सुमन बाजपेयी, टिप्पणीकार
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डीग महल में प्रवेश करते ही यह अजीब सी अनुभूति होती है.
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चारों ओर फैले बाग, हरियाली, बड़े-बड़े पेड़ और विविध किस्मों के फूल इस महल के सौंदर्य को बढ़ाने के साथ-साथ पर्यटकों को भी मंत्रमुग्ध करते हैं.
डीग पहली नजर में एक साधारण गांव जैसा लगता है. राजस्थान के भरतपुर से कोई 32, दिल्ली से 153 और आगरा से 98 किलोमीटर दूर यह स्थान पावन ब्रजभूमि की सीमा में अवस्थित है. इसका प्राचीन नाम दीर्घपुर था. 18वीं-19वीं शताब्दी में यह जाट शासकों की सत्ता का केंद्र बना. डीग में राजाराम (1686-88) के नेतृत्व में जाट किसानों का अभ्युदय हुआ. उसके बाद भज्जा सिंह तथा चूड़ामन ने नेतृत्व संभाला. चूड़ामन की मृत्यु के बाद बदनसिंह ने पास के कई भू-भागों पर आधिपत्य कर भरतपुर में जाट शासन की वास्तविक नींव रखी. उन्हें भव्य भवनों, बगीचों आदि के निर्माण द्वारा डीग को एक उदीयमान नगर में परिवर्द्धित करने का श्रेय दिया जाता है.
भव्यता, शान, वास्तुशिल्प व विस्तार का वर्णन शब्दों में करना असंभव है
बदन सिंह के उत्तराधिकारी एवं पुत्र सूरजमल (1756-63) के शासनकाल में जाट शासन अपनी चरम सीमा पर पहुंचा. डीग महल का निर्माण सूरजमल ने अपने रहने के लिए करवाया था, और यही इस जिले का मुख्य आकर्षण है. इसकी भव्यता, शान, वास्तुशिल्प व विस्तार का वर्णन शब्दों में करना असंभव है.
इस महल के सौंदर्य को बढ़ाने के साथ-साथ पर्यटकों को भी मंत्रमुग्ध करते हैं
परिसर के प्रवेश द्वार पर दो सिंह आकृतियां बनी हैं, जिसके कारण यह सिंह द्वार कहलाता है. महल में प्रवेश करते ही यह अजीब सी अनुभूति होती है. विशालकाय वास्तुशिल्प के इस महल का रखरखाव बेहद व्यवस्थित ढंग से किया जाता है, यह तो उसे देखकर पता चल रहा था. चारों ओर फैले बाग, हरियाली, बड़े-बड़े पेड़, और विविध किस्मों के फूल इस महल के सौंदर्य को बढ़ाने के साथ-साथ पर्यटकों को भी मंत्रमुग्ध करते हैं.
भवन का मध्यवर्ती उभरा हुआ भाग भव्य मेहराबों एवं सुंदर स्तंभों से सुशोभित है
सबसे पहले महल के परिसर में स्थित गोपाल भवन पर नजर जाती है. अन्य भवनों में यह सबसे बड़ा है. इसके समीप ही स्थित है जलाशय. उसके अंदर प्रतिबिंबित होता है पूरे परिसर का सौंदर्य. इस प्रतिबिंब को देखना भी किसी अद्भुत दृश्य से कम नहीं है. इस भवन में मध्यवर्ती विशाल कक्ष है, जिसके दोनों ओर कम ऊंचाई वाले उपभवन बने हुए हैं. भवन का मध्यवर्ती उभरा हुआ भाग भव्य मेहराबों एवं सुंदर स्तंभों से सुशोभित है.
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महल के उत्तरी भाग के एक कक्ष में संगमरमर की सिंहासन चौकी रखी हुई है जो दिल्ली के शाही महलों से लायी गयी थी. गोपाल भवन के उत्तर और दक्षिण में दोनों ओर क्रमशः सावन तथा भादो नामक दो मंडप हैं. ये मंडप दो मंजिले हैं जिनकी ऊपरी मंजिल ही सामने से दिखायी पड़ती है. इन मंडपों की पालकीनुमा छतों पर कलश पंक्ति लगी हुई है जो कारीगरों की कल्पना का द्योतक है.
आगे परिसर में बना है सूरज भवन. संगमरमर से निर्मित सपाट छत वाले इस एक मंजिला भवन का निर्माण सूरजमल ने कराया था. भवन के बीच में मेहराब युक्त बरामदा तथा उसके दोनों ओर एक-एक कक्ष बने हैं. मूलतः सूरज भवन को बलुआ पत्थर से बनवाया गया था. बाद में उसे संगमरमर से बनवाया गया. मध्यवर्ती कक्ष में अलंकृत पट्टी के दीवारों पर उत्कृष्ट पच्चीकारी की हुई है. परिसर के दक्षिणी भाग में स्थित है किशन भवन.
झुकी हुई छत पर्णकुटी