Bakrid 2023: आज बड़े ही धूमधाम से देशभर में बकरीद का पर्व मनाया जा रहा है. ईद उल-अजहा पर आगरा के ताजमहल समेत कई मस्जिदों पर नमाज अदा की गई. इस खास अवसर पर आज हम आपको बताएंगे आगरा की बाबरी मस्जिद के बारे में तो चलिए बताते हैं क्या है इतिहास.
सन 1528 में बाबर ने आगरा में बाबरी मस्जिद का निर्माण कराया था और 26 दिसंबर 1529 को जब बाबर की मौत हुई. उसके जनाजे की नमाज भी इसी मस्जिद में पढ़ी गई थी. इस मस्जिद के सामने ही चारबाग में 6 महीने तक बाबर का शव भी रखा रहा. जिसे बाद में काबुल में दफन किया गया था.
मुगल इतिहास के अनुसार पहली बार बाबर 10 मई 1526 को आगरा आया था. इससे पहले उसके छोटे बेटे हुमायूं ने आगरा किले पर कब्जा किया और किले का सारा खजाना लूट लिया. हुमायूं ने सुरक्षा की दृष्टि से यमुनापार पूर्वी क्षेत्र में डेर डाला था. आज यह एत्माद्दौला के नाम से जाना जाता है. बाबर ने आरामबाग और चारबाग का निर्माण कराया था और चारबाग के सामने ही उसने 1528 में बाबरी मस्जिद की तामीर कराई थी. जिसमें आज भी रोजाना पांच दोपहर की नमाज पढ़ी जाती है. बाबर के समय चारबाग पाश इलाका था.
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चारबाग में ही बाबर का 6 महीने तक शव रखा रहा था. जिसका सरंक्षण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी कि एएसआई द्वारा किया जा रहा है. आगरा की बाबरी मस्जिद के इमाम हाफिज मोहम्मद हारुन ने बताया कि मस्जिद में नमाज तो पांचों वक्त की पढ़ी जाती है. लेकिन जुमे की नमाज के दिन ही ज्यादा नमाजी यहां पर आते हैं. इस दिन यहां नमाजियों की संख्या 500 से अधिक होती.
इमाम मोहम्मद हारून ने बताया कि उनकी तीसरी पीढ़ी बाबरी मस्जिद में सेवा कर रही है. यहां नई पीढ़ी को तालीम भी दी जा रही है. यह आगरा की सबसे पुरानी मस्जिद है. इससे पहले आगरा में इस्लाम के अनुयाई नहीं थे और ना ही कहीं कोई मस्जिद थी. सबसे पहले बाबर ने ही मस्जिद का निर्माण कराया था. लेकिन आज बहुत कम लोग ही इस ऐतिहासिक बाबरी मस्जिद के बारे में जानते हैं.