अलीगढ़ : अलीगढ़ में यूरिया की खपत ज्यादा हो रही है. जिले में पिछले साल के मुकाबले इस साल 7914 मीट्रिक टन यूरिया का अधिक उपयोग किया गया,. हालांकि जिला कृषि अधिकारी अधिक यूरिया उपयोग के नुकसान और विकल्पों की जानकारी दे रहे हैं. जिला कृषि अधिकारी अभिनन्दन सिंह ने बताया कि पिछले साल 47041मीट्रिक टन उपयोग किया गया, वहीं इस साल 54955 मीट्रिक टन यूरिया प्रयोग की गई. अधिक यूरिया उपयोग करने से भूमि की उर्वरा शक्ति पर पड़ने वाले प्रभाव व कम यूरिया उपयोग करने के वैकल्पिक फायदे की जानकारी देते हुए बताया कि असंतुलित एवं अधिक मात्रा में यूरिया के प्रयोग आर्थिक नुकसान के साथ ही मृदा को भी क्षति पहुंचती है.
जिला कृषि अधिकारी ने बताया कि खरीफ फसलों में कृषको द्वारा यूरिया अधिक प्रयोग किये जाने के कारण जिसमें टैंगिग पर प्रभावी नियत्रंण हुआ, जिसके कारण जनपद के 127 उर्वरक विक्रेताओं के लाईसेन्स निलम्बित किये गये. कृषकों द्वारा सूक्ष्म पोषक तत्वों का प्रयोग न करने के कारण फसलों में तरह-तरह के रोग (बकानी एवं अन्य) के कारण कृषकों द्वारा कीटनाशक दवाईयो का अधिक मात्रा में प्रयोग किया गया है. अधिक कीटनाशकों के प्रयोग से मृदा की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुण कम हुआ है. मृदा में विभिन्न प्रकार पोषक तत्वों की उपलब्ध्ता असंतुलित मात्रा में होने के कारण मृदा की उर्वरा क्षमता में कमी हुई है. अत्यधिक नाइट्रोजन के कारण पौधों की वानस्पतिक वृद्वि अधिक होती है, जिस कारण पौधा अधिक मुलायम एवं नरम हो जाता है, जिससे कि कीट एवं रोगों के सक्रमण की सम्भावनाओं में वृद्वि होती है.
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यूरिया उर्वरक के प्रयोग के नाईट्रस आक्साईड गैस निकलने के कारण पर्यावरण (वायु, जल एवं मृदा) प्रदूषण की समस्या में वृद्वि होती है. यूरिया के अधिक प्रयोग करने से जमीन में सूक्ष्म पोषक तत्वो विशेषकर जिंक, सल्फर व आयरन की कमी होने लगती है व फसलों में 100 किलोग्राम यूरिया में से 30 से 35 किलोग्राम तक ही पोधों द्वारा ग्रहण किया जाता है. बाकी वाष्पोत्सर्जन के द्वारा वायुमण्डल में चला जाता है. अन्य लीचिंग के द्वारा जमीन के अन्दर चला जाता हैं, जिससे जमीन से निकाले जाने वाले पीने के पानी पर भी प्रतिकूल प्रभाव पडता है.
जिला कृषि अधिकारी ने यूरिया के वैकल्पिक उर्वरक की जानकारी देते हुए बताया कि नैनो तरल यूरिया विकसित किया गया है, जिसका उपयोग करने से यूरिया की कुल मात्रा में 25 प्रतिशत कमी होती है. किसानों के प्रक्षेत्रों पर टॉप डेसिंग में प्रयुक्त होने वाली दानेदार यूरिया की 50 प्रतिशत मात्रा को कम करके नैनो तरल यूरिया से विस्थापित कराया गया. जिसमें पाया गया कि उपज संतोषजनक रही. किसानों के प्रर्दशनों में पाया गया कि 40 से 45 दिन की उपज अवस्था पर द्वितीय टॉप- डेसिंग नैनों यूरिया से उत्पादन दानेदार यूरिया के समान ही प्राप्त हुआ है.
सामान्य यूरिया की उपयोग क्षमता 30 से 40 प्रतिशत होती है, जबकि नैनो तरल यूरिया की उपयोग क्षमता 85 ये 90 प्रतिशत होती है. सल्फर कोटेड (गोल्ड यूरिया) की दक्षता 70 से 75 प्रतिशत होती है. इसमें 37 प्रतिशत नाइट्रोजन और 17 प्रतिशत सल्फर उपलब्ध है। यह मृदा में धीरे-धीरे घुलने के कारण मृदा में इसकी उपलब्धता अधिक समय तक बनी रहती है. उन्होंने बताया कि जनपद की मृदा में सल्फर की उपलब्धता 15 PPM के सापेक्ष 10 PPM से कम पायी गयी. इसी प्रकार मृदा में जिंक की उपलब्धता 1.2 PPM के सापेक्ष 0.6 PPM रही. उन्होंने सभी कृषक बन्धुओं से अपील करते हुए कहा कि सूक्ष्म पोषक तत्वों का भी प्रयोग सन्तुलित मात्रा में करें.