फ़िल्म-आदिपुरुष
निर्माता – टी सीरीज
निर्देशक – ओम राउत
कलाकार – प्रभास, सैफ अली खान कृति सेनन, सनी सिंह,सोनल चौहान, देवदत्त नागे, वत्सल सेठ और अन्य
प्लेटफार्म – सिनेमाघर
रेटिंग – दो
छोटे पर्दे पर महाकाव्य रामायण की महागाथा अब तक कई बार दिखायी गयी है, लेकिन यह पहला मौका है. जब यह महाकाव्य रुपहले पर्दे पर जीवंत किया गया है. यही वजह है कि निर्देशक ओम राउत की फिल्म आदिपुरुष शुरुआत से ही चर्चा में बनी हुई है और आखिरकार आज फिल्म ने दस्तक दे दी है. निर्देशक ओम राउत ने अपनी पिछली पीरियड ड्रामा फिल्म तानाजी को मसाला एंटरटेनर के तौर पर पेश किया था और उन्होंने महाकाव्य रामायण को भी वही ट्रीटमेंट दिया है. यही मेकर्स की सबसे बड़ी चूक साबित हुई है. महाकाव्य रामायण को लेकर उनका कमजोर दृष्टिकोण, किरदारों का हल्का चरित्र चित्रण से लेकर वीएफएक्स और संवाद सभी कुछ बेहद स्तरहीन रह गए हैं. जिससे आदिपुरुष महाकाव्य रामायण के साथ न्याय नहीं कर पायी है. पर्दे पर मामला बोझिल वाला बन गया है.
रामायण की कहानी हम सुनते हुए बड़े हुए हैं और आनेवाली कई पीढ़ियों तक यह कहानी ऐसे ही आगे बढ़ती जायेगी, लेकिन इस फिल्म में जिस तरह से कहानी को पर्दे पर परिभाषित किया गया है. सबकुछ बहुत जल्दी-जल्दी में घटित होता जाता है. वह किरदारों और उनके बीच के जुड़ाव को स्थापित भी नहीं कर पाता है. इतने बड़े महाकाव्य को तीन घंटे में पर्दे पर प्रस्तुत करना आसान नहीं है, लेकिन मेकर्स को समझने की ज़रूरत थी कि सिनेमा का मतलब ही जुड़ाव है और यह फिल्म किरदारों को उस तरह से पर्दे पर नहीं ला पायी है. फिल्म का फर्स्ट हाफ सीता हरण और राम द्वारा वानरों की सेना बनाकर लंका पहुंचने तक पहुंचती है. फिल्म का दूसरा भाग राम रावण युद्ध पर पूरी तरह से समर्पित है, जो जरूरत से ज़्यादा खिंच गया है. जिससे फिल्म एक वक़्त के बाद उबाऊ लगने लगती है.
फिल्म को 15 से 20 मिनट तक कम किया जा सकता है. फिल्म में राम, सीता और लक्ष्मण के किरदार को राघव, जानकी और शेष कहा गया है, लेकिन इन नामों के इस्तेमाल से मेकर्स को जनमानस में बसे रामायण से अजीबोगरीब सिनेमैटिक लिबर्टी लेने की छूट नहीं मिल जाएगी. फिल्म को काले अंधेरे में शूट करना भी बेहूदा प्रयोग लगता है. फिल्म का ट्रीटमेंट मार्वल सीरीज और वॉर फॉर द प्लेनेट ऑफ़ एप की फिल्मों वाला है. रामायण को ग्लोबली लोगों तक जोड़ने के लिए हमें ओरिजिनल कुछ करने की ज़रूरत थी नहीं. फिल्म के संवाद में एक बार भी जय श्री राम का नारा नहीं है, यह पहलु भी अखरता है. फिल्म के गाने में ज़रूर इसका जिक्र है. फिल्म के गिने-चुने अच्छे पहलुओं में इसका संगीत आता है. इसका श्रेय संगीतकार अजय अतुल को जाता है. फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक भी ठीक बन पड़ा है.
राम सौम्यता का नाम है, जो शत्रु से भी शत्रुता नहीं रखता है , लेकिन यहां पर राम बाहुबली के अंदाज में वानरों की सेना को युद्ध में दुश्मन को धूल चटाने के लिए प्रेरित करते हुए दिखे हैं. प्रभास ने एक्टर के तौर पर अच्छा काम किया है, लेकिन वह भारतीय जनमानस में बसे राम नहीं बल्कि बाहुबली के अमरेंद्र बाहुबली के किरदार के ज़्यादा करीब दिखें हैं. अभिनेत्री कृति सेनन पर्दे पर खूबसूरत तो नजर आयी है, लेकिन उनके किरदार में जानकी की चित-परिचित छवि गायब है. सैफ अली खान अपने किरदार के सबसे करीब नज़र आए हैं, लेकिन उनके किरदार को इतना कमजोर लिखा गया है कि वह पर्दे पर कुछ यादगार नहीं कर पाया है. रावण को सिर्फ एक खलनायक के तौर पर ही फिल्म में दिखाया गया है. यह बात भी समझ नहीं आती है कि फिल्म के पहले भाग में रावण का किरदार टेढ़ा होकर चलता है और सेकेंड हाफ में फिर वह नार्मल चलने लगता है. वत्सल सेठ, सनी सिंह और देवदत्त अपने किरदार में ठीक लगे हैं.
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फिल्म के ट्रेलर लॉन्च से ही फिल्म के वीएफएक्स की जमकर आलोचना हुई थी. इस पर फिर से काम किया गया था, लेकिन दूसरी बार काम करने के बाद भी फिल्म वीएफएक्स परदे पर वह असर नहीं ला पाया है, जैसी उम्मीद थी. किरदारों का फ्लोर से कांटेक्ट ही नहीं है. किरदार और उनकी दुनिया आपस में मेल नहीं खाती है. रावण की लंका सोने की थी, यही हम सुनते हुए बड़े हुए हैं, लेकिन यहां लंका गेम ऑफ़ थ्रोन्स के ज़्यादा करीब लगती है और रावण और उसके लोगों का लुक भी, उससे ही प्रेरित लगता है. साउथ की फिल्म काशमोरा, जो अब तक डब वर्जन में कई बार टीवी पर दिख चुकी है. उसके विलेन राज नायक से भी रावण काफी मेल खाता है. यह बात भी अखरती है. वीएफएक्स के अलावा इस फिल्म की सबसे बड़ी खामी इसके संवाद हैं. उर्दू शब्दों का इस्तेमाल किया गया है. काल के लिए आप कालीन बिछा रहे हैं. ये संवाद एक बार के लिए आप नजरअंदाज कर सकते हैं, लेकिन रामायण जैसे महाकाव्य के पात्र अगर ये कहे कि एक सांप ने शेष नाग को लम्बा कर दिया या जो हमारी बहनों को हाथ लगाएगा. हम उसकी लंका लगा देंगे. जैसे संवादों को आप चाहकर भी नज़रअंदाज नहीं कर सकते हैं. मनोज मुन्तशिर ने यहाँ बेहद निराश किया है.