रांची/आदित्यपुर, संजीव भारद्वाज: पूर्वी भारत के पहले दलित उद्योगपति राजेंद्र कुमार चले तो थे इंजीनियर बनने. रांची के बीआईटी मेसरा में नामांकन भी लिया. परंतु, ड्राइंग सीट पर आड़ी-तिरछी रेखाएं खींचते हुए भाग्य की रेखाएं बदलने की ठानी. बाबा साहब आंबेडर का यह आह्वान कानों में गूंजने लगा कि नियति का फरमान दलितों के अरमान में बाधा नहीं बनने पाए. बस फिर क्या था, इंजीनीयिंग की डिग्री मिलते ही नौकरी पाने की कतार में लगने की जगह नौकरी देने की मशाल उठाने की ठानी. कई बाधाओं को पार करते हुए दलित समुदाय के बीच उद्यमिता की राह तैयार करने की मिसाल कायम की.
बीआईटी मेसरा से पासआउट हैं राजेंद्र
राजेंद्र कुमार कहते हैं कि 1984 में बीआईटी मेसरा से पासआउट हुए और 1986 में रांची के रातू रोड में एचपी गैस की एजेंसी खोली. इसी बीच दलित इंडिया चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मिलिंद कामले से मुलाकात ने उनकी उद्यमिता की राह को और संवार दिया. कामले ने राजेंद्र कुमार से कहा कि समाज में मैन्यूफैक्चरर का जो सम्मान है, वह ट्रेडर का नहीं है. कामले की सलाह और मार्गदर्शन तथा टाटा स्टील के ए बख्शी और मालविका चटर्जी के सहयोग से उद्यमिता के क्षेत्र में कदम बढ़ाई. इसी बीच उन्होंने आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र के फेज तीन में बीमार कंपनी के प्लॉट को नीलामी में प्राप्त कर जिवाशिया इंडस्ट्रीज की स्थापना की. उनकी गैस एजेंसी में 60 और जिवाशिया इंडस्ट्रीज में तकरीबन सवा सौ लोगों को रोजगार मिला है. उनकी कंपनी टाटा स्टील के लिए भी उत्पाद तैय़ार करती है. यह कन्वेयर से संबंधित उत्पाद बनाती है, जो टाटा स्टील और सेल की कई यूनिटों में भेजी जाती है.
दो बार मिल चुका है पुरस्कार
राजेंद्र कुमार की कंपनी को टाटा स्टील की ओर से दो बार पुरस्कार मिल चुका है. जिवाशिया इंडस्ट्रीज जो उत्पाद तैयार करती है, दूसरी 100 कंपनियां भी टाटा स्टील को भी वही उत्पाद सप्लाई करती है. गुणवत्ता व अन्य मापदंडों पर उनमें से 20 का अवॉर्ड के लिए चयन किया जाता है. उन्हें यह अवॉर्ड दो सालों से मिल रहा है. उन्होंने कहा कि इस समय उत्पादकों की मांग है.
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दलित उद्यमी याद रखें तीन ‘पी’
राजेंद्र कुमार कहते हैं कि दलित उद्यमियों को तीन ‘पी’ याद रखने की जरूरत है. पहला पैसा, दूसरा पर्सनल कॉन्टेक्ट व तीसरा पेशेंस यानी धैर्य. उन्होंने कहा कि टाटा स्टील के अधिकारी टी वी नरेंद्रन और रंजन सिन्हा का टाटा स्टील के लिए उत्पादन करने वाले दलित-आदिवासी उद्यमियों पर खास फोकस रहता है. दलित उद्यमी मैन्यूफैक्चरर बनकर इसका लाभ उठा सकते हैं. इसके लिए उन्हें उत्पादों की गुणवत्ता के प्रति समर्पित रहना होगा.
इंजीनियरिंग करने के बाद गैस एजेंसी चलायी, फिर उद्यमी बने राजेंद्र कुमार
बीआइटी मेसरा से की है बीटेक
टाटा स्टील में हैं वेंडर