Allahabad High Court News: यूपी में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में प्रदेश सरकार और उत्तर प्रदेश बार काउंसिल को आपराधिक केस में आरोपित या सजायाफ्ता व्यक्ति को वकालत का लाइसेंस देने पर रोक लगाने का आदेश दिया है. कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा, ‘यह अलार्मिंग स्थिति है कि अपराधी वकील बन रहे हैं.’ इसके साथ ही उच्च न्यायालय ने कहा है कि बार काउंसिल आवेदन फॉर्म में ही अपराध की पूरी जानकारी दर्ज किए जाने की प्रक्रिया अपनाएं. ताकि गुमराह करते हुए वकालत का लाइलेंस हासिल नहीं किया जा सके. पुलिस रिपोर्ट आने के बाद ही आवेदन पर निर्णय किया जाए. वहीं, यदि तथ्य छिपाने की बात सामने आए तो लाइलेंस निरस्त कर दिया जाए. यह आदेश न्यायमूर्ति एसडी सिंह और न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की खंडपीठ ने अधिवक्ता पवन कुमार दुबे की याचिका पर दिया है.
उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह आदेश 14 आपराधिक केसों का इतिहास और चार केस में सजायाफ्ता विपक्षी को वकालत का लाइसेंस देने के खिलाफ शिकायत पर बार काउंसिल के निर्णय करने में देरी को देखते हुए दिया है. हाईकोर्ट ने विपक्षी जय कृष्ण मिश्र के खिलाफ याची की शिकायत को तीन महीने में निस्तारित करने का निर्देश बार काउंसिल को दिया है.
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हाईकोर्ट ने सख्त लहजे में कहा है कि ऐसे लोगों को वकालत का लाइसेंस दिया जाता रहा तो यह विधि व्यवसाय ही नहीं समाज के लिए भी यह नुकसानदायक होगा. उच्च न्यायालय ने आवेदन में खुलासे की प्रक्रिया को लंबित और दाखिल होने वाले सभी आवेदनों पर लागू करने का आदेश दिया. यह आदेश न्यायमूर्ति एसडी सिंह और न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की खंडपीठ ने अधिवक्ता पवन कुमार दुबे की याचिका पर दिया है.
याची की तरफ से अधिवक्ता सुरेश चंद्र द्विवेदी ने बहस की. उन्होंने बताया कि विपक्षी अधिवक्ता का आपराधिक इतिहास है और सजायाफ्ता है फिर भी बार काउंसिल ने उसे वकालत का लाइसेंस दे दिया है. इसके खिलाफ याची की 25 सितंबर 2022 को की गई शिकायत पर कोई निर्णय नहीं किया जा रहा है. हाईकोर्ट ने इसे गंभीरता से लिया. हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसे लोगों को लाइसेंस देना एडवोकेट एक्ट में प्रतिबंधित किया गया है. बार काउंसिल लाइसेंस देने की प्रक्रिया में संबंधित थाने की पुलिस से रिपोर्ट मंगाना शामिल करे. बार काउंसिल ने अभी तक ऐसी प्रक्रिया नहीं अपनाई है. हाईकोर्ट का ये आदेश वकीलों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है.