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Kanpur News: एलर्जी और अस्थमा में आयुर्वेदिक दवाएं कारगर, GSVM मेडिकल कॉलेज के शोध में हुआ साबित

कानपुर मेडिकल कॉलेज ने एक आयुर्वेदिक दवा IMMBO पर रिसर्च करके यह पाया कि इस दवा का स्थायी असर है. अस्थमा और सीओपीडी जैसी बीमारी एक खास तरह की एलर्जी से होती है, जिसका आधुनिक मेडिकल साइंस में स्थायी इलाज नहीं है.

कानपुर: जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज अब आयुर्वेदिक दवाओं का भी ट्रायल के साथ शोध करने लगा है. इसी कड़ी में आयुर्वेदिक दवा एलर्जिक राइनाइटिस में एलोपैथिक दवाओं के मुकाबले ज्यादा प्रभावी साबित हुई है. इसके साइड इफेक्ट भी न के बराबर सामने आए हैं. एलर्जिक राइनाइटिस में दवा की प्रभावकारिता बेहतर मिलने पर ही शोधपत्र को अंतर्राष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित किया गया है. मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य प्रो. संजय काला ने मीडिया के साथ हुए बातचीत में बताया कि कॉलेज के बाल रोग विभाग के प्रोफेसर डॉ.यशवंत राव ने रुद्रपुर के वैद्य के साथ मिलकर इंबो नामक दवा के प्रभाव पर शोध किया है. इसमें चार से 60 आयु वर्ग तक के करीब 250 मरीजों को दो ग्रुप में विभाजित किया गया.


6 महीने तक चला ट्रायल

शोध बीते साल जुलाई से दिसम्बर तक एलर्जिक राइनाइटिस के मरीजों पर किया गया. एक ग्रुप को एलोपैथिक दवाएं और दूसरे ग्रुप को आयुर्वेदिक दवा इंबो दी गई. छह महीने तक चले ट्रायल के परिणाम में आयुर्वेदिक दवा इंबो के परिणाम एलोपैथिक की तुलना में बेहतर रहे. इंबो दवा में 20 प्रकार की जड़ी-बूटी के साथ लौह भस्म का प्रयोग किया गया है, जिससे दुष्प्रभाव नहीं होते हैं. प्रो. काला ने बताया कि आयुर्वेद की महत्ता वायु प्रदूषण के दौर में श्वसन रोगों में काफी बढ़ गई है. तीस फीसद मरीज इसी बीमारी की चपेट में हैं. ऐसे मरीजों का इलाज न किया जाए तो उन्हें एलर्जिक राइनाइटिस बाद में अस्थमा में बदल जाता है.

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हरी सब्जियां लें, आंखें रहेंगी सलामत

आंखों में आ रही कई समस्याओं को अपने आहार चार्ट से दुरुस्त किया जा सकता है. हर शहरी अपनी थाली में रोज हरी पत्तेदार सब्जियां, पालक, गाजर, टमाटर और नट्स, बीन्स को जरूर शामिल करें. यह सभी आंखों की सेहत के लिए फायदेमंद हैं. यह बातें जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज की नेत्र विभाग एचओडी प्रो. शालिनी मोहन ने विभाग में विश्व दृष्टि दिवस पर हुई गोष्ठी में कहीं. प्रो. मोहन ने कहा कि थाली में कई रंगों वाली सब्जियों-फलों को दैनिक आहार का हिस्सा बनाते रहेंगे तो आंखों की रोशनी बेहतर बनी रहेगी.

नीली रोशनी आंखों के लिए नुकसानदेह

सहायक प्रोफेसर डॉ. नम्रता पटेल ने बताया कि धूम्रपान से आंखों की सेहत पर भी नकारात्मक असर हो सकता है. अध्ययनों में धूम्रपान को मोतियाबिंद, ऑप्टिक तंत्रिका को क्षति पहुंचाने और मैक्यूलर डीजेनरेशन के खतरे को बढ़ाने वाला पाया गया है.डॉ. सुरभि अग्रवाल ने कहा कि मोबाइल-कंप्यूटर या टेलीविजन जैसे स्क्रीन से निकलने वाली नीली रोशनी आंखों के लिए बहुत नुकसानदेह होती है. पलकों को झपकाते रहना भी बहुत जरूरी है. मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य प्रो. संजय काला ने कहा कि जनमानस को नियमित नेत्र परीक्षण की आवश्यकता होती है. यह आपकी आंखों में होने वाली किसी भी समस्या को पहचानने और समय रहते उसे उपचार करने को जरूरी है.

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