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Birsa Munda Jayanti : बिरसा के साथी नायक अब भी गुमनामी में

9 जनवरी, 1900 काे जब सईल रकब पर बिरसा मुंडा के समर्थकाें पर कैप्टन राेसे ने अंधाधुंध फायरिंग की थी, उसमें जियूरी गांव के मझिया मुंडा, डुंडांग मुंडा आैर बंकन मुंडा की पत्नी कैप्टन राेसे के सैनिकाें के साथ लड़ते हुए शहीद हाे गयी थी. सैनिकाें ने एक बच्चे काे भी मार दिया था.

15 नवंबर यानी भगवान बिरसा मुंडा का जन्मदिन. एक पवित्र दिन. आजादी के 75वें वर्ष में बिरसा मुंडा के याेगदान और आदिवासी गुमनाम नायकाें काे खाेज निकालने, उन्हें सम्मान देने का का एक देशव्यापी अभियान उनके कद और महत्व काे बताता है. भारत के स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासियाें का बहुत बड़ा याेगदान रहा है. बाबा तिलका मांझी, सिदाे-कान्हू , बुधु भगत, नीलांबर-पितांबर, तेलंगा खड़िया और बिरसा मुंडा के संघर्ष ने आजादी का रास्ता खाेला था.

लेकिन इतिहास ने आदिवासी नायकाें के साथ नाइंसाफी की है और इन आंदाेलनाें के अधिकांश नायक गुमनाम ही रह गये. अब इन्हें खाेजने और उन्हें सम्मान दिलाने का वक्त आ गया है.

आज बिरसा मुंडा के उलगुलान और उस आंदाेलन के गुमनाम नायकाें की चर्चा करें. बिरसा मुंडा और उनके समर्थकाें ने अंगरेजाें के छक्के छुड़ा दिये थे. सईल रकब की अंतिम लड़ाई इसका उदाहरण है. इसमें कितने लाेग मारे गये थे, इसका काेई हिसाब-किताब नहीं है. 9 जनवरी, 1900 काे जब सईल रकब पर बिरसा मुंडा के समर्थकाें पर कैप्टन राेसे ने अंधाधुंध फायरिंग की थी, उसमें जियूरी गांव के मझिया मुंडा, डुंडांग मुंडा और बंकन मुंडा की पत्नी कैप्टन राेसे के सैनिकाें के साथ लड़ते हुए शहीद हाे गयी थी. सैनिकाें ने एक बच्चे काे भी मार दिया था.

जियूरी के अलावा गुट्टुहातू गांव का भी बड़ा याेगदान है. इसी संघर्ष में गुटुहातू गांव के हति राम मुंडा और हाड़ी राम मुंडा मारे गये थे. ये दाेनाें मंगन मुंडा के पुत्र थे और दाेनाें बेटे बिरसा आंदाेलन में शहीद हाे गये थे. कहा ताे यह भी जाता है कि इन दाेनाें में से एक हति राम मुंडा गंभीर रूप से घायल थे. और उन्हें इसी हालत में अंगरेजाें ने जिंदा दफना दिया था. मंगन मुंडा के घर में रहनेवाले लेकुआ मुंडा भी सईल रकब गाेलीबारी में मारे गये थे. बहादुर महिला में एक और नाम आता है माकी मुंडा का. वे गया मुंडा की पत्नी थी.

गया मुंडा बिरसा मुंडा के दाहिने हाथ थे और जब गया मुंडा के घर पर अंगरेज पुलिस उन्हें पकड़ने गयी थी, माकी मुंडा, उनकी तीनाें बेटियां थिगी, नाग, लेंबू और बहुओं ने बहादुरी से टांगी, कटारी, तीर, लाठी से सैनिकाें पर हमला कर गया मुंडा काे बचाने का प्रयास किया था.

गया मुंडा के परिवार का बिरसा आंदाेलन में बड़ा याेगदान रहा है. बाद में गया मुंडा और उनके बेटे काे फांसी दे दी गयी थी. बिरसा मुंडा के आंदाेलन में सईब रकब की लड़ाई में महिलाओं ने बड़ी भूमिका अदा की थी.जब कैप्टन राेसे के सैनिक सईल रकब पर माैजूद बिरसा समर्थकाें पर फायरिंग कर रहे थे, इन महिलाआें ने तीर-धनुष से तब तक जवाब दिया जब तक वे शहीद नहीं हाे गयीं. वे पीछे नहीं हटीं.

अंगरेज अफसर इतने क्रूर थे कि उन्हाेंने महिलाओं काे भी गाेली मार दी. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में झारखंड क्षेत्र में एक गांव की तीन महिलाओं का पुलिस की गाेली से शहीद हाेने का काेई दूसरा उदाहरण नहीं मिलता. झारखंड का इतिहास ऐसे बहादुराें की शहादत से भरा पड़ा है. लेकिन दुर्भाग्य कि इतिहास में इनका उल्लेख नहीं हुआ. इसका नतीजा यह निकला कि आज इन गांवाें के लाेग भी नहीं जानते कि उनके पुरखाें का कितना बड़ा याेगदान रहा है, किसने-किसने शहादत दी है.

इन वीराें के अलावा बिरसा के आंदाेलन में कई और आदिवासी शहीद हुए थे लेकिन ये गुमनाम हैं. इनमें से कई ताे फायरिंग में घायल हाे गये थे, जिन्हाेंने बाद में दम ताेड़ा था. कुछ गिरफ्तार हुए और जेल में प्रताड़ित किया गया जिससे उनकी माैत हाे गयी. कर्रा के डूना मुंडा, डेमखानेल के घेरिया मुंडा, टेमना गांव के मालका मुंडा, ताेरपा के मानदेव मुंडा, जनुमपीढ़ी के नरसिंह मुंडा आैर सांदे मुंडा, पातर मुंडा, उलिहातू के सुगना मुंडा, चक्रधरपुर के सुखराम मुंडा (आजीवन कारावास के दाैरान जेल में माैत) आदि हैं.

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इन गुमनाम नायकाें काे खाेज निकालने-सम्मान देने का वक्त आ गया है आैर यही बिरसा मुंडा के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि हाेगी. झारखंड के आदिवासियाें के संघर्ष के इतिहास के पुनर्लेखन का आवश्यकता है.बिरसा मुंडा के याेगदान काे पूरे देश काे बताने की जरूरत है. उनके नेतृत्व क्षमता, उनके काम काे बताने की जरूरत है. वे प्रेरणास्त्राेत हैं. आज की युवा पीढ़ी बिरसा मुंडा काे समझे.

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