भारतीय क्रिकेट में स्पिन की जब भी चर्चा चलती है, तो उसमें सबसे पहले बिशन सिंह बेदी, ईरापल्ली प्रसन्ना, भगवत चंद्रशेखर और वेंकट राघवन वाली स्पिन चौकड़ी का नाम आता है. इस चौकड़ी का प्रमुख हिस्सा रहे बिशन सिंह बेदी अब हमारे बीच नहीं रहे. पर इस लेफ्ट आर्म स्पिनर की यादें हमेशा क्रिकेट प्रेमियों के दिलों में बनी रहेंगी. बेदी एक बेहतरीन लेफ्ट आर्म स्पिनर के तौर पर तो लोकप्रिय थे ही, वह साफगोई के साथ अपनी बात रखने के लिए भी मशहूर थे. करीब एक दशक पहले तक वह दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान पर होने वाले कई मैचों के दौरान आकर बाउंड्री के पास कुर्सी पर बैठ जाते थे जहां उनसे मिलने वालों का तांता लगा रहता था. बेदी ने भारत के लिए 67 टेस्ट खेलकर 266 विकेट लिये.
उनकी खास बात उनका बेहद किफायती होना था. टेस्ट क्रिकेट में उनकी इकॉनमी रेट 2.14 हुआ करती थी. उनके दौर में एकदिवसीय क्रिकेट बहुत लोकप्रिय नहीं था. पर उन्होंने 10 एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैच खेले और उनके नाम सात विकेट हैं. बेदी एकदिवसीय मैच में भारत को पहली जीत दिलाने वाली टीम का हिस्सा रहे. भारत ने यह जीत 1975 के विश्व कप में पूर्वी अफ्रीका के खिलाफ हासिल की थी. उस दौर में विश्व कप के मैच 60-60 ओवर के हुआ करते थे. इस मैच में बेदी ने 12 ओवरों में आठ मेडन फेंके थे और सिर्फ छह रन देकर एक विकेट निकाला था. उन्होंने 370 प्रथम श्रेणी मैच खेलकर 1560 विकेट निकाले. इसमें भी उनकी इकॉनमी रेट 2.24 रही.
बेदी साहब अपने से बड़ों को बेहद सम्मान दिया करते थे. वह 1960-1970 के दशक में भारतीय क्रिकेट की जान माने जाने वाली स्पिन चौकड़ी के अहम सदस्य थे. पर वह हमेशा चौकड़ी के बाकी तीन गेंदबाजों को आर्टिस्ट मानते थे. इस चौकड़ी ने साथ में 98 टेस्ट खेले और 853 विकेट निकाले. इन भारतीय स्पिनरों की खूबी यह थी कि वे घरेलू मैदानों की ही तरह विदेश में भी विकेट चटकाते थे. बेदी के परफेक्शन का जवाब नहीं था. वह बेजान विकेट पर भी सफल रहते थे. उन्हें आर्म बॉल का विशेषज्ञ माना जाता था. यही नहीं, वह गति और फ्लाइट में बदलाव से हमेशा ही प्रभाव छोड़ने में सफल हो ही जाते थे.
पर मानवीयता भी उनमें कूट-कूटकर भरी थी. उनकी गेंद पर कोई बल्लेबाज छक्का लगा देता था, तो वह मायूस होने के बजाय उस शॉट के लिए बल्लेबाज की प्रशंसा किया करते थे. वह साफगोई में विश्वास जरूर रखते थे, पर किसी खिलाड़ी से मतभेद होने पर भी उसकी खूबियों की प्रशंसा करने में पीछे नहीं रहते थे. सुनील गावस्कर से मैदान के बाहर उनके मतभेद थे. उन्होंने कभी इसे छिपाने का प्रयास नहीं किया. पर वह गावस्कर की प्रशंसा में कहते थे कि वह सही मायनों में लिटिल मास्टर हैं और मैंने उनसे बेहतर कोई दूसरा बल्लेबाज नहीं देखा.
उनकी साफगोई का एक और किस्सा मशहूर है कि उन्हें एक बार अर्जुन अवॉर्ड के लिए बनी चयन समिति में शामिल किया गया. इसी साल राजीव गांधी खेल रत्न अवॉर्ड की भी शुरुआत हो रही थी. लेकिन, उन्होंने खेलों के इस सबसे बड़े अवाॅर्ड को राजीव गांधी के नाम पर रखने पर एतराज जता दिया. उनका कहना था कि राजीव गांधी बहुत अच्छे पायलट हो सकते हैं और अच्छे राजनेता भी. पर उनका खेलों में कोई योगदान नहीं है. उनके इस रुख के कारण उन्हें चयन समिति से हटा दिया गया. इसी तरह, जब फिरोजशाह कोटला स्टेडियम का नाम डीडीसीए के अध्यक्ष रहे अरुण जेटली के नाम पर रखा गया, तब भी उन्होंने एतराज जताया था. उन्होंने टेस्ट क्रिकेट में सर्वाधिक विकेट लेने वाले मुथैया मुरलीधरन को कभी साफ-सुथरा गेंदबाज नहीं माना.
उनकी कप्तानी में खेले सुरेश लूथरा के एक्शन में भी उन्हें गड़बड़ी दिखती थी, इसलिए उनको खिलाने पर भी उन्होंने एतराज जताया था. पाकिस्तान के महान क्रिकेटर इंतखाब आलम उनके करीबी दोस्त थे. इंतखाब बताते थे कि उनके पास अक्सर बेदी का फोन आता था और वह हमेशा लुइस आर्मस्ट्रांग का गाना गाने की फरमाइश करते थे. इंतखाब ने एक बार लिखा था कि ‘मैं बेदी को 1971 से जानता था. मैं उस समय इंग्लिश काउंटी में सरे से खेला करता था और उस दौरान वह भारतीय टीम के साथ इंग्लैंड दौरे पर आये और सरे के साथ मैच में मुझे पहली बार उनके खिलाफ खेलने को मिला. इस मैच में मैंने बेदी के सिर के ऊपर से तीन छक्के लगाये. इस पर वह मेरे पास आये और कहा कि कप्तान जी, दूसरे भी गेंदबाज हैं, मुझे बख्श दो.’ इसके बाद इंतखाब और बेदी की दोस्ती आजीवन बनी रही.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)