15.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

बीटिंग रिट्रीट : एक गरिमामयी परंपरा

1961 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने सेना मुख्यालय में मिलिट्री म्युजिक विभाग के प्रमुख जीए रॉबर्ट्स को निर्देश दिए कि वे भव्य बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी की तैयारी करें. दिल्ली के रॉबर्ट्स ने नेहरू जी को निराश नहीं किया. उन्होंने बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी को शानदार तरीके से कोरियोग्राफ किया.

विवेक शुक्ला

हर साल की तरह आज (29 जनवरी) को जब राष्ट्रपति भवन, साउथ ब्लॉक, नार्थ ब्लॉक और बाकी तमाम खास सरकारी इमारतों की सज्जा हो रही होगी, तब विजय चौक पर बीटिंग रिट्रीट के आयोजन के साथ ही इस साल के गणतंत्र दिवस समारोह का समापन हो जायेगा. बीटिंग रिट्रीट में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और गणमान्य नागरिक उपस्थित रहते हैं. बीटिग रिट्रीट में ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ के साथ ही ‘जय जन्म भूमि’, ‘हिंद की सेना’ और ‘कदम कदम बढ़ाए जा’ जैसे गीतों की धुनें सुनाई देती हैं. इन धुनों को सुनकर वहां पर उपस्थित लोग गदगद हो जाते हैं. साल 2022 से बीटिंग रिट्रीट समारोह में ईसाई गान ‘अबाइड विद मी’ को हटा दिया गया था. सेना में ‘भारतीयकरण’ को आगे बढ़ाने की कोशिशों के मद्देनजर इस मशहूर धुन की जगह तब से देशभक्ति से सराबोर गीत ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ की धुन बजाई जाने लगी. महात्मा गांधी के पसंदीदा ईसाई स्तुति गीतों में से एक ‘अबाइड विद मी’ की धुन को ‘बीटिंग रिट्रीट’ समारोह से हटाने पर काफी हंगामा भी हुआ था. बीटिग रिट्रीट में बेहद लोकप्रिय गीत ‘सारे जहां से अच्छा…’ की धुन तो अवश्य ही बजती है.

1952 में शुरू हुई बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी

देश के 1950 में गणतंत्र बनने के साथ ही 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस समारोह शुरू हुआ. 1952 में बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी चालू हुई. यानी बीटिंग रिट्रीट गणतंत्र दिवस समारोह के दो साल के बाद शुरू हुआ. बीटिंग रिट्रीट के इतिहास के बारे में बात करें, तो इसका चलन 17वीं शताब्दी से माना जाता है. माना जाता है कि बीटिंग रिट्रीट उन दिनों से चली आ रही है, जब सूर्यास्त के समय सैनिक जंग समाप्त कर देते थे. बिगुल की धुन बजने के साथ सैनिक लड़ना बंद कर अपने हथियार समेटते हुए युद्ध के मैदान से हट जाते थे. यह रिवायत ब्रिटिश सेना ने शुरू की थी, जिसे भारतीय फौज ने देश के आजाद होने के बाद अपना लिया.

Also Read: बीटिंग दी रिट्रीट में आज होगा देश का सबसे बड़ा ड्रोन शो, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और पीएम मोदी होंगे शामिल
1960 तक ऐसा था बीटिंग रिट्रीट का स्वरूप

दरअसल, 1960 तक बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी बहुत व्यापक स्तर पर आयोजित नहीं होती थी. तब भारतीय सेना के तीनों अंगों के बैंड विजय चौक के साथ-साथ कनॉट प्लेस में देश भक्ति की धुनें बजाते थे. कनॉट प्लेस में होने वाला कार्यक्रम रीगल बिल्डिंग के ठीक सामने के एक छोटे से पार्क में होता था. अब उस पार्क पर कार पार्किंग बन गई है. बीटिंग रिट्रीट के शुरुआती सालों में आए दर्शकों को एलबी गुरूंग, एफएस रीड, एच जोसेफ, बचन सिंह जैसे सेना के संगीतकारों के नेतृत्व में बजाई गई देशभक्ति की धुनें सुनाई जाती थी.

बीटिंग रिट्रीट के लिए विशेष रहा 1961

बेशक, बीटिंग रिट्रीट के लिए 1961 विशेष रहा. उस साल गणतंत्र दिवस समारोह में ब्रिटेन की महारानी एलिजबेथ मुख्य अतिथि थीं. उनके साथ उनके पति प्रिंस फिलिप भी पधारे थे. वह संभवत: पहला और अंतिम अवसर था, जब गणतंत्र दिवस समारोह में भाग लेने के लिए आई विदेशी हस्तियां बीटिंग रिट्रीट में भी मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थीं. इस साल फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि थे. पर वे बीटिंग रिट्रीट से पहले ही स्वदेश चले गए.

नेहरू के कहने पर जीए रॉबर्ट्स ने किया कोरियोग्राफ

खैर, 1961 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने सेना मुख्यालय में मिलिट्री म्युजिक विभाग के प्रमुख जीए रॉबर्ट्स को निर्देश दिए कि वे भव्य बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी की तैयारी करें. दिल्ली के एंग्लो इंडियन समाज से संबंध रखने वाले रॉबर्ट्स ने नेहरू जी को निराश नहीं किया. उन्होंने बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी को शानदार तरीके से कोरियोग्राफ किया.

Also Read: Beating Retreat: विजय चौक पर बीटिंग रिट्रीट समारोह में दिखा भव्य नजारा, 1000 ड्रोन से जगमगाया पूरा आसमान
रामलीला मैदान में महारानी एलिजाबेथ ने दिया भाषण

अपनी उस यात्रा के समय महारानी एलिजाबेथ ने तब रामलीला मैदान में दिल्ली की जनता को एक समारोह में संबोधित भी किया था. तब ही वहां पर एक चबूतरा बना था, जहां से खड़े होकर नेता भाषण देते थे. महारानी एलिजाबेथ बरार स्क्वायर पर दिल्ली वार सिमिट्री भी गईं थीं. वहां पहले और दूसरे विश्व युद्ध में शहीद हुए योद्धाओं की सैकड़ों कब्रें हैं. दिल्ली वार सिमिट्री में गोरखा रेजिमेंट से जुड़े अंग्रेज सैनिकों की भी कब्रें हैं.

गणतंत्र दिवस परेड की तरह बीटिंग रिट्रीट का भी रहता है इंतजार

बहरहाल, बीटिंग रिट्रीट का स्वरूप वर्ष 2016 तक नहीं बदला. हां, बीटिंग रिट्रीट में वर्ष 2016 के बाद सेना के तीनों अंगों के अलावा दिल्ली पुलिस का बैंड भी जुड़ गया. फिर इसमें बॉलीवुड संगीत का तड़का भी लगना चालू हो गया. इस बदलाव पर पूर्व उपसेनाध्यक्ष विजय ओबराय ने अपने स्तर पर विरोध भी जताया था. उनका कहना था कि बीटिंग रिट्रीट को तमाशा बनाया जा रहा है. विजय ओबराय की वर्ष 1965 की जंग में एक टांग कट गई थी. उसके बाद के सालों में बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी में गांधी जी के प्रिय भजन भी सुनने को मिलने लगे. यह तो मानना होगा कि बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी के बाद एक तरह से खालीपन का अहसास होने लगता है. गणतंत्र दिवस परेड की तरह देश इसका भी इंतजार करने लगता है. आखिर इन दोनों कार्यक्रमों की कई महीनों पहले से तैयारी शुरू हो जाती है.

Also Read: Beating The Retreat: गणतंत्र दिवस समापन समारोह, बीटिंग द रिट्रीट ने बांधा समा, देखें दिल को छू जाने वाली Pics

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें