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विलुप्त होते आदिवासियों की चिंता

देश की कुल जनसंख्या का 8.2 प्रतिशत भाग आदिवासियों का है. आदिवासी समूहों में से लगभग 10 ऐसे समूह हैं, जिन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ मिला है और उन्होंने सरकार द्वारा प्रदत्त आरक्षण का भी भरपूर लाभ उठाया है, लेकिन अधिकतर आदिवासी समूह सरकार की योजनाओं से वंचित रहे हैं.

विगत दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आदिवासी क्रांतिकारी नेता भगवान बिरसा मुंडा के जन्मदिन पर उनके जन्म स्थान झारखंड स्थित खूंटी के उलिहातू से एक महत्वाकांक्षी कल्याणकारी ‘जनमन योजना’ की घोषणा की. इस योजना को ऐतिहासिक बताया जा रहा है. यह योजना ऐसे 75 आदिवासी समूहों के सर्वांगीण विकास पर केंद्रित है, जो आज भी देश की मुख्यधारा से विमुख हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने 15 नवंबर, 2023 को लगभग 24 हजार करोड़ रुपये के बजट के साथ पीएम जनजाति आदिवासी न्याय महा अभियान का शुभारंभ किया. इस योजना के माध्यम से आदिवासी समाज के लोगों को बेहतर आजीविका के अवसरों जैसी बुनियादी सुविधा और जरूरत को सुनिश्चित करने का काम किया जायेगा. यह तीसरा मौका है, जब भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार ने आदिवासियों के लिए बड़ा काम किया है. इस मामले में खुद प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भाजपा की अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने आदिवासी समाज के लिए अलग से मंत्रालय बनाया और अलग बजट आवंटित किया. पहले की तुलना में आदिवासी कल्याण का बजट छह गुना बढ़ाया गया है, ताकि प्रधानमंत्री जनमन योजना के तहत सरकार आदिवासी समूह और आदिम जनजातियों तक पहुंच कर उनका विकास सुनिश्चित कर सके. इससे पहले भाजपा सरकार ने ही आदिवासियों को केंद्र में रख कर दो प्रांतों का गठन किया, जिसमें झारखंड एक व्यापक जनजातीय बहुल प्रदेश है.

इस योजना को विशेष रूप से आदिवासियों के कल्याण हेतु बनाया गया है, जिसके लिए प्रधानमंत्री ने प्रथम चरण में 24 हजार करोड़ रुपये आवंटित किये हैं. भारत में आदिवासियों की संख्या 10 करोड़ से अधिक है. आंकड़ों के अनुसार, देश की कुल जनसंख्या का 8.2 प्रतिशत भाग आदिवासियों का है. आदिवासी समूहों में से लगभग 10 ऐसे समूह हैं, जिन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ मिला है और उन्होंने सरकार द्वारा प्रदत्त आरक्षण का भी भरपूर लाभ उठाया है, लेकिन अधिकतर आदिवासी समूह सरकार की योजनाओं से वंचित रहे हैं. सरकार का दावा है कि आदिवासी समूहों में से 75 ऐसे समूह हैं, जहां आज भी सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं के बराबर पहुंचा है. प्रधानमंत्री मोदी द्वारा घोषित यह जनमन योजना उन्हीं 75 आदिवासी समूहों पर केंद्रित है. प्रधानमंत्री ने हाल ही में जिस विकसित भारत की आधारशिला रखी है, उसमें भी इस योजना की चर्चा की गयी है. यह बताया गया है कि जब तक देश के घने वनों, गिरी और कंदराओं में रहने वाले जनजातियों को देश के विकास की मुख्यधारा से नहीं जोड़ा जायेगा, तब तक विकास की अवधारणा अधूरी ही समझी जायेगी. प्रधानमंत्री मोदी द्वारा पीएम जनमन योजना को शुरू करने का मुख्य उद्देश्य जनजातीय आदिवासी समुदाय के नागरिकों का विकास सुनिश्चित करना है.

इस योजना के माध्यम से आदिवासी जनजातियों के परिवारों को सड़क और दूरसंचार कनेक्टिविटी, बिजली पहुंचाने, सुरक्षित आवास, स्वच्छ पेयजल आदि सुविधा उपलब्ध करवाने का काम किया जायेगा. साथ ही, शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण तक इन जनजातियों की पहुंच बनाने के लिए बुनियादी सुविधाओं और जरूरतों को पूरा किया जायेगा. योजना में इस बात की चर्चा की गयी है कि अति पिछड़े 75 आदिवासी समूह देश के 22 हजार से अधिक गांवों में रहते हैं. इनकी संख्या लाखों में है, जो विलुप्त होने की कगार पर हैं. इस योजना के तहत सरकार की अन्य योजनाओं को भी जोड़ा गया है, जैसे- शत प्रतिशत टीकाकरण, सिकल सेल रोग उन्मूलन, पीएमजेएवाइ, टीबी उन्मूलन, पीएम सुरक्षित मातृत्व योजना, पीएम मातृ वंदना योजना, पीएम पोषण, पीएम जन योजना आदि. इन योजनाओं के माध्यम से जनजातियों का विकास अलग से सुनिश्चित किया जायेगा. यह योजना देश के 18 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में चलायी जायेगी. इसके तहत देश के 220 जिलों को आच्छादित किया जायेगा. सरकारी दावे में कहा गया है कि योजना से देश की 28 लाख जनसंख्या लाभान्वित होने वाली है.

प्रधानमंत्री द्वारा इस योजना में विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह मिशन के तहत लगभग 28 लाख विशेष पिछड़ी जनजाति समूह (पीवीटीजी) को दायरे में लाया जायेगा. इस मिशन के तहत जनजातीय समूहों के लिए विभिन्न कार्यक्रम चलाये जायेंगे, ताकि आदिवासियों का कल्याण किया जा सके. सरकार की ओर से बताया गया है कि सरकार 75 सूक्ष्म आदिवासी समूह वाले 22 हजार गांवों में बिजली, सुरक्षित घर, पीने का साफ पानी, सफाई, शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण तक बेहतर पहुंच, रोजगार और रहन-सहन के मौके आदि उपलब्ध करवायेगी. इस प्रकार, देश में यह पहला मौका है कि किसी सरकार ने देश के उन सूक्ष्म आदिवासियों के लिए अलग से योजना बनायी है, जो लंबे समय से विकास की मुख्यधारा से न केवल दूर हैं, अपितु उनके पास जो मानवीय संसाधन है, उसका भी बेहतर उपयोग नहीं हो पा रहा है और वे विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गये हैं.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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