Economic Survey 2024-25: संसद में शुक्रवार को पेश की गई आर्थिक समीक्षा 2024-25 में कृत्रिम मेधा (एआई) के बढ़ते प्रभाव और इसके सामाजिक व आर्थिक दुष्प्रभावों पर विचार करते हुए नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता को रेखांकित किया गया है. समीक्षा में एआई के कारण होने वाले श्रमबल में बदलाव के संदर्भ में सरकार से पुनर्विचार की अपील की गई है, ताकि इसका संतुलित प्रभाव सुनिश्चित किया जा सके.
एआई के बढ़ते प्रभाव पर पुनर्विचार की आवश्यकता
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि एआई का असर न केवल वैश्विक श्रम बाजार पर, बल्कि भारत में भी महसूस किया जाएगा, जहां कम प्रति व्यक्ति आय और बड़ी जनसंख्या के कारण यह समस्या अधिक गंभीर हो सकती है. समीक्षा ने सुझाव दिया है कि एआई को सही तरीके से अपनाने के लिए कंपनियों को संवेदनशील तरीके से इसकी शुरुआत करनी होगी, अन्यथा नीति हस्तक्षेप और राजकोषीय संसाधनों की मांग अपरिहार्य होगी.
आईएमएफ का प्रस्ताव : एआई पर टैक्स लगाये जाने की जरूरत
रिपोर्ट में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के एक दस्तावेज का हवाला देते हुए कहा गया है कि सरकारें उन कंपनियों पर कर लगा सकती हैं, जो एआई का इस्तेमाल श्रमबल के स्थान पर करती हैं, ताकि इस बदलाव से होने वाले लाभ का हिस्सा सार्वजनिक कल्याण में लगाया जा सके. हालांकि, समीक्षा ने चेतावनी दी है कि ऐसा कदम देश की वृद्धि क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है.
शिक्षा और कार्यबल कौशल में निवेश की आवश्यकता
पीटीआई भाषा की रिपेार्ट के अनुसार, आर्थिक समीक्षा में यह भी उल्लेख किया गया कि भारत को एआई के लाभ से अधिकतम लाभ उठाने के लिए शिक्षा और कार्यबल कौशल में महत्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता है. इसके लिए सरकार, निजी क्षेत्र और शिक्षा जगत के बीच त्रिपक्षीय समझौता होना चाहिए ताकि एआई-संचालित उत्पादकता का लाभ सभी तक पहुंचे और समावेशी विकास सुनिश्चित हो सके.
भारत की जनसांख्यिकीय बढ़त का लाभ उठाने की अपील
समीक्षा में भारत की जनसांख्यिकीय बढ़त और विविध आर्थिक परिदृश्य को एआई के लाभ उठाने के लिए एक अनुकूल स्थिति के रूप में देखा गया है. हालांकि, इसके लिए जरूरी है कि शिक्षा और कौशल निर्माण में दीर्घकालिक निवेश किया जाए, ताकि भारत भविष्य में एआई के अवसरों का सही तरीके से लाभ उठा सके.