15.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

आजादी का अमृत महोत्सव : अलीपुर बमकांड में सबूत नहीं होने पर भी चार साल नजरबंद रहे थे गणेश घोष

ब्रिटिश सरकार के शस्त्रागार को लूटने के बाद इस मामले में बचने के प्रयास में गणेश घोष अपने साथियों से बिछूड़ गए और फ्रांसीसी बस्ती चंद्र नगर चले गए थे. वहां से गिरफ्तार करके उन्हें कोलकाता लाया गया और वर्ष 1932 में आजीवन कारावास की सजा देकर अंडमान जेल भेज दिए गए

आजादी का अमृत महोत्सव : क्रांतिकारी गणेश घोष का जन्म 22 जून, 1900 में बंगाल के चटगांव में हुआ था. पढ़ाई के दौरान ही वह देश की आजादी के लिए चल रहे आंदोलनों में कूद पड़े. वर्ष 1922 में गया कांग्रेस में जब बहिष्कार का प्रस्ताव पारित किया गया, तो गणेश घोष और उनके साथी अनंत सिंह ने नगर का सबसे बड़ा विद्यालय बंद करा दिया. इन दोनों ने चटगांव की सबसे बड़ी मजदूर हड़ताल की अगुआई की थी. जब गांधी जी ने असहयोग आंदोलन स्थगित कर दिया, तो गणेश ने कलकत्ता के जादवपुर इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश लिया, पर 1923 में अंग्रेजी पुलिस ने उन्हें ‘अलीपुर बम कांड’ में गिरफ्तार कर लिया. उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला. लिहाजा, उन्हें सजा तो नहीं हुई, पर ब्रिटिश सरकार ने चार साल उन्हें नजरबंद रखा. 1928 में वह कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में शामिल हुए. बाद में उनकी मुलाकात क्रांतिकारी सूर्य सेन से हुई और उनके साथ शस्त्र बल से चटगांव में राष्ट्रीय सरकार की स्थापना की तैयारी करने लगे. इन क्रांतिकारियों ने वहां के शस्त्रागार व टेलीफोन, तार सेवा को बाधित कर दिया व महत्वपूर्ण जगहों पर धावा बोल दिया. उन्हें शस्त्र तो मिल गये, लेकिन गोला – बारूद नहीं मिले. इसलिए स्वतंत्र क्रांतिकारी सरकार की घोषणा के बाद भी ये उसे कायम नहीं रख सके और उन्हें सूर्य सेन के साथ जलालाबाद की पहाड़ियों में चला जाना पड़ा

सेल्यूलर जेल में मार्क्सवादी विचारधारा से हुए प्रभावित

ब्रिटिश सरकार के शस्त्रागार को लूटने के बाद इस मामले में बचने के प्रयास में गणेश घोष साथियों से बिछड़ गये और फ्रांसीसी बस्ती चंद्र नगर चले गये. वहां से गिरफ्तार कर उन्हें कलकत्ता लाया गया और वर्ष 1932 में आजीवन कारावास की सजा देकर अंडमान जेल भेज दिया गया. वहां, वह कम्युनिस्ट विचारधारा से काफी प्रभावित हुए. वर्ष 1946 में जेल से छूटने के बाद कम्युनिस्ट पार्टी ( सीपीआइ ) के सदस्य बन गये और यहीं से उनका राजनीति में जाने का रास्ता खुल गया

आजादी के बाद काफी सालों तक राजनीति में सक्रिय रहे घोष

देश जब आजाद हुआ, तो वह भारतीय राजनीति में पूरी तरह सक्रिय हो गये. वर्ष 1964 में जब कम्युनिस्ट पार्टी का विभाजन हुआ, तो गणेश घोष मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गये. घोष वर्ष 1952, 1957 और 1962 में बंगाल विधानसभा में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रूप में चुने गये. वर्ष 1967 में वह कलकत्ता दक्षिण से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ( मार्क्सवादी ) के टिकट पर जीत कर पहली बार लोकसभा पहुंचे. वर्ष 1971 के लोकसभा चुनाव में घोष फिर से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ( मार्क्सवादी ) के कलकत्ता दक्षिण लोकसभा क्षेत्र से ही उम्मीदवार थे, लेकिन इस बार वह 26 वर्षीय प्रियरंजन दास मुंशी से हार गये, जिन्होंने अपना पहला लोकसभा चुनाव कांग्रेस ( आर ) के टिकट पर लड़ा था . देश की आजादी में अहम योगदान देने के बाद सीपीआइ और सीपीएम पार्टी के नेता रहे गणेश घोष का 16 अक्तूबर,1994 को कलकत्ता में निधन हो गया .

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें