22.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

Chaiti Chhath Puja 2023: शुरू होने वाला है चैती छठ का त्योहार, जानें हर दिन की मान्यता

Chaiti Chhath Puja 2023: चैती छठ का आगाज 25 मार्च से होने जा रहा है. यह पर्व भारत के बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों मे बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. यहां जानें छठ के हर दिन का महत्व

Chaiti Chhath Puja 2023: चैती छठ के त्योहार की अपनी विशेषता है. इस महापर्व का आगाज 25 मार्च से होने जा रहा है. यह पर्व भारत के बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों मे बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. यह त्योहार इतना प्रसिद्ध है कि इसे भारत के साथ साथ विदेशों में भी मनाया जाता है.

Also Read: Chaiti Chhath 2023: इस दिन से होगा चैती छठ का आरंभ, जानें तिथि, मुहूर्त और पारण समय
नहाय-खाय

इस साल 25 मार्च को भरणी नक्षत्र में नहाय-खाय के साथ चैती छठ महापर्व शुरू होगा. नहाय-खाय का अर्थ है स्नान कर भोजन करना. शरीर को शुद्ध कर सूर्योपासना के लिए तैयार किया जाता है. व्रती नदी या तालाब में स्नान कर कच्चे चावल का भात, चनादाल और कद्दू (लौकी या घीया) प्रसाद के रूप में बनाकर ग्रहण करती हैं. इस साल अनुराधा नक्षत्र व सौभाग्य-शोभन योग के युग्म संयोग में नहाय-खाय होगा.


खरना या लोहंडा

26 मार्च रविवार को कृत्तिका नक्षत्र और प्रीति योग में व्रती पूरे दिन उपवास कर संध्या काल में खरना की पूजा के बाद प्रसाद ग्रहण करेंगे. 36 घंटे के निर्जला अनुष्ठान के संकल्प का दिन. इसमें व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास कर सायंकाल में पूजा कर प्रसाद ग्रहण करेंगी. मिट्टी के चूल्हे पर गाय के दूध व गुड़ से निर्मित खीर, ऋतुफल का प्रसाद व्रती द्वारा खुद बनाने की परंपरा है. मान्यता है कि ऐसा करने से शरीर से लेकर मन तक शुद्ध हो जाता है.

अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ

27 मार्च को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्ध्य दिया जाएगा और 28 मार्य को उदयमान सूर्य को अर्ध्य अर्पित कर पारण किया जाएगा. केवल छठ में ही डूबते सूर्य को अर्घ देने का प्रावधान है. ऐसी मान्यता है कि सायंकाल में सूर्यदेव और उनकी पत्नी देवी प्रत्युषा की भी उपासना की जाती है. जल में खड़े होकर सूप में फल, ठेकुआ आदि रख कर अर्घ देने की परंपरा है. इस साल सुकर्मा योग, रवियोग व सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा.27 मार्च को शाम के अर्ध्य के लिए 5.30 बजे व 28 मार्च को सुबह के अर्ध्य के लिए 5.55 बजे का मुहूर्त शुभ है.

उगते सूर्य को अर्घ

माना जाता है कि जल में कमर तक खड़े होकर सूर्य को अर्घ देने की परंपरा महाभारत काल से शुरू हुई. सप्तमी तिथि को व्रती जल में कमर तक खड़े होकर भगवान सूर्यदेव को जल अर्पित करते हैं. अर्घ देने से कुंडली में सूर्य मजबूत होते हैं. पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र व धृति योग के साथ रवियोग में दूसरा अर्घ होगा. इसके साथ चार दिवसीय पर्व का समापन.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें