UP Nikay Chunav Results 2023: उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव से लेकर रामपुर की स्वार और मीरजापुर की छानबे विधानसभा सीट के नतीजे अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के लिए बड़ा झटका साबित हुए हैं. सपा लगातार भाजपा सरकार पर हमलावर होकर उसे कटघरे में खड़ा करने की कोशिश कर रही थी. धार्मिक और जातीय समीकरण के लिहाज से भी इस बार उसने सतर्कता बरतने की कोशिश की. लेकिन, फिर भी वह मतदाताओं का भरोसा नहीं जीत सकी. नगर निगमों से लेकर नगर पालिका और नगर पंचायत में उसका ग्राफ 2017 के मुकाबले गिरा है. इस तरह लोकसभा चुनाव 2024 से पहले ही उसके सामने बड़ी चुनौती खड़ी हा गई है.
पार्टी को उम्मीद थी कि इस बार मेयर पद की लड़ाई में वह अच्छा प्रदर्शन करेगी. कम से कम उसका खाता जरूर खुलेगा. लेकिन, एक बार फिर उसे नाकामी हासिल हुई. चुनाव दर चुनाव उसकी हार का सिलसिला जारी है. अखिलेश यादव या समाजवादी पार्टी के अन्य नेता भले ही सरकार पर पक्षपात, सत्ता का दुरुपयोग सहित अन्य आरोप भले ही लगा लें. लेकिन, हकीकत है कि पार्टी अपनी रणनीति को धरातल पर उतारने से लेकर मतदाताओं तक अपनी बात पहुंचाने में सफल नहीं हो पा रही है. इसका असर उसका सियासी ताकत पर पड़ रहा है.
प्रदेश में कई जगह सपा के स्थानीय नेता एक दूसरे का विरोध करते नजर आए. टिकट नहीं मिलने के कारण नाराज लोग पार्टी उम्मीदवार के साथ मेहनत करते नहीं दिखे. इसकी वजह से भी नकारात्मक असर पड़ा. यहां तक की पार्टी के अधिकृत उम्मीदवारों को बागियों के मैदान में उतरने से भी नुकसान उठाना पड़ा. प्रदेश में 2017 में नगर निगम में सपा के 202 पार्षद थे. इस तरह कुल पार्षद का 15.54 प्रतिशत सपा की झोली में गया था. इस बार इसमें गिरावट देखने को मिली है और यह 13.45 फीसदी तक ही पहुंच पाया.
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इसी तरह नगर पालिका परिषद अध्यक्ष की बात करें तो 2017 में पार्टी के 45 प्रत्याशी इस पद पर जीते थे, जो 22.73 प्रतिशत था. इसार यहां भी सपा पिछड़ती नजर आई और उसके नपा अध्यक्ष पद पर उसके 35 उम्मीदवार ही जीत सके. इस तरह मात्र 17.59 फीसदी तक ही ये आंकड़ा पहुंच सका. नगर पालिक सदस्यों में भी यही स्थिति देखने को मिली. पिछले चुनाव में सपा के नगर पालिका सदस्यों की संख्या 488 था, जो 9.07 मात्र था. इस बार पार्टी के 420 सदस्य जीते, जो मात्र 7.88 प्रतिशत है.
इसी तरह नगर पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव में 2017 में सपा के खाते में 83 सीटें आई थीं, जो 18.95 प्रतिशत थी. इस बार उसके 78 उम्मीदवार ही जीत सके और आंकड़ा 14.34 प्रतिशत तक सिमट गया. नगर पंचायत सदस्यों की बात करें तो 2017 की तुलना में इस बार इसमें भी पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा है. इसका आंकड़ा 8.34 प्रतिशत से घटकर 6.73 फीसदी तक पहुंचा गया.
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भाजपा में संगठन से लेकर सरकार जहां हर मोर्चे पर काफी पहले से सक्रिय दिखी, वहीं सपा में हलचल तक नजर नहीं आई, जबकि प्रमुख विपक्षी दल होने के कारण उसे ज्यादा मेहनत करने की जरूरत थी.
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मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर दोनों डिप्टी सीएम केशव प्रसद मौर्य व ब्रजेश पाठक, सभी मंत्री और पूरा संगठन निकाय चुनाव के दौरान यूपी की प्रक्रिमा करता नजर आया, जबकि सपा में इतनी सक्रियता नहीं दिखी.
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लोकसभा चुनाव 2024 के लिए विपक्ष को मजबूत करने की बात करने वाले अखिलेश यादव स्वयं अपनी पार्टी के उम्मीदवारों को मजबूती देने के लिए समय से धरातल पर नजर नहीं आए.
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भाजपा रैलियों पर रैलियां करती रही और सपा की रणनीति इस बार टिकी रही कि जनता खुद सरकार का विरोध कर उसके प्रत्याशियों को वोट देगी.
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भाजपा ने अपने हर बड़े चेहरे का पूरा इस्तेमाल किया. सीएम योगी ने 50 रैलियां की. अखिलेश यादव लखनऊ मेट्रो के सफर से लेकर चंद शहरों में प्रचार तक सिमट गए. पार्टी के पुराने बड़े नेताओं का भरपूर उपयोग नहीं किया गया.
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पार्टी ने निकाय चुनाव जैसी बड़ी लड़ाई में प्रत्याशी घोषित करने में काफी देरी की. नामांकन के अंतिम दिन तक उम्मीदवार घोषित किए गए.
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पार्टी नेतृत्व अपने ही नेताओं का मनमुटाव दूर करने में नाकाम रहा. स्थानीय स्तर पर खींचतान का उसके उम्मीदवारों को नुकसान उठाना पड़ा.
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स्वार में आजम खां अकेले नजर आए और ऐसा लगा कि ये उप चुनाव नहीं होकर उनका निजी मामला है, जबकि सपा को यहां ज्यादा फोकस करने की जरूरत थी.
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छानबे में भी यही स्थिति रही. उप चुनाव में रण में अखिलेश यादव उतना जोर नहीं लगा पाए, जितना विपक्षी दल होने के नाते जनता को उम्मीद थी.