लखनऊ. उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी (66), अपनी पत्नी मधुमणि (61) के साथ, 16 साल बाद गोरखपुर जेल से बाहर निकलने के लिए तैयार हैं, राज्य सरकार ने गुरुवार को उनकी ‘समय से पहले रिहाई’ का आदेश दिया . दोनों को 2003 में लखनऊ में 26 वर्षीय कवयित्री मधुमिता शुक्ला की हत्या का दोषी पाया गया था .जब वह मारा गया तो वह गर्भवती थी .बाद में, उसकी बहन निधि शुक्ला ने दावा किया कि मधुमिता अमरमणि की करीबी थी, गर्भवती होने के कारण उसे मार डाला .
2007 में उत्तराखंड की एक सीबीआई अदालत ने अमरमणि, मधुमणि और अमरमणि के भतीजे रोहित चतुर्वेदी सहित दो अन्य लोगों को हत्या की साजिश रचने और 26 वर्षीय मधुमिता की हत्या करने के लिए दोषी ठहराया था . जुलाई 2012 में, उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने चारों दोषियों को सीबीआई अदालत द्वारा आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा .अदालत ने त्रिपाठी के एक अन्य सहयोगी प्रकाश पांडे को भी आजीवन कारावास की सजा सुनाई .
अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि गोरखपुर के बाबा राघव दास (बीआरडी) मेडिकल कॉलेज में हैं, जहां उन्होंने विभिन्न बीमारियों के लिए “उपचार” के तहत अपनी सजा का एक बड़ा हिस्सा बिताया है. समय – समय पर प्रकाशित मीडिया रिपोर्ट्स को आधार मानें तो अमरमणि त्रिपाठी को “इलाज” के लिए मेडिकल कॉलेज के नेहरू चिकत्सालय के कमरा नंबर 8 में रखा गया था. हालांकि अधिकांश दिन, वह उसी गलियारे के नीचे कमरा नंबर 16 में पाए जाते थे जहां उसकी पत्नी भर्ती थीं. जिज्ञासु लोगों की नजर से बचने को दरवाजे के पर्दे हमेशा खींचे रहते थे.खिड़कियां सील कर दी जाती थीं. हालांकि यूपी की राजधानी लखनऊ से 273 किमी दूर नेपाल सीमा वाले इस शहर (गोरखपुर) में हत्या में दोषी दो मरीजों का इलाज एक खुला रहस्य रहा.
अमरमणि त्रिपाठी और पत्नी मधुमणि भले ही हत्या के लिए उम्रकैद की सजा काट रहे हों, लेकिन 2012 में गोरखपुर जेल में उनके स्थानांतरण के बाद से, यह ज्यादातर उनका घर रहा. गुलाबी बलुआ पत्थर में एक विशाल घर, दीवारों और एक गेट से घिरा हुआ, मणि भवन जेल से लगभग 10 किमी दूर गोरखपुर के दुर्गवानी इलाके में स्थित है .अमरमणि की अन्य संपत्तियों में लखनऊ के गोमती नगर और हजरतगंज क्षेत्रों में एक-एक घर, नौतनवा में दो डिग्री कॉलेज, गैस एजेंसी और लखनऊ के अलावा बलरामपुर और महराजगंज जिलों में जमीन हैं .
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अमरमणि ने नेपाल बॉर्डर से महज दो किमी दूर त्रिलोकपुर गांव में पिता कृष्ण नारायण के साथ सब-इंस्पेक्टर के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की थी.राजनीति में उनका प्रवेश पूर्वी यूपी में उनके जैसे अन्य लोगों से अलग नहीं था, जो बाहुबली के रूप में शुरू होते हैं .उन्होंने 1980 के दशक के मध्य में गोरखपुर के पास खुद को स्थापित किया. अपना पहला चुनाव 1996 में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में जीता. 2002 में, बसपा उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल कर मायावती सरकार में मंत्री बनाया गया . हालांकि मधुमिता की हत्या के बाद उन्हें मंत्रीपद से बर्खास्त कर दिया गया था . यह और बात है कि मंत्री बने अमरमणि के खिलाफ पहले से ही कई मामले थे.
मधुमिता की हत्या ने पहली बार में अमरमणि की राजनीतिक किस्मत में सेंध नहीं लगाई . बसपा के बर्खास्त होने के बाद वह सपा में शामिल हो गए . अमरमणि जेल से 2007 का चुनाव जीते थे. इसके बाद से उनका परिवार हार रहा है .उनके चाचा श्याम नारायण तिवारी 2007 से चुनाव नहीं जीते हैं .उनके भाई अजितमणि 2009 का लोकसभा चुनाव हार गए थे. अमनमणि 2012 में हार गए थे .
मधुमिता हत्याकांड में जेल में बंद अमरमणि त्रिपाठी की पत्नी ने मधुमिता ने भी अस्पताल में खूब समय बिताया. उनकी सजा भी चिकित्सा उपचार से गुजरी. मधुमिता की बहन निधि शुक्ला ने कहा कि दंपति ने अधिकारियों की मिलीभगत से उनके कारावास का मजाक उड़ाया .वह चाहती है कि दोनों को जेल मैनुअल के प्रावधानों के अनुसार अपनी सजा काटनी चाहिए .नियमों के तहत उन्हें सेंट्रल जेल में रखा जाना चाहिए .हालांकि,वे दोनों गोरखपुर जिला जेल में हैं, और सरकार ने उन्हें वापस हरिद्वार जेल भेजने के लिए कुछ नहीं किया है, जहां से वे आए थे .
मधुमणि को 16 अप्रैल 2012 को जेल के एक डॉक्टर की सिफारिश पर मेडिकल कॉलेज भेजा गया था .आने के बाद उसे एक निजी वार्ड में भर्ती कराया गया .वर्ष 2008 में चेक बाउंस के एक मामले में मुकदमे का सामना करने के लिए उसे उत्तराखंड से गोरखपुर जेल लाया गया था . मधुमणि तीन महीने तक अस्पताल में भर्ती रही लेकिन उनको कोई गंभीर बीमारी है यह किसी को जानकारी नहीं थी. बाद में अस्पताल के अधिकारियों के बयान जारी हुए कि उसे स्पाइनल कॉलम में कुछ मनोवैज्ञानिक समस्या और दर्द है . मधुमणि ज्यादातर अस्पताल तक ही सीमित रहती थीं. अमरमणि हर सुबह जेल से बाहर आते थे,जाहिरा तौर पर मेडिकल कॉलेज में फिजियोथेरेपी के लिए,और अपने निजी वाहन में घूमते थे, अपने कपड़े पहनते थे और जेल की वर्दी में नहीं .साल 2012 में अप्रैल के मध्य से जुलाई के पहले सप्ताह तक नियमित रूप से जारी रहा. रविवार और छुट्टियों को छोड़कर या जब उन्हें सुनवाई के लिए अदालत में पेश होना था
मई 2012 में,जब इस मामले को मीडिया में उजागर किया गया,तो प्रशासन ने त्रिपाठी की सुरक्षा ड्यूटी पर तैनात एक सब-इंस्पेक्टर सहित चार पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया .