राजा हरिश्चंद्र से लाल सिंह चड्डा तक भारतीय सिनेमा के इतिहास पर अगर हम नजर डालें तो हम यह पायेंगे कि वर्तमान में भारतीय सिनेमा बहुत ही कठिन दौर से गुजर रहा है और उसके पास मौलिकता का सख्त अभाव है और वह एक तरह से काॅपी कंटेंट पर जी रहा है.
आज के समय में फिल्म स्टार्स को नायक समझने और उन्हें देवता की तरह पूजने का दौर नहीं है. फिल्म के दर्शक यह जान चुके हैं कि उनका अभिनेता पर्दे पर कुछ और वास्तविक जीवन में कुछ और होता है. सोशल मीडिया ने दर्शकों के भ्रम को तोड़ा है.
सोशल मीडिया के युग में आम दर्शक यह भलीभांति जानता है कि उनका प्रिय अभिनेता और अभिनेत्री वास्तव में क्या हैं. इसलिए वे उन्हें महिमामंडित नहीं करते. बाॅलीवुड पर नेपोटिज्म का आरोप लग चुका है और यह कई मायनों में सही भी साबित हुआ है. हालांकि करीना कपूर और अन्य कई बड़ी हस्तियों ने इसे लेकर तीखी प्रतिक्रिया दी और कहा कि कोई दर्शकों को बाध्य नहीं करता कि वो हमारी फिल्म देखें.
भारतीय फिल्मों के इतिहास पर अगर हम नजर डालें तो पायेंकि कि पहले धार्मिक विषयों पर फिल्में बनती थीं, जिनके केंद्र में रामायण और महाभारत होते थे. यह दौर एक दशक तक चला. लेकिन अगले दशक में दौर बदला क्योंकि फिल्म उद्योग पर कम्युनिस्टों और अन्य ग्रुप का दबदबा कायम हो गया. 1940 और 50 के दशक में वामपंथी झुकाव वाले इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन (इप्टा) ने फिल्म उद्योग को प्रभावित किया.
इसके बाद के दौर में भारतीय सिनेमा पर मुल्क के बंटवारे का साफ असर दिखा. कुछ लोग देश छोड़कर चले गये, जिनमें अभिनेता, निर्माता, निर्देशक और गायक भी शामिल थे. उस दौरान हिंदू जातिवादी व्यवस्था पर कई फिल्में बनीं. उसके बाद कई ऐसी फिल्में भी आयीं जिसमें हिंदू धर्म की जटिलताओं और बुराइयों पर वार किया गया. लेकिन यहां कई तरह की बुराई भी इंडस्ट्री में शामिल हो गयीं.
इंडस्ट्री के हीरो भगवान हो गये. उनके चाहने वाले उन्हें भगवान की तरह पूजने लगे. देव आनंद, राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन उसी दौर के हीरो हैं. एक ऐसा दौर भी आया जब महिलाओं पर हिंसा फिल्मों में खूब दिखाई गयी. लेकिन आज का दर्शक इन्हें पसंद नहीं करता. उन्हें मौलिकता चाहिए. आमिर खान जैसे स्टार जिनकी फिल्मों पर साहित्यिक चोरी का आरोप लगता रहा है उनकी लाल सिंह चड्डा लोगों को इस बार पसंद नहीं आ रही है.
आज के दौर में कश्मीर फाइल्स जैसी कम बजट की फिल्म हिट हो रही है. वेब सीरीज को लोग खूब पसंद कर रहे हैं, जिनमें पंचायत हालिया पसंद की जाने वाली वेब सीरीज है. इससे पहले मिर्जापुर जैसी वेबसीरीज भी खूब चली. इसकी वजह यह है कि आम आदमी अब सिनेमा के तिलिस्म में नहीं फंसता, वह स्टारडम के पीछे पागल नहीं है. उसे फिल्मों से मौलिकता और मनोरंजन चाहिए जो उन्हें नहीं मिल रहा है और यही वजह है कि फिल्में पिट रही हैं. दर्शकों को काॅपी कंटेंट से आपत्ति है क्योंकि आज के युग में वे ओरिजिनल देख चुके होते हैं.