झारखंड में लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूर अपने घर लौट रहे है़ं राज्य से 12 लाख से अधिक रोजी-रोटी के लिए बाहर काम कर रहे थे़ कोरोना महामारी ने परिस्थितियां बदल दी है़ मजदूरों की नौकरी छीन गयी है़ पांच लाख से ज्यादा मजदूर अपने घर लौट भी चुके है़ं राज्य सरकार के लिए इन मजदूरों के लिए पुनर्वास व रोजगार बड़ी चुनौती होगी़
यह केवल सरकार के बूते संभव भी नहीं है़ इसमें राज्य के दलों के सहयोग से औद्योगिक क्षेत्र में एक सकारात्मक वातावरण बनाना होगा़ प्रवासी मजदूरों के रोजगार के मुद्दे पर प्रभात खबर के ब्यूरो प्रमुख आनंद मोहन ने कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी व पूर्व केंद्रीय मंत्री आरपीएन सिंह से बातचीत की़
केंद्र को अपना खजाना खोल देना चाहिए : प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी आरपीएन सिंह का कहना है कि इस महामारी में प्रांतों के लिए केंद्र को खुले दिल से अपना खजाना खोलना चाहिए़ प्रांतों का जो हक है, कम से कम उसे देना चाहिए़ जीएसटी सहित दूसरे कई टैक्स बकाया है़ केंद्र सरकार कम-से-कम इस संकट की घड़ी में आगे आये़ प्रवासी मजदूर, मध्यम वर्ग सभी कष्ट में है़ं केंद्र सरकार को बताना चाहिए कि कितने पैसे उसके पास है, कितना वह अलग-अलग प्रांतों को देना चाहते है़ं
रोजगार देना चुनौती है पर रास्ता निकल सकता है : कांग्रेस प्रभारी ने कहा कि प्रवासी मजदूरों को रोजगार देना चुनौती है़ लेकिन रास्ता निकल सकता है़ एक बेहतर मैनेजमेंट की जरूरत है़ कारगर योजना बनाने की जरूरत है़ झारखंड में हमारे मंत्री आलमगीर आलम ने मनरेगा पर नयी योजनाएं ला कर एक रास्ता निकाला है़ इसी तरह की योजना की आज आवश्यकता है़ झारखंड देश का पहला राज्य है, जिसने प्रवासी मजदूरों को पैसे सीधे उनके खाते में भेजा है़ प्रवासी मजदूरों के लिए प्राथमिकता के आधार पर काम करने की जरूरत है़
स्किल मैनेजमेंट से काम दिया जा सकता है, रिकॉर्ड तैयार हो : कांग्रेस प्रभारी श्री सिंह ने कहा कि प्रवासी मजदूर के पास हुनर है़ इनके पास काम करने की क्षमता है़ इस क्षमता का सदुपयोग हर राज्य कर सकता है़ स्किल मैनेजमेंट के तहत काम दिया जा सकता है़ प्रवासी मजदूरों का रिकॉर्ड बनाया जाना चाहिए़ झारखंड सरकार इस दिशा में शायद काम भी कर रही है़ मेरा मानना है कि ऑल इंडिया में इन मजदूरों को सुविधा मिलनी चाहिए़
कोई ऐसी नीति बने, जिससे दूसरे प्रांतों में भी रहने के बाद प्रवासी मजदूर केंद्रीय योजना का लाभ ले सके़ं केंद्र सरकार को अलग-अलग शहरों में रहनेवाले प्रवासी मजदूरों के लिए एक समान नीति बनानी चाहिए़ ये मजदूर अपने खून-पसीने से शहर और गांव को सींच रहे है़ं आज इनका कोई रिकॉर्ड नहीं है.
महीने भर देश ने प्रवासियों के दुख भरे दृश्य देखे : आरपीएन सिंह ने कहा कि कोरोना महामारी में प्रवासी मजदूरों ने सबसे ज्यादा कष्ट सहे है़ं इनके साथ बाहरी जैसा व्यवहार हुआ है़ केंद्र सरकार ने विदेशों में रहनेवाले एक लाख लोगों को लाने का काम किया, लेकिन अपने ही देश के मजदूरों को भाग्य भरोसे छोड़ दिया़
मजदूर जिस तरह पैदल, साइकिल से हजारों किमी चल दिये, ऐसा भयावह दृश्य देश ने देखा है़ अब इनको रोजगार देने की बात है, तो केंद्र सरकार ने प्रांतों पर छोड़ दिया है़ मनरेगा में ना समय बढ़ाया ना वेतन बढ़ाया़ मनरेगा का स्कोप खत्म किया जा रहा है, यह मजदूरों के लिए जीविका का बड़ा आधार है़