कोलकाता. दुर्गोत्सव के समापन के बाद अब दीपोत्सव की तैयारियां शुरू हो गयी हैं. जहां सदियों पुरानी परंपरा को भूल कर लोग रंग-बिरंगी लाइटों से घर और मुहल्ले रोशन करने पर अधिक बल देने लगे थे. इससे मिट्टी के बने दीयों की मांग घटती जा रही थी. लेकिन विगत कुछ वर्षों से वोकल फॉर लोकल अभियान के तहत चाइनीज सामान के बहिष्कार और देश निर्मित सामान के उपयोग में दिलचस्पी बढ़ने से मिट्टी के दीयों की मांग भी बढ़ती जा रही है. गत वर्ष की अपेक्षा इस साल भी डिमांड अधिक होने से कारीगर मिट्टी के दीये तैयार करने में जुट गये हैं पिछले साल से 10 प्रतिशत बढ़ी मांग कोलकाता के दक्षिणदारी के कुम्हारपाड़ा में 100 से अधिक कारीगर रहते है, जो दीपावली पर दीये तैयार करते है. एक कारीगरों ने बताया कि गत साल की तुलना में इस साल दीयों की मांग में 10 प्रतिशत की वृद्धि देखी जा रही है. एक अन्य कारीगर आनंद मदन प्रजापति ने बताया कि पिछले साल से इस साल आर्डर अधिक मिला है. मौसम व महंगाई की मार झेल रहे कारीगर : आनंद मदन प्रजापति समेत अन्य कारीगरों ने बताया कि मिट्टी का दाम काफी अधिक हो गया है. वे लोग डायमंड हार्बर और कैनिंग से मिट्टी लाते है. पहले प्रति गाड़ी 10 हजार लगते थे, अब कीमत बढ़कर 15 हजार रुपये हो गयी है. वहीं, मौसम ने भी परेशान कर रखा है. एक कारीगर ने बताया कि मौसम के कारण दीयों को सुखाने की चिंता है. हर रोज बारिश भी काम में खलल डाल रही है. थोक बाजार में दीयों की कीमत : कारीगरों का कहना है कि थोक बाजार में एक हजार मिट्टी के दीपक की कीमत 600, 700 और 850 रुपये है.मिट्टी का दीया जलाने का धार्मिक महत्व मिट्टी के दीये का धार्मिक महत्व भी है. पूजा-पाठ से लेकर हर शुभ कार्य में मिट्टी के दीपक जलाये जाते हैं. मान्यता है कि मिट्टी के दीये से निकलने वाली रोशनी लोगों के जीवन में खुशियों का प्रतीक है. दीये जलाने से बरसात के बाद उत्पन्न कीड़े-मकोड़े इसमें जल जाते हैं. साथ ही इसका आर्थिक फायदा भी है. इस धंधे से जुड़े लोगों को रोजगार भी मिलता है.
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