UP Election 2022: अगले साल होने जा रहे उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अपनी जमीन को बरकरार रखने की जुगत कर रहे सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर एक बार फिर बीजेपी के साथ हाथ मिलाने का इशारा कर चुके हैं. शुक्रवार को पत्रकारों से बात करते हुए ओपी राजभर ने कहा कि राजनीति में संभावनाएं बनी रही है. जो दल उनकी पार्टी के मुद्दों को समर्थन देगी, उसके साथ गठबंधन से परहेज नहीं करेंगे. आइए विस्तार से समझते हैं कि इसके क्या मायने हैं.
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मांगें पूरी नहीं होने पर राजभर मई 2019 में बड़े ही नाटकीय अंदाज में मंत्री पद छोड़ योगी सरकार से नाता तोड़ चुके थे. उसके बाद से ही विभिन्न मंचों पर भाजपा की मुख़ालफ़त कर रहे थे. उन्होंने ऑल इंडिया मजली-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी सहित कई छोटी पार्टियों के साथ मिलकर जनाधिकार संकल्प मोर्चा का गठन किया था. इस गठबंधन में कोई भी बड़ा चेहरा शामिल नहीं था. चंद दिनों पहले तक राजभर अपने मोर्चे में शामिल होने वाले हर दल के मुखिया को सरकार बनने पर बड़ा मंत्रालय देने का वादा कर रहे थे. मगर वे इस बात को भी बखूबी समझ रहे थे कि इस जद्दोजहद से उन्हें कोई खास फायदा नहीं होने वाला था. यही कारण है कि वे बीजेपी से दोबारा जुड़ने के इशारे के साथ ही समाजवादी पार्टी (सपा) से भी गलबहियां करने को तैयार थे.
राजभर और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह की कुछ दिनों पहले मुलाक़ात ने इस बात का इशारा कर दिया था कि वे भाजपा के साथ हाथ मिला सकते हैं. राजभर ने भाजपा से जुड़ने से पूर्व अपनी कुछ मांग रखी थी, जिन्हें स्वीकार करने के बाद ही वे भाजपा से गठबंधन करने को तैयार होने की बात कह रहे थे. मांगों के साथ ही यह भी घोषणा की थी कि उनकी इन मांगों को जो पूरा करेगा उसी से वे गठबंधन करेंगे.
1. देश में पिछड़ों की जातिगत जनगणना, रोहिणी आयोग की रिपोर्ट को लागू करना.
2. उत्तर प्रदेश में सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट को लागू किया जाए.
3. यूपी में घरेलू बिजली का बिल माफ किया जाए.
4. एक समान अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा दी जाए.
5. पुलिस कर्मचारियों की बॉर्डर सीमा समाप्त कर उन्हें अपने जिले में तैनाती की छूट दी जाए.
6. पुलिसकर्मियों की ड्यूटी की समयसीमा 8 घंटे की निर्धारित हो और साप्ताहिक अवकाश भी दिया जाए.
7. पुरानी पेंशन बहाल की जाए.
8. होमगार्ड, पीआरडी और चौकीदार को पुलिस के समान सुविधा मिले.
अब भाजपा इनमें से किन शर्तों को स्वीकार करेगी और किसे अस्वीकार उस पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया गया है.
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सियासी गलियारों में इस गठबंधन पर किसी में कोई खास उत्साह नहीं दिख रहा है. राजनीति के जानकार भी मान रहे हैं कि इससे भाजपा को बस एक ही फायदा है कि उनकी किरकिरी करने वाला एक नेता कम हो गया जाएगा. वहीं, इस गठबंधन से राजभर को अपना सियासी आधार मजबूत करने में आसानी होगी. हालांकि, जिस भाजपा से नाराज़ होकर वे बागी हुए थे, उससे पुनः जुड़ने पर वे अपने वोटबैंक का सामना कैसे करेंगे? यह देखने वाली बात होगी. उधर, AIMIM के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी के लिए भी यह एक झटका है क्योंकि राजभर की मदद से वे यूपी में पिछड़ों के बीच पैठ बनाने की जुगत कर रहे थे. इस गठबंधन के इशारे ने उनका एक सपना तोड़ने का काम किया है.
(रिपोर्ट: नीरज तिवारी, लखनऊ)