17.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

दशकों की मेहनत का फल है चंद्रयान-3

इसरो में योग्यता को आत्मसात कर एक संस्कृति तैयार की गयी है. उन्हें जो भी सुविधाएं या संसाधन दिये गये हैं, उसे उन्होंने भारत को भली-भांति वापस किया है.

चंद्रयान-3 का चंद्रमा की सतह पर पहुंचना भारत के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है. विक्रम लैंडर ने चंद्रमा की सतह पर पांव रखने के साथ ही न केवल भारत के एक अरब, चालीस करोड़ लोगों की आशाओं को पूरा किया, बल्कि भारत को दुनिया के विशिष्ट स्पेस क्लब में भी शामिल करवा दिया. पहली बार भारत का झंडा चांद के दक्षिणी ध्रुव के पास पहुंचा है. भारत चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला चौथा देश, और दक्षिणी ध्रुव के पास लैंडिंग करने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है.

चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव वाले हिस्से में बर्फ है और वह ऑक्सीजन, हाइड्रोजन ईंधन और पानी का स्रोत हो सकता है. यह बहुत बड़ी बात है क्योंकि इससे न केवल भारत को लाभ होगा, बल्कि दुनिया को भी फायदा होगा, क्योंकि चांद के इस हिस्से की आज तक खोज नहीं हो पायी है. आज के दिन चांद की सतह के दक्षिणी ध्रुव के पास भारत के लैंडर और रोवर का होना बहुत बड़ी बात है. साथ ही, चांद की कक्षा में दो ऑर्बिटर भी परिक्रमा कर रहे हैं.

यानी कुल मिलाकर, इस वक्त भारत के चार रोबोटिक उपकरण चांद पर हैं जो बहुत ही बड़ी बात है. भारत के चंद्रयान अभियान को दुनिया भी उसी नजर से देख रही है. अमेरिका, रूस और चीन जैसे देश जिस कोशिश में नाकाम रहे, उसमें भारत न केवल सफल रहा, बल्कि इसे केवल 700 करोड़ रुपये की लागत में संभव कर दिखाया. विक्रम की चांद की सतह पर कामयाब लैंडिंग के बाद उसके भीतर मौजूद छह पहियों वाला प्रज्ञान रोवर भी बाहर आ चुका है.

अब अगले 14 दिनों तक विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर चंद्रमा की सतह पर चक्कर लगाकर कई तरह के प्रयोग करेंगे. विक्रम और प्रज्ञान दोनों पर कैमरे लगे हैं. प्रज्ञान पर एक अल्फा-पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्टोमीटर लगा है, जो चंद्रमा की सतह पर रसायनों और खनिजों के बारे में जानकारी जुटायेगा. ऐसे ही, एक लेजर चालित स्पेक्ट्रोस्कोप लैंडिंग स्थल के आसपास की चंद्रमा के सतह पर मिट्टी और चट्टानों के तत्वों के बारे में पता लगायेगा.

लैंडर के साथ रंभा-एलपी नामक एक खोजी उपकरण भी है, जो सतह के प्लाज्मा घनत्व यानी वहां आयनों और इलेक्ट्रॉन्स के घनत्व और उनमें समय के अनुरूप आने वाले बदलावों का अध्ययन करेगा. इसी प्रकार, चेस्ट या चंद्रा सर्फेस थर्मो फिजिकल एक्सपेरिमेंट नाम के एक अन्य प्रयोग में ध्रुवीय क्षेत्र में चंद्रमा की सतह पर गर्माहट के बारे में पता लगाया जायेगा.

इनके अलावा, चांद पर लैंडिंग स्थल के आसपास भूकंपीय गतिविधियों का भी अध्ययन किया जायेगा. विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर का अभियान एक चंद्र दिवस का है जो कि पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर होता है. प्रज्ञान सोलर पावर से चल रहा है और समझा जाता है कि 14 दिनों के बाद उसकी गतिविधि धीमी हो जायेगी. चंद्रमा के इस हिस्से में जब 14 दिनों की रात होगी तो तापमान माइनस 200 डिग्री सेंटीग्रेड तक हो जा सकता है, जिससे इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण जम कर नष्ट हो सकते हैं.

इन 14 दिनोंं में वह विक्रम लैंडर के संपर्क में रहेगा जो धरती पर सूचनाएं भेजता रहेगा. इसरो वैज्ञानिकों का रोवर से सीधा संपर्क नहीं है. विक्रम की लैंडिंग के लिए इसरो ने चंद्रमा के जिस हिस्से का चुनाव किया है उसे, मैंने कलाम विहार नाम दिया है, क्योंकि यह भारत के पूर्व राष्ट्रपति और प्रख्यात रक्षा वैज्ञानिक डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम थे, जिन्होंने चंद्रयान के पहले अभियान के समय इसरो को यह सुझाव दिया था कि अगर वे चंद्रमा की कक्षा में ऑर्बिटर भेज ही रहे हैं, तो वह उसे सतह पर उतारने की कोशिश क्यों नहीं करते.

वह एक महत्वपूर्ण सोच थी और उसी का परिणाम है कि आज भारत ने चांद पर झंडा लगा दिया है. विक्रम ने जिस जगह लैंडिंग की है, उस जगह का नाम इंडिया प्वाइंट रखने को लेकर भी चर्चा चल रही है. आगे चलकर यदि चांद पर कुछ महत्वपूर्ण खनिज या संसाधन मिलते हैं और उन्हें बांट कर इस्तेमाल करने की बात होती है, तो उस हिस्से में सबसे पहले पहुंचने की वजह से भारत का हक मजबूत रहेगा.

भारत ने चंद्रमा को समझने के लिए चंद्रयान नाम के अपने खोजी अभियान के तहत अभी तक तीन मिशन चलाये हैं. सबसे पहले 2008 में चंद्रयान-1 भेजा गया था जिसने चंद्रमा की सतह पर पानी के अणुओं का पता लगाया. इसके 11 साल बाद 2019 में भारत ने चंद्रयान-2 अभियान चलाया. हालांकि, चांद की कक्षा में चक्कर लगाते समय लैंडिंग से कुछ देर पहले उसका लैंडर विक्रम भटक गया और उसका अंतरिक्ष केंद्र से संपर्क टूट गया.

लेकिन, चंद्रयान-2 के साथ गया ऑर्बिटर अभी भी चंद्रमा की परिक्रमा कर रहा है और इसका इस्तेमाल चंद्रयान-3 में भी किया जायेगा. चंद्रयान-2 के अनुभवों से सीख लेकर इसरो के वैज्ञानिकोंं ने चंद्रयान-3 के लिए कई सारे टेस्ट किये ताकि विक्रम की सटीक और सुरक्षित सॉफ्ट लैंडिंग हो सके. चंद्रयान की सफलता के कुछ ही समय बाद इसरो अब एक बड़ा अभियान शुरू करेगा, जिसका नाम आदित्य-एल1 है.

इसमें इसरो सूरज की ओर अपना यान भेजेगा. भारत ने चांद से दोस्ती कर ली है. अब वह सूरज से भी दोस्ती करेगा. आदित्य-एल1 के बाद भारत का सबसे बड़ा अभियान गगनयान होगा. इसके तहत पहली बार किसी भारतीय अंतरिक्ष यात्री को, भारत के ही अंतरिक्ष यान से, भारत से ही अंतरिक्ष में रवाना किया जायेगा. गगनयान अभियान की लागत 10 हजार करोड़ रुपये है और यह आने वाले समय में बहुत ही बड़ा मिशन होगा. भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के विषय में मैं बहुत पहले से कहता आ रहा हूं कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, यानी इसरो औसत क्षमता के सागर में उत्कृष्टता का एक टापू है.

इसरो में योग्यता को आत्मसात कर एक संस्कृति तैयार की गयी है. उन्हें जो भी सुविधाएं या संसाधन दिये गये हैं, उसे उन्होंने भारत को भली-भांति वापस किया है. इसरो की तुलना एक ऐसे वृक्ष से की जा सकती है जिसे 50 सालों से धीमे-धीमे पानी दिया गया और उसकी रखवाली की गयी. अब वह पेड़ बड़ा हो गया है और चांद पर पहुंच गया है. भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान इस मुकाम पर कई दशकों की मेहनत से पहुंच पाया है. इसरो में भारत की हर सरकार ने निवेश किया है, और बल्कि शायद यह कहना सही होगा कि इसरो में पूरे देश ने, और देश के हर व्यक्ति ने निवेश किया है तथा इसरो ने उसका शानदार रिटर्न दिया है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें