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ये हैं राज्य के दो मंत्री, जिन्हें नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल में मिली है जगह

2019 में पहली बार सांसद बने सुकांत मजूमदार, जबकि मतुदा समुदाय में अच्छी पकड़ है शांतनु ठाकुर की

बालुरघाट से जीते हैं सुकांत मजूमदार

कोलकाता.

29 दिसंबर 1979 को जन्मे सुकांत मजूमदार के पिता सुशांत कुमार मजूमदार पश्चिम बंगाल सरकार के कर्मचारी थे. उनकी मां निवेदिता मजूमदार एक सरकारी प्राथमिक स्कूल की शिक्षिका थीं.

सुकांत मजूमदार ने उत्तर बंगाल यूनिवर्सिटी से बॉटनी विषय से एमएससी करने के बाद बीएड और पीएचडी की है. शिक्षा पूरी होने के बाद वह कुछ दिनों तक मालदा जिले में गौड़ बंग यूनिवर्सिटी में बॉटनी के शिक्षक भी रहे. 15 से अधिक पत्र-पत्रिकाओं में उनके शोध पत्र प्रकाशित हुए हैं.

वह भारतीय जनसंघ के पूर्व अध्यक्ष देबी दास चौधरी के संपर्क में आये और उन्हीं के निर्देशन में वह आरएसएस से जुड़े और वहां से भाजपा की राजनीति में आ गये. लंबे समय तक आरएसएस में सक्रिय रहने के बाद सुकांत ने 2010 के दशक में भाजपा ज्वाइन किया था.

वह काफी समय तक पार्टी संगठन में रह कर भी काम किये. साल 2019 में पहली बार भाजपा के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे. तब सुकांत मजूमदार ने तृणमूल की सांसद अर्पिता घोष को 33 हजार 293 वोटों से हरा कर वह पहली बार सांसद चुने गये.

20 सितंबर 2021 को भाजपा ने सुकांत मजूमदार को दिलीप घोष की जगह पश्चिम बंगाल भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया. बतौर लोकसभा सदस्य वह सूचना प्रौद्योगिकी संबंधी स्थायी समिति और याचिका समिति के सदस्य भी रहे.

सुकांत मजूमदार ने चुनाव आयोग को दिये शपथ पत्र में करीब एक करोड़ 25 लाख की संपत्ति का दावा किया है. हालांकि, इसमें उन्होंने 11 लाख 25 हजार की देनदारी भी गिनायी है. इस शपथ पत्र में उन्होंने अपने खिलाफ दर्ज एक दर्जन से अधिक मुकदमों का भी जिक्र किया है. हालांकि इनमें से किसी भी मुकदमे में अभी तक आरोप तय नहीं हुए हैं. उनके दादा-परदादा कृषि कार्य से जुड़े थे. वह खुद को किसान परिवार का सदस्य बताते हैं. मध्यमवर्गीय परिवार से आने वाले सुकांत मजूमदार के लिए दिल्ली का सफर आसान नहीं रहा है.

बनगांव सीट से विजयी हुए हैं शांतनु ठाकुर

भारत-बांग्लादेश के सीमा से सटे उत्तर 24 परगना के बनगांव लोकसभा क्षेत्र से विजयी भाजपा प्रत्याशी शांतनु ठाकुर एक बार फिर केंद्रीय मंत्री बन गये हैं. बनगांव के ठाकुरनगर के ठाकुरबाड़ी निवासी 42 वर्षीय शांतनु ठाकुर अखिल भारतीय मतुआ महासंघ के नेता हैं. उनकी मतुआ समुदाय में अच्छी पकड़ है. उनकी शैक्षणिक योग्यता स्नातक है. चुनाव हलफनामे के अनुसार, उनके पास कुल 3.3 करोड़ की संपत्ति और 1.7 करोड़ की देनदारी है. शांतनु ठाकुर ने अपनी वार्षिक आय 19.3 लाख घोषित की है. उनके पिता मंजुल कृष्ण ठाकुर और मां छवि रानी ठाकुर है. 2019 के आम चुनाव में वह परिसीमन के बाद इस निर्वाचन क्षेत्र से चुने जाने वाले पहले गैर-टीएमसी सांसद बने. 2011 में उनके पिता उत्तर 24 परगना के गाइघाटा विधानसभा सीट से तृणमूल कांग्रेस के विधायक चुने गये थे. उनके पिता राज्य के मंत्री भी रहे. तब शांतनु ठाकुर तृणमूल से जुड़े रहने के बावजूद राजनीति में सक्रिय नहीं थे. शांतनु ठाकुर तृणमूल से किनारा कर भाजपा में आ गये. पांच साल पहले उनकी दादी मतुआ समुदाय की कुल माता बीणापाणि देवी, जिन्हें ‘बड़ोमा’ के नाम से भी जाना जाता है, का निधन हुआ था. 2019 में शांतनु ठाकुर को भाजपा के टिकट पर बनगांव संसदीय सीट से लड़ने का मौका मिला. वह 687,622 वोट पाकर अपनी ही चाची अर्थात बड़ोमा की बड़ी बहू और तृणमूल कांग्रेस की प्रत्याशी ममता बाला ठाकुर को 11,594 वोटों से हराया था. फिर 2024 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने 719,505 वोट हासिल कर अपने प्रतिद्वंदी तृणमूल प्रत्याशी विश्वजीत दास, जो 2021 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर विधायक चुने जाने के बाद तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गये थे, को 70 हजार से अधिक वोटों से हरा दिया. शांतनु ठाकुर ने मतुआ वोटरों पर अच्छी पकड़ के साथ ही भाजपा में अपनी छवि भी मजबूत कर ली है. 2019 में बनगांव लोकसभा सीट से जीत हासिल करने के बाद जुलाई 2021 में केंद्रीय कैबिनेट में फेरबदल के तहत उन्हें केंद्रीय बंदरगाह, जहाजरानी और जल मार्ग मंत्रालय के राज्य मंत्री का प्रभार दिया गया था. 2024 में दूसरी बार जीत के बाद फिर से वह मंत्री नियुक्त किये गये हैं.

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