भारतीय जनता पार्टी (BJP) पिछले दिनों पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में 3 राज्यों पर कब्जा कर चुकीं है. इससे पार्टी का कॉन्फिडेंस लेवल (आत्मविश्वास) काफी बड़ा हुआ है. इसका लोकसभा चुनाव 2024 में सियासी फायदा मिलने की उम्मीद है. मगर, अब भाजपा मिशन 24 की तैयारी में जुट गई है. भाजपा ने यूपी की 80 लोकसभा सीट पर एक नए तरीके के प्रयोग की तैयारी की है. पार्टी के विश्वसनीय सूत्रों की मानें तो भाजपा यूपी की जनरल लोकसभा सीट पर एससी (दलित) कैंडिडेट को सियासी मैदान में उतारने की कोशिश में है. यह प्रयोग सबसे पहले भाजपा पर लगातार हमलवावर रहने वाले पार्टी सांसद वरुण गांधी की पीलीभीत लोकसभा सीट और मेरठ लोकसभा सीट पर करने की तैयारी है. इसमें पीलीभीत लोकसभा सीट पर एससी वोटर्स 19 फीसद और मेरठ लोकसभा में 22 फीसद से अधिक हैं. इन सीट पर भाजपा के सवर्ण, ओबीसी वोट के साथ एससी वोट के जुड़ने से जीत तय होने की उम्मीद है.
इसके साथ ही एससी वोटर्स के बीच सियासी फायदा भी मिलेगा. यूपी की 80 लोकसभा सीट में से भाजपा के पास 62 हैं, जबकि बसपा-सपा गठबंधन ने 2019 के चुनाव में 15 सीट जीती थीं. इसमें सपा की 5, बसपा की 10, भाजपा के सहयोगी संगठन अपना दल की 2 और कांग्रेस ने 01 सीट जीती थी. यूपी की 17 सुरक्षित लोकसभा सीट में भाजपा के पास 14, बसपा के पास 2 और अपना दल के पास एक सीट है. कांग्रेस, और सपा एससी सुरक्षित सीट पर जीत दर्ज नहीं कर पाई थी. यूपी की सबसे अधिक सुरक्षित सीटों पर भाजपा का कब्जा है, लेकिन अब एससी वोटर्स के माध्यम से जनरल सीट भी जीतने की कोशिश में है. यूपी में नगीना, बुलन्दशहर, हाथरस, आगरा, इटावा, जालौन, कौशाम्बी, मोहनलालगंज, बाराबंकी, शाहजहांपुर, हरदोई, मिश्रिख, बहराइच, बासगांव, लालगंज, मछली शहर और रॉबर्ट्सगंज लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित हैं. इसी तरह से यूपी विधानसभा में अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए 86 सीटें आरक्षित हैं. इनमें से 84 सीट एससी,और 2 सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं. इन सीट में सबसे अधिक भाजपा का कब्जा है.
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भाजपा ने राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023 में जनरल सीट पर एससी कैंडिडेट उतारकर प्रयोग किया था. यह सफल साबित हुआ. हालांकि, चुनाव से पहले राजस्थान कांग्रेस का मजबूत किला माना जा रहा था. मगर, पार्टी के कई अच्छे प्रयोग से भाजपा ने सत्ता हासिल की. राजस्थान में एससी के लिए 34 और एसटी के लिए 25 यानी राजस्थान विधानसभा की कुल 200 में से 59 सीट एससी-एसटी के लिए आरक्षित हैं. आरक्षित सीटों पर तो इन वर्गों के उम्मीदवार मैदान में उतरे ही थे. लेकिन, भाजपा ने जनरल सीटों पर भी एसटी उम्मीदवार उतारे थे. यह प्रयोग भाजपा ने पांच और कांग्रेस ने 3 सीटों पर किया. भाजपा को पांचों सीटों पर सफलता प्राप्त हुई है. इससे पहले सपा ने यूपी की जनरल नगर निगम की जनरल मेयर सीट पर एससी कैंडिडेट उतारने का प्लान बनाया था. मगर, अंत समय में पार्टी के ही कुछ लोगों ने विरोध किया. जिसके चलते प्लान वापस लिया गया. इससे सपा का एक भी मेयर नहीं जीता.
केंद्र सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की वेबसाइट के मुताबिक यूपी में 66 जातियां एससी में आती हैं. इसमें अगरिया, बधिक, बादी, बहेलिया, बैगा, बैसवार, बंजारा, बजगी, बालाहर, बलाई, बाल्मीकि, बंगाली, बनमानुस, बांसफ़ोर, बरवार, बसोर, बवारिया, बेलदार, बेरिया, भंटु, भुइया, भुइयार, बोएरा, चमार, धूसिया, झूसिया, जाटव, चेरो, दबगार, धनगर, धानुक, धरकार, धोबी, डोम, डोमर, दुसाध, घरामी, घसिया, गोंड, गुआल, हबुरा, हरी, हेला, कलाबाज़, कंजर, कपाड़िया, करवाल, खैराहा, खरवार, खटिक, खोरोट, कोल, कोरी, कोरवालालबेगी, मझवार, मजहबी, मुसहर, नट, पनखा, परहिया, पासी/तारमाली, पतरी, रावत, सहरिया, सनुरहिया, संसिया, शिल्पकार, तुरैहा अनुसूचित जाति में शामिल हैं. इन जातियों में कुछ एक जातियां दूसरे जिलों में अनुसूचित जनजाति में भी शामिल हैं.
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यूपी की पीलीभीत लोकसभा सीट पर करीब 18 लाख मतदाता हैं. यहां हिंदू वोटरों के साथ-साथ मुस्लिम वोटरों का भी खास प्रभाव है. पीलीभीत जिले में करीब 30 फीसद मुस्लिम मतदाता हैं. यहां की बहेड़ी, पीलीभीत,बरखेड़ा, पूरनपुर और बीसलपुर विधानसभा में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या काफी है. हालांकि, इस सीट से मेनका गांधी 6 बार, और उनके पुत्र वरुण गांधी दूसरी बार सांसद हैं. इनको बड़ी संख्या में मुस्लिम मतदाता भी मिलते हैं. लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा सांसद वरुण गांधी को 7,04,549 यानी 59.38% वोट और सपा-बसपा गठबंधन प्रत्याशी हेमराज वर्मा को 4,48,922 यानी 37.83% वोट मिले थे. सांसद वरुण गांधी ने 2,55,627 मतों के बड़े अंतर से जीत दर्ज की. हालांकि, अब हेमराज वर्मा भाजपा में हैं, और वरुण गांधी भाजपा पर हमलावर हैं. मेरठ लोकसभा सीट पर भी एससी वोटर्स निर्णायक भूमिका में हैं. बसपा के टिकट पर मुस्लिम कैंडिडेट के लड़ने से भाजपा की जीत मुश्किल हो जाती है, पिछले चुनाव में काफी करीबी मुकाबला था. हालांकि,भाजपा ने जीत हासिल की, लेकिन अब भाजपा बसपा के जातीय समीकरण को तोड़ने की कोशिश में है. इसलिए कैंडिडेट की तलाश की जा रही है. यह सफल होता है या नहीं. मगर, इस प्लान पर काम करने की बात सामने आई है.
रिपोर्ट- मुहम्मद साजिद, बरेली