कलकत्ता उच्च न्यायालय भर्ती भ्रष्टाचार मामले में स्कूल सेवा आयोग (School Service Commission) की तीसरी रिपोर्ट से संतुष्ट नहीं है. कलकत्ता उच्च न्यायालय ने भर्ती भ्रष्टाचार में नौकरी से बर्खास्त किए गए लोगों के मामले में स्कूल सेवा आयोग की रिपोर्ट पर नाराजगी व्यक्त की है. न्यायमूर्ति देबांशु बसाक और न्यायमूर्ति सब्बर रशीदी की खंडपीठ ने स्पष्ट किया है कि यह रिपोर्ट आंशिक है और कोर्ट इस रिपोर्ट से संतुष्ट नहीं है. कोर्ट का कहना है कि एसएससी कोर्ट से कुछ छिपाने की कोशिश कर रही है. खंडपीठ ने इस स्थिति में एसएससी को नये सिरे से रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया. इसे 20 दिसंबर तक जमा करना होगा.
इस दिन स्कूल सेवा आयोग ने नौवीं और दसवीं कक्षा में नियुक्ति के सवाल पर अनुशंसा पत्र वापस लेने को लेकर विशेष खंडपीठ में अपना पक्ष रखा. हाईकोर्ट ने कहा लेकिन आयोग की स्थिति संतोषजनक नहीं है. न्यायाधीश ने इस बात पर अपनी राय व्यक्त करते हुए कहा कि आयोग सारी जानकारी अदालत के सामने लाने में क्यों कतरा रहा है. खंडपीठ ने कहा हम पिछले एक महीने से स्कूल सेवा आयोग से मदद मांग रहे हैं.
लेकिन हम यह कहने के लिए बाध्य हैं कि आप कुछ छिपाने की कोशिश की जा रही है. न्यायमूर्ति देबांशु बसाक ने आयोग से पूछा हम पहले दिन से यह जानना चाहते हैं कि स्कूल सेवा आयोग के माध्यम से अनुशंसा पत्र देने में क्या कोई गलती हुई थी, क्या वह आपको मिला था और अगर मिला था, तो आपने उसमें क्या किया है. इस संबंध में आयोग का कहना है, हमें कई अनियमितताएं मिली हैं. मैंने उन्हें अदालत के सामने पेश किया. फिर मैंने कोर्ट के आदेश के मुताबिक काम किया.
उन्होंने कहा कि आयोग अधिनियम में ग्रुप सी और ग्रुप डी के मामले में अनुशंसा पत्र वापस लेने का कोई प्रावधान नहीं है. खंडपीठ ने कहा, सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि आयोग ने अनुशंसा पत्र किसे दिया. अदालत ने यह भी कहा कि अगर यह पाया जाता है कि आयोग द्वारा अनुशंसित लोगों के अलावा अन्य लोगों को नियुक्ति पत्र मिले हैं तो सीबीआई को इस पर गौर करने की कोई आवश्यकता नहीं है.
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मध्य शिक्षा परिषद के अनुसार जिन लोगों को अनुशंसा पत्र दिया गया, उनके अलावा किसी को भी नियुक्ति पत्र नहीं दिया गया. आयोग के मुताबिक नौवीं-दसवीं के मामले में 183 लोगों के अनुशंसा पत्र देने में गलती हुई. इनमें से 122 अनुशंसा पत्र वापस ले लिये गये हैं. लेकिन कोर्ट का सवाल है कि एसएससी ने बाकी 61 लोगों का सिफारिश पत्र वापस क्यों नहीं लिया. जिस पर कोर्ट ने रोक लगा दी. जज ने पूछा कि क्या सुप्रीम कोर्ट के पास कोई निलंबन आदेश है या हाई कोर्ट के पास कोई निलंबन आदेश है. आयोग ने जवाब में ‘नहीं’ कहा. तब कोर्ट ने टिप्पणी की कि इसे वापस लिया जाना चाहिए. इन 61 लोगों को सरकारी वेतन पाने का कोई अधिकार नहीं है. आयोग ने पूछा कि आयोग के अध्यक्ष को डर है कि अगर उन्होंने ऐसा किया तो उन पर अदालत की अवमानना का आरोप लगाया जाएगा.