रानीगंज.
पहली बार आर्ट ऑफ लिविंग की ओर से दुर्गापूजा के पंडालों को सम्मानित किया जायेगा. साथ ही ध्यान सत्र लगाया जायेगा. 300 से अधिक दुर्गापूजा पंडालों में भक्ति संगीत व देवी मंत्रों गूंजेंगे. पूजा पंडाल पश्चिम बंगाल की सांस्कृतिक, रचनात्मक व आध्यात्मिक आत्मा का प्रतीक है. ये पंडाल देवी की प्राचीन रीति-रिवाजों के आधार पर की गयी पूजा के साथ-साथ अक्सर बंगाली समुदाय की सामाजिक व सांस्कृतिक सोच को भी दर्शाते हैं. बंगाल की दुर्गापूजा धरोहर को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने के उद्देश्य से 180 से अधिक देशों में सेवारत आर्ट ऑफ लिविंग संस्था ने इस वर्ष पहली बार ‘भव्य पंडाल प्रतियोगिता’ शुरू की है. इसके माध्यम से सबसे रचनात्मक व विचारशील रूप से डिजाइन पूजा पंडालों को सम्मानित किया जायेगा. यह पुरस्कार दो श्रेणियों में दिये जायेंगे – सर्वश्रेष्ठ दुर्गापूजा पंडाल और सर्वश्रेष्ठ मूर्ति, जिसमें दो लाख रुपये का नकद पुरस्कार भी शामिल होगा. दुर्गापुर व सिलीगुड़ी में भी सर्वश्रेष्ठ पूजा पंडालों को क्रमशः दो लाख और एक लाख रुपये का पुरस्कार दिया जायेगा. यह पुरस्कार आर्ट ऑफ लिविंग की ओर से वर्ल्ड फोरम फॉर आर्ट एंड कल्चर और श्रीश्री तत्व के सहयोग से दिया जा रहा है. परिणाम पंचमी को घोषित किये जायेंगे. ध्यान की शांति और भक्ति संगीत की मिठास के साथ, आर्ट ऑफ लिविंग 300 से अधिक दुर्गापूजा पंडालों में ‘आनंद रस’ का संचार कर रहा है. इसका ध्येय आगंतुकों को आनंद और उत्सव की आंतरिक यात्रा पर ले जाना है. इनमें से त्रिधारा सम्मिलनी, सिंघी पार्क, समाज सेवी, गरफा सार्वजनिन, जयरामपुर पीओ, 66 पल्ली, देशप्रिय पार्क सहित कई अन्य अहम पंडाल शामिल हैं.मालूम रहे कि वर्ष 1981 में अपनी स्थापना के बाद से आर्ट ऑफ लिविंग ने वैश्विक सांस्कृतिक आंदोलन का नेतृत्व किया है. संस्था की यह पहल विश्वभर से कला व संस्कृति के विविध रूपों को एक मंच पर लाकर वसुधैव कुटुम्बकम की भावना को साकार कर रहा है. श्री श्याम मंदिर, रानीगंज में भजन संध्या भी शुरू हो गयी है.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है