतियों में ऐसे रमे कि तन-मन सब उसके नाम कर दिया. चौबीसो घंटे कांग्रेस के झंडे के साथ रहते और आयोजनों में भाग लेते. माता-पिता एतराज जताते, लेकिन, रामचरन उनकी कब सुनने वाले थे.
वो सुबह-सुबह दुकान खोल देते हैं. देर शाम तक चाय बनाते और बेचते हैं. चुनाव के दिन हैं. आने वाले लोगों के बीच कांग्रेस का प्रचार करते रहते हैं. बीच-बीच में बीते दिनों के किस्से-कहानियां भी कहते रहते हैं. लोग सुनते भी चाव से हैं.
रामचरन की मौजूदा जिंदगी
1978 में फतेहपुर लोकसभा उपचुनाव में प्रचार के लिए आई इंदिरा गांधी से मुलाकात के बाद रामचरन का कांग्रेस प्रेम और प्रगाढ़ हो गया. कांग्रेस के लिए कनार्टक, तमिलनाडु, मध्यप्रदेश, दिल्ली, राजस्थान समेत अनेक राज्यों में जाने लगे. रामचरन बताते हैं- पुराने कांग्रेसी नेता इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, एनडी तिवारी और वीर बहादुर सिंह उनके खाने-पीने का इंतजाम करते थे. उनकी आंखें यह कहते हुए नम हो जाती हैं कि अब तो उन्हें कोई पूछता नहीं. वो यह भी कहते हैं कोई न पूछे. भला मैं क्यों मलाल करूं.
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बकौल रामचरन- दिल्ली में 1984 में राजीव गांधी से भी मुलाकात की. पार्टी में सम्मान बढ़ा तो उसकी आजीवन सेवा करने के प्रण के साथ शादी नहीं करने का फैसला कर लिया. रायबरेली, सुल्तानपुर और अमेठी में गांधी परिवार के लिए काफी प्रचार किया. इंदिरा और राजीव की अंत्येष्टि में भाग लेने दिल्ली गए. पिछले कई दशकों में ऐसे दर्जनों मौके आए जब उनकी तस्वीर टीवी के साथ बड़ी-बड़ी पत्रिकाओं में छपी. दर्जनों अखबारों और मैगजीन की कटिंग अब उनके जीवन की धरोहर बची रह गई है.