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कायाकल्प की सूत्रधार बनी संचार और आइटी क्रांति

वर्ष 1947 में भारत को आजादी मिली, तो आम आदमी की संचार जरूरतें डाकघरों और तार घरों से पूरी होती थीं. देश में तब 23,334 डाकघर और 80 हजार लैंडलाइन फोन थे. हमारा टेली घनत्व तब महज 0.02 प्रतिशत था. आज देश में 93.51 करोड़ लोग इंटरनेट उपयोग कर रहे हैं. ब्रॉडबैंड स्पीड में हम दुनिया में 20वें नंबर पर और जर्मनी, जापान और ब्रिटेन से आगे हैं. प्रतिमाह औसत डाटा उपयोग 22.5 जीबी है, जो 5जी के विस्तार के साथ और बढ़ेगा.

अरविंद कुमार सिंह
वरिष्ठ पत्रकार

आधुनिक विश्व के आधारभूत ढांचे में संचार क्षेत्र का एक विशिष्ट स्थान है. समय के साथ तमाम नयी विशिष्टताओं और उपयोगिता से संपन्न संचार व सूचना क्रांति ने दुनिया को बेहद करीब लाने के साथ सामाजिक व आर्थिक विकास में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है. कई चुनौतियों के बावजूद 120 करोड़ फोन उपभोक्ताओं के साथ आज भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा दूरसंचार बाजार बन चुका है. संचार और सूचना क्रांति की आभा से गरीब की झोपड़ी से लेकर अट्टालिकाएं सभी आलोकित हैं.

वर्ष 2014 संचार इतिहास का अनूठा साल था, जब विश्व की सात अरब आबादी से भी अधिक मोबाइल फोनों का आंकड़ा पार हो गया. इसमें से भारत में 95 करोड़ मोबाइल फोन पहुंच गये थे, पर आज स्थिति अलग है. हमारे कुल फोन उपभोक्ताओं में 97 प्रतिशत मोबाइल और 3 प्रतिशत लैंडलाइन या स्थिर फोन हैं. देश का टेली घनत्व 85.65 फीसदी हो गया है. इसमें शहरी घनत्व 133.58 फीसदी, जबकि ग्रामीण 58.88 फीसदी है. 2014 की तुलना में इंटरनेट उपयोगकर्ताओं में 1386 फीसदी की वृद्धि हुई है.

आज देश में 93.51 करोड़ लोग इंटरनेट उपयोग कर रहे हैं. ब्रॉडबैंड स्पीड में हम दुनिया में 20वें नंबर पर और जर्मनी, जापान और ब्रिटेन से आगे हैं. प्रतिमाह औसत डाटा उपयोग 22.5 जीबी है, जो 5जी के विस्तार के साथ और बढ़ेगा. संचार और सूचना क्रांति की शक्ति से प्रशासन के कई स्तंभों को मजबूती मिली है. इसकी बदौलत भारतीय डाक विभाग ई-कॉमर्स में नयी संभावनाओं को तलाश रहा है. दरअसल, इस क्रांति का आधार स्मार्टफोन हैं, जो वे सारे काम कर रहे हैं, जो आप सोच सकते हैं. संचार क्षेत्र में सबसे क्रांतिकारी साधन के रूप में वे उभरे हैं और इनसे ही सोशल मीडिया की धार पैनी हुई है और खबरों को भी पंख लगे हैं. कारोबार से लेकर राजनीति सब पर इसका गहरा असर दिख रहा है. पढाई-लिखाई से लेकर ऑनलाइन शाॅपिंग तक सब पर असर नजर आ रहा है.

