लोकसभा चुनाव को लेकर यूपी में सपा और कांग्रेस के बीच गठजोड़ को लेकर बात बनने की उम्मीद कम होने के संकेत हैं. इसी के चलते सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव कानपुर संसदीय सीट से प्रत्याशी उतारने को लेकर गंभीर हो गए हैं. जिला इकाई से कहा गया है कि बूथ स्तर पर तैयारी पूरी रखें. जिला अध्यक्ष समेत दोनों विधायकों से लोकसभा प्रत्याशी के लिए संभावित नाम भी पूछे गए हैं. सपा जिला अध्यक्ष फजल महमूद ने बताया कि उन्होंने संभावित प्रत्याशी के नाम और चुनावी तैयारी की बाबत रिपोर्ट सौंपने के लिए पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव से समय मांगा है. 26 नवंबर को माती (कानपुर देहात) में एक सभा में वह कानपुर होते हुए जाएंगे. इस दौरान शहर संगठन जज़्मों में उनके स्वागत में ताकत का प्रदर्शन करेगा.
सपा और कांग्रेस के बीच मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के बाद से तल्खी बढ़ती जा रही है. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय को चिरकुट नेता कहने के बाद कांग्रेस नेतृत्व ने राय के बयानों पर रोक न लगाने के संकेत दिए हैं. इसी के बाद अजय राय भी अब बेलौस टिप्पणी करने लगे. कांग्रेस को लगता है कि यूपी में दलित और मुस्लिम वोट उसके पाले में फिर लौट रहा है. बसपा से नजदीकी में पार्टी को चुनावी लाभ दिख रहा है. सपा भी यह बात समझ रही है. ऐसे में जुबानी जंग के चलते लगता नहीं है कि सपा और कांग्रेस जल्दी एक मंच पर आएंगे. बसपा के साथ कांग्रेस का चुनावी गेम बनने का समीकरण भी अभी दूर की कौड़ी है.
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फिलहाल कानपुर संसदीय सीट को लेकर कांग्रेस और सपा के बीच खासी तनातनी है. श्री प्रकाश जायसवाल की हैट्रिक तब लगी थी जब मुकाबले में सपा, बसपा और भाजपा तीनों पार्टियों मैदान में थी. वर्ष 2014 और 2019 में कांग्रेस भले ही चुनाव हार गई हो पर दावा किया जाता है कि उसका वोट प्रतिशत बढ़ा है. 2017 के विधानसभा चुनाव में कानपुर की आर्य नगर और सीसामाऊ दो विधानसभा सीटों पर सपा के दो विधायक जीते थे. 2022 के चुनाव में संख्या बढ़कर तीन हो गई. इस चुनाव में सपा ने एक सीट छावनी कांग्रेस से छीन ली. महापौर और पार्षदी चुनाव में पार्टी ने खासी बढ़त हासिल की है. सपा के दावा का यही प्रमुख कारण है. अखिलेश यादव ने जिला अध्यक्ष फजल महमूद, विधायक अमिताभ बाजपेई और मोहम्मद हसन रूमी से स्पष्ट कहा है कि कानपुर सीट से सपा लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी लड़ाएगी. जिला अध्यक्ष और विधायक रूमी ने इसकी पुष्टि की है.