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वित्तीय लेन-देन से जुड़ी कंपनियों की निगरानी करेगी राज्य सरकार

राज्य में चिटफंड कंपनियों के घोटाले की घटना सामने आयी थी और इसमें राज्य के लाखों लोगों ने अपनी गाढ़ी कमाई गवां दी है.

संवाददाता, कोलकाता

राज्य में चिटफंड कंपनियों के घोटाले की घटना सामने आयी थी और इसमें राज्य के लाखों लोगों ने अपनी गाढ़ी कमाई गवां दी है. इसलिए पश्चिम बंगाल सरकार प्रशासन पिछली घटनाओं से सीख लेते हुए एनबीएफसी कंपनियों को लेकर सतर्क हो गयी है. यही कारण है कि पश्चिम बंगाल सरकार अब इन एनबीएफसी पर निगरानी के लिए सिर्फ केंद्रीय नियामक संस्था के भरोसे रहना नहीं चाहती. राज्य सचिवालय के सूत्रों के अनुसार, राज्य में गैर-बैंक वित्तीय संस्थान (एनबीएफसी) खोले जाने के बाद इसके बारे में सभी विवरण आर्थिक अपराध निदेशालय (डीईओ) के पास पंजीकृत कराना होगा.

एनबीएफसी कंपनियों के बारे में अलग डेटा संग्रह केंद्र बनायेगी राज्य सरकार : इसके लिए डीईओ ने अलग डेटा संग्रह केंद्र बनाया है, ताकि यदि कोई एनबीएफसी कंपनी दिवालिया हो जाये या जमाकर्ताओं का पैसा वापस न करे तो उसके निदेशकों के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई की जा सके और कंपनी की सभी संपत्तियां और बैंक खाते जब्त किये जा सकें. गौरतलब है कि राज्य में एक दशक से भी अधिक समय पहले सारदा, रोज वैली और कई अन्य संदिग्ध कंपनियों से जुड़े घोटाले प्रकाश में आये थे. इस घटना से पूरे बंगाल में हंगामा मच गया था. इस चिटफंड घोटाले के कारण राज्य के लाखों जमाकर्ताओं का करोड़ों रुपये डूब गये थे. उन्होंने बिना अनुमति के बाजार से पैसा वसूलना शुरू कर दिया और जैसे ही इस घटना की जांच शुरू हुई, विभिन्न केंद्रीय नियामक एजेंसियों की भूमिका पर सवाल उठने लगे.

उस समय केंद्र ने पश्चिम बंगाल सरकार पर आरोप लगाया था कि राज्य प्रशासन ने इन कंपनियों के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई नहीं की और इसी कारण चिटफंड कंपनियों के कारोबार में तेजी आयी. यह देखना संबंधित नियामक संस्था की जिम्मेदारी है कि एनबीएफसी कंपनियां सेबी और आरबीआइ के नियमों के अनुसार धन जुटा रही हैं या नहीं. लेकिन इन सभी कंपनियों पर अपने कारोबार के एक बड़े हिस्से का ””प्रबंधन”” करके उसे चलाने का आरोप है. इसलिए इस बार राज्य सरकार अब केंद्र पर निर्भर नहीं रहना चाहती. वह दिल्ली की तरह एक अलग नियामक संस्था बनाना चाहती है. इस कारण से, नबान्न ने अपराध निदेशालय को विशेष जिम्मेदारी दी है.

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