वर्ष 1947 में भारत को आजादी मिली, तो आम आदमी की संचार जरूरतें डाकघरों और तार घरों से पूरी होती थीं. देश में तब 23,334 डाकघर और 80 हजार लैंडलाइन फोन थे. हमारा टेली घनत्व तब महज 0.02 प्रतिशत था. फोन आम आदमी की हैसियत से दूर था और टेलीग्राम केवल आपात स्थिति में काम आता था. आजादी के बाद 34 साल के नियोजित प्रयासों के बाद भी देश में फोनों की कुल संख्या में 20.50 लाख से अधिक नहीं हो सकी. डाकघरों की जरूरत और उपयोगिता बनी रही और उनका व्यापक विस्तार हुआ, पर संचार और सूचना क्रांति का वास्तविक आधार राजीव गांधी के प्रधानमंत्री काल में 1984 में सी-डाट की स्थापना के बाद रखा गया. वर्ष 1986 में एमटीएनएल और बीएसएनएल बना. सीमित आधार पर दिल्ली में मोबाइल कारफोन लगे. वर्ष 1994 में राष्ट्रीय दूरसंचार नीति बनी और 1995 में निजी क्षेत्र को दूरसंचार सेवाएं संचालित करने के लिए अनुमति मिली तो मोबाइल, एसटीडी, आइएसडी, टेलीकांफ्रेंसिंग और वॉयस मेल जैसी सेवाएं तेजी से विकसित होने लगीं. शुरू में मोबाइल बहुत महंगे थे और आमलोगों में इसे लेकर खास उत्साह नहीं था. वर्ष 2000 में उदार नीति बनी, तो भी 2001 तक 50 लाख से कम मोबाइल फोन लगे. इनकी संख्या फिर तेजी से बढ़ कर 2014 तक 95 करोड़ हुई और 2024 तक 120 करोड़ पर पहुंच गयी. सरकारी कंपनियों को केवल 8.54 प्रतिशत हिस्सेदारी तक समेट कर निजी कंपनियों ने अपनी हिस्सेदारी 91.46 प्रतिशत तक कर ली है.

हालांकि, देश के 6.44 लाख गांवों में से 22,963 में अभी मोबाइल कवरेज नहीं है. नक्सल प्रभावित कई जिलों, आकांक्षी जिलों आदि की अलग दिक्कतें हैं, पर भारतनेट ने ग्रामीण क्षेत्रों का नक्शा बदला है. कुल 4.67 लाख गावों समेत देश भर में 5.88 लाख सामान्य सेवा केंद्रों ने इ-प्रशासन, वित्तीय सेवाएं, शिक्षा, टेलीमेडिसिन जैसी 400 सेवाएं नागरिकों तक सुलभ कराने का रास्ता बनाया है. ई-श्रम, ई-चालान, ई-अस्पताल, ई-ऑफिस और ई-विधान आदि ने तस्वीर को बदल दिया है. कृत्रिम बुद्धिमत्ता के क्षेत्र में भी सरगर्मी दिख रही है.

मौजूदा संचार क्रांति के पहले स्थिर फोन रखने वाले और अधिक चिट्ठियां आने वाले घरों की अलग हैसियत थी. अक्तूबर, 2004 में भारत के इतिहास में पहली बार मोबाइल फोनों ने स्थिर फोनों को पछाड़ दिया. चमत्कारिक प्रगति मोबाइल फोनों के कारण हुई. पहले मोबाइल 2जी प्रौद्योगिकी पर आधारित थे, पर 2010 में 3जी, 2016 में 4जी आया. अब 5जी का दौर है. पहले की सेवाओं में वाॅयस सेवाएं अच्छी थीं, पर 3जी के बाद वीडियो, ईमेल और सोशल मीडिया क्रांति में मदद मिली. पांचवीं पीढ़ी तो सबसे ताकतवर है. ये उपलब्धियां हैं, पर ऑक्सफैम ने भारत में डिजिटल डिवाइड पर 2022 में एक रिपोर्ट में पाया कि देश में महज 31 प्रतिशत महिलाओं के पास मोबाइल फोन है. जिनके पास हैं भी उनमें अधिकतर के पास पुरुषों से हल्के और सस्ते हैंडसेट हैं. वे उसका इस्तेमाल सीमित फोन कॉल और टेक्स्ट संदेश के लिए करती हैं. कई अन्य कमजोरियां गांव और शहरों के बीच भी उजागर हुई हैं.

इसके साथ यह भी सच है कि दूरसंचार और आइटी क्षेत्र सकल घरेलू उत्पाद में 16.5 प्रतिशत योगदान देते हुए चमत्कारिक प्रगति की ओर अग्रसर है. इस क्रांति का फायदा गांवों की तुलना में शहरों को अधिक मिला. राष्ट्रीय दूरसंचार नीति 2012 में ग्रामीण टेली घनत्व  2017 तक 70 और 2020 तक 100 फीसदी करने की परिकल्पना थी, पर यह 60 प्रतिशत पार नहीं कर सकी है. हालांकि, अब गांवों में भी संचार क्रांति का आधार तेजी से विकसित हो रहा है.

भारत में टेलीफोनों से पहले इलेक्ट्रिक टेलीग्राफ या तार आ चुका था, जो 1855 में आम आदमी के उपयोग के लिए आने लगा. डलहौजी ने तार को ‘इंजन ऑफ पावर’ कहा था. अंग्रेजी राज में दूरसंचार क्षेत्र में प्रगति धीमी रही, जबकि पहला टेलीफोन एक्सचेंज 1882 में ओरिएंटल टेलीफोन कंपनी ने खोला था. कोलकाता, चेन्नई, मुंबई, रंगून और कराची टेलीफोन सेवा से जुड़े पर सबसे ज्यादा 102 फोन तब कोलकाता में लगे थे. 1921 तक कुल फोनों की संख्या केवल 10,703 और 1947 तक 80 हजार तक पहुंची. आजादी के बाद हर तालुका मुख्यालय से लेकर 5,000 से अधिक की आबादी पर टेलीफोन एक्सचेंज लगाने की योजना बनी, लेकिन आजादी के पहले आठ सालों में केवल 15,000 नये फोन लग सके. तब कई नयी योजनाओं के साथ टेलीफोन लोन योजना भी शुरू की गई थी, लेकिन आम लोगों के लिए इन फोनों या तार से अधिक महत्व डाकघरों का रहा, जो चिट्ठी पत्री और मनीऑर्डर से लेकर उनके बचत बैंक की भूमिका निभाते रहे. संचार क्षेत्र पर सबसे लंबा राज वैयक्तिक चिट्ठियों का रहा. तारों या स्थिर फोनों से इनका कुछ नहीं बिगड़ा पर मोबाइल फोनों ने इन पर बुरा असर डाला. फिर भी आज भी भारत में विश्व में सबसे अधिक 1,64,972 डाकघर हैं. इनमें से 1,49,478 डाकघर ग्रामीण अंचलों की धड़कन बने हुए हैं. चिट्ठियां सीमित हुईं पर वित्तीय सेवाओं से लेकर ई-कॉमर्स में डाकघरों की भूमिका कायम है. ग्रामीण और कस्बाई अंचलों में डाक, बैंकिंग, जीवन बीमा और मनीऑर्डर के साथ अन्य रिटेल सेवाओं के माध्यम से डाक विभाग ने पैठ बना रखी है. लघु बचत योजनाओं और नागरिक केंद्रित आधार समेत कई सेवाओं में इसने विस्तार किया है. खुद को संचार और सूचना क्रांति की ताकत के साथ खुद को लैस करते हुए डाकघरों ने 2018 में इंडिया पोस्ट पेमेंट बैंक स्थापित किया. दो लाख पोस्टमैनों को स्मार्टफोन और बायोमैट्रिक डिवाइस से लैस कर नयी ताकत दी गई है.

संचार क्रांति की आंधी में पेजर से लेकर फैक्स कहां उड़ गये पता नहीं, टेलीग्राम भी बंद हो गये. पीसीओ पर लगने वाली लाइनें खत्म हो गयीं, रेलवे स्टेशनों पर टिकट की लाइनों से लेकर तमाम सेवाओं की लाइनों को सूचना और संचार क्रांति ने सीमित कर दिया. मोबाइल फोनों और उसके साथ जुड़ने वाले उपकरणों ने खुद को जनता के जीवन का अभिन्न अंग बना दिया है. पत्रकारिता से लेकर हर क्षेत्र पर इसका असर दिख रहा है. कुछ अच्छा, तो कुछ बुरा असर. इस क्रांति में एआई या कृत्रिम बुद्धिमत्ता कौन-सा नया आयाम जोड़ेगी और उसका क्या असर होगा, फिलहाल उसका इंतजार है.

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