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Meta Job: भारतीय इंजीनियर ने छोड़ दी 6.5 करोड़ की नौकरी, शुरू किया अपना स्टार्टअप

Meta Job - स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने वाले राहुल ने बताया कि उन्हें अपने सहकर्मियों से मदद लेने में हिचक महसूस होती थी. उन्हें लगा कि यह उन्हें ऐसे व्यक्ति के रूप में करार देगा, जो वरिष्ठ इंजीनियर बनने के लायक नहीं है.

Facebook Job : भारतीय इंजीनियर राहुल पांडेय ने चिंता के कारण मेटा में 6.5 करोड़ रुपये सालाना पैकेज वाली नौकरी छोड़ दी. यह नौकरी उन्होंने पिछले साल छोड़ी थी, लेकिन इसका खुलासा उन्होंने अब जाकर अपने लिंक्डइन प्रोफाइल पर किया है. उन्होंने लिखा, मेरा सफर 100 डॉलर के बिल गिनने तक का सीधा सफर नहीं था. असल में फेसबुक ज्वाइन करने के बाद पहले छह महीने तक मैं बेहद चिंतित रहा. एक सीनियर इंजीनियर के रूप में मुझे इम्पोस्टर सिंड्रोम महसूस हुआ. कंपनी की संस्कृति और टूलिंग के अनुकूल होने के लिए मुझे संघर्ष करना पड़ा.

खुद को कंपनी में काम करने लायक नहीं मानने लगे थे राहुल

स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने वाले राहुल ने बताया कि उन्हें अपने सहकर्मियों से मदद लेने में हिचक महसूस होती थी. उन्हें लगा कि यह उन्हें ऐसे व्यक्ति के रूप में करार देगा, जो वरिष्ठ इंजीनियर बनने के लायक नहीं है. उन्हें लगता था कि वह कंपनी में सीनियर इंजीनियर के तौर पर काम करने लायक नहीं हैं.

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डटे रहे, प्रदर्शन सुधारने के लिए किया दिन-रात प्रयास

उनके फेसबुक का हिस्सा बनने के बाद कंपनी को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा. उस दौरान राहुल के कई साथियों ने नौकरी छोड़ दी, लेकिन वे डटे रहे. बिजनेस इनसाइडर को दिये इंटरव्यू में राहुल ने बताया, हालांकि, मुझे कंपनी में केवल एक साल ही हुआ था, इसलिए मुझे लगा कि नौकरी छोड़ना जल्दबाजी होगी. तब मैंने अपने प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिए दिन-रात प्रयास किया. इसके दो साल बाद ही राहुल अपनी प्रोडक्टिविटी के चरम पर पहुंच गये.

इंटरनल टूल बनाया, जिसने की इंजीनियर्स की काफी मदद

राहुल ने इस दौरान एक इंटरनल टूल बनाया, जिसे पूरे ऑर्गनाइजेशन में अडॉप्ट किया गया. इससे इंजीनियर्स का काफी समय बचा. इसके बाद उनका प्रोमोशन हुआ. सैलरी में बढ़ोतरी के अलावा उन्हें लगभग दो करोड़ की इक्विटी भी मिली. हालांकि, इसके बाद कोविड-19 महामारी आयी और पांडेय ने फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सऐप पैरेंट के बाहर विकल्प तलाशना शुरू कर दिया.

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अंतिम वर्ष में निभायी एक प्रबंधक की भूमिका

राहुल बोले, अपने अंतिम वर्ष में मैं एक प्रबंधक की भूमिका में आ गया और एक ही संगठन में तीन साल के बाद टीम बदल ली. मेरे पास न केवल अपना काम पूरा करने के लिए टेक्नोलॉजी का नॉलेज था, बल्कि प्रोजेक्ट्स को लीड करने के लिए मेरे पास कॉन्टैक्ट्स भी थे.

राहुल के पास है खुद का स्टार्टअप टैरो

टेक फील्ड में एक दशक गुजारने के बाद राहुल ने वित्तीय आजादी हासिल कर ली थी. उन्होंने महसूस किया कि इंजीनियरिंग के अलावा वह और कितना कुछ सीख सकते हैं. आखिरकार पिछले साल जनवरी में राहुल ने मेटा से इस्तीफा दे दिया और इंजीनियरों को करियर आगे बढ़ाने में मदद करने के लिए खुद का स्टार्टअप टैरो खोला.

क्या होता है इम्पोस्टर सिंड्रोम?

यह एक ऐसी बीमारी है, जिसमें लोग खुद की ही उपलब्धियों, काबिलियत और कामयाबी पर शक करने लगते हैं. उन्हें लगने लगता है वो किसी लायक नहीं है और उनकी हासिल कि गई हर कामयाबी धोखा है. इस तरह के सिंड्रोम का सामना करनेवाले लोग खुद की सफलता पर संदेह करने लगते हैं. यहां तक ​​कि जब ऐसा शख्स बेहद अहम कामयाबी पाता है, तब भी वह अपनी उपलब्धियों को पहचानने में नाकामयाब रहता है. इस सफलता का जश्न मनाने के बजाय वह चिंता में डूब जाता है. उसे लगता है कि उसने जो हासिल किया है वह उसे अनायास ही किस्मत के बल पर मिल गया है. उसे लगता है कि दूसरों को यह सच्चाई पता चल जाएगी कि जो उसे मिला है उसमें उसकी काबिलियत का फल नहीं है.

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