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सीतारामपुर से झाझा 30 किलोमीटर रेल लाइन में लगेगा आधुनिक रेल क्लिप

सेफ्टी को लेकर आसनसोल मंडल भी हो गया है सतर्क

रामकुमार, आसनसोल

भारतीय रेलवे ने सेफ्टी को लेकर लगातार काम किया जा रहे है. इसी को देखते हुए रेलवे के ट्रैक में हो रहा है बड़ा बदलाव. गौरतलब है कि रेलवे ट्रैक को मजबूत रखने के लिए पैंडरोल क्लिप लगा हुआ होता .है वह लाइन को मजबूती बनाये रखता है. उसकी देखरेख करने के लिए रेलवे लाइन में ट्रैकमैन एक हथौड़ी लेकर घूमते हैं.

क्लिप जब हल्का हो जाता है तो ट्रैकमैन उसे हथौड़ी से मार कर उसे टाइट कर देते हैं. कहीं-कहीं ढीला हो जाने के कारण लाइन की सेटिंग खराब होने के कारण दुर्घटना हो सकती है. दुर्घटना से बचने के लिए भारतीय रेलवे अब रेलवे ट्रैक पर आधुनिक एक यंत्र लगा रही है. जिसका नाम पैंडरोल इलास्टिक रेल क्लिप है. उसका ट्रायल भी हो चुका है. यह क्लिपिंग रेल लाइन के नीचे के स्लीपर में लगा होगा. लाइन में स्लीपर बिछाते ही रेल लाइन उसे क्लिप के अंदर प्रवेश कर जाने के बाद वह लाइन मजबूती से टाइट हो जायेगी. यह कई वर्षों तक टाइट रहेगा. इससे हादसों पर लगाम लग सकेगा. आसनसोल रेल मंडल के सीनियर डीइएन ऑर्डिनेटर राजीव कुमार ने बताया कि रेल मंत्रालय से यह आदेश आते ही सीतारामपुर से झाझा के बीच रेल लाइनों में ये काम शुरू कर दिया गया है. पूरे आसनसोल मंडल में सभी रेलवे ट्रैक पर इसे लगाया जायेगा. यह लग जाने के कारण रेलवे में जो ट्रैकमैन हथौड़ी लेकर घूमते हैं उन्हें इस काम से निजात मिल सकेगी. आमतौर पर रेलवे ट्रैकमैन का काम काफी कठिनाई भरा होता है. धूप हो बरसात वे अपने कार्य में लगे रहते हैं. अब इस नये कदम से सुरक्षा में सुधार आयेगा.

नयी तकनीक

नयी तकनीक में ट्रैक को स्लीपर से कसने के लिए हुक की जगह एसकेआइ 30 का इस्तेमाल किया जायेगा. पायलट प्रोजेक्ट के रूप में 18 किमी लंबे ट्रैक पर इसका सफल प्रयोग किया जा चुका है. रेलवे ट्रैक को स्लीपर से कसने के लिए हुक लगे होते हैं. इनमें कोई चूड़ी नहीं होती है. इस वजह से ट्रेनों के लगातार गुजरने से कई बार ढीले होने की संभावना रहती है. इसे चेक करने के लिए गैंगमैन तैनात किये जाते हैं. ये ट्रैक पर चलकर सभी हुकों को हथौड़ा मारकर चेक करते हैं और जो ढीला होता है, उसे हथौड़े कसते हैं. पायलट प्रोजेक्ट के रूप में 18 किमी. लंबे ट्रैक पर इसका सफल प्रयोग किया जा चुका है. उन्होंने बताया कि सेफ्टी के लिहाज से हुक के मुकाबले ये बहुत बेहतर है. इसमें माइनस 60 डिग्री से प्लस 60 डिग्री तक तापमान झेलने की क्षमता है. अब ट्रैकों पर एसकेआई 30 का ही इस्तेमाल किया जायेगा.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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