Prayagraj News: उत्तर प्रदेश में नोएडा के बहुचर्चित निठारी कांड में बड़ा फैसला आया है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को इस प्रकरण से संबंधित 12 मामलों में मुख्य संदिग्ध सुरिंदर कोली को बरी कर दिया. सभी 12 मामलों में उसे ट्रायल कोर्ट से मौत की सजा सुनाई गई थी. इसके साथ ही एक अन्य संदिग्ध मोनिंदर सिंह पंढेर को भी उच्च न्यायालय ने उन दो मामलों में बरी कर दिया है, जिनमें उसे ट्रायल कोर्ट ने मौत की सजा सुनाई थी. कोर्ट में लंबी बहस के बाद अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था. सोमवार को हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाया. सुरेंद्र कोली को निचली अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी. इसके खिलाफ उसने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. इसके साथ ही कोठी डी- 5 के मालिक मोनिंदर सिंह पंढेर को भी कोर्ट ने बरी कर दिया है. न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति एसएएच रिजवी की अदालत ने सोमवार को यह फैसला सुनाया. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निठारी कांड के आरोपी मनिंदर सिंह पंढेर व सुरिंदर कोली को फांसी की सजा के खिलाफ अपीलों पर दोनों पक्षों की बहस पूरी होने के बाद फैसला सुरक्षित कर लिया था. फांसी की सजा के खिलाफ दोनों हाईकोर्ट में अपील दायर की है. विभिन्न खंडपीठों ने 134 दिन की लंबी सुनवाई की. कोली पर आरोप है कि वह पंढेर कोठी का केयरटेकर था और लड़कियों को लालच देकर कोठी में लाता था. निठारी गांव की कई लड़कियां गायब हो गई. वह उनसे दुष्कर्म कर हत्या कर देता था. शव के टुकड़े कर बाहर फेंक आता था.
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सुरेंद्र कोली को पहले 12 मामलों में मौत की सजा दी गई थी.
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मोनिंदर सिंह पंढेर को भी ट्रायल कोर्ट ने 2 मामलों में मौत की सजा सुनाई थी.
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माना जता है कि कुख्यात निठारी हत्याकांड 2005 और 2006 के बीच किए गए थे.
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मामला तब सामने आया जब दिसंबर 2006 में नोएडा के निठारी में एक घर के पास नाले में कंकाल पाए गए.
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मोनिंदर पंढ़ेर के घर का मालिक और सुरेंद्र कोली के उसका घरेलू नौकर होने के कारण दोनों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई.
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सीबीआई ने कुल 16 मामले दर्ज किए, उनमें से सभी में कोली पर हत्या, अपहरण और दुष्कर्म के अलावा सबूत नष्ट करने का आरोप लगाया गया. एक मामले में पंढेर पर अनैतिक तस्करी का आरोप लगाया गया.
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कई पीड़ित परिवारों के संपर्क करने के बाद गाजियाबाद अदालत ने पंढेर को पांच अन्य मामलों में तलब किया.
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सीबीआई के अनुसार, कोली ने कई लड़कियों की उनके शरीर के टुकड़े-टुकड़े करके हत्या कर दी थी और फिर उन्हें उनके घर के बाहर पिछवाड़े में फेंक दिया था.
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बताया जा रहा है कि हाईकोर्ट ने सीधे तौर पर कोई सबूत और गवाह नहीं होने के आधार पर दोषियों को बरी किया. इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले से सीबीआई को बड़ा झटका लगा. हालांकि रिंपा हलदर मर्डर केस में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट दोनों ने ही सुरेंद्र कोहली की फांसी की सजा को बरकरार रखा था. इन्हीं सबूतों के आधार पर रिंपा हलदर मर्डर केस में दोनों को फांसी की सजा मिली थी. अर्जियों पर हाईकोर्ट ने सुनवाई पूरी होने के बाद अदालत ने 15 सितंबर को अपना जजमेंट रिजर्व कर लिया था. कोर्ट के फैसले सुनाए जाने का सभी को इंतजार था.
हाईकोर्ट में 134 कार्य दिवसों में अपील पर सुनवाई हुई थी. सुरेंद्र कोली की मौजूदा 12 याचिकाओं में से पहली याचिका साल 2010 में दाखिल की गई थी. हालांकि इन याचिकाओं के अलावा भी हाईकोर्ट कोली की कुछ अर्जियों को निस्तारित कर चुका है. एक मामले में फांसी की सजा को बरकरार रखा गया, जबकि एक अन्य मामले में देरी के आधार पर उसे उम्र कैद में तब्दील किया जा चुका है.
आरोपियों की तरफ से कोर्ट में दलील दी गई है कि इस घटना का कोई चश्मदीद गवाह नहीं है. सिर्फ वैज्ञानिक व परिस्थितिजन्य सबूतों के आधार पर उन्हें दोषी ठहराया गया है और फांसी की सजा दी गई थी. फांसी की सजा को रद्द किए जाने की अपील की गई थी. मनिंदर सिंह पंढेर एक मामले में हाईकोर्ट से पहले बरी हो चुका था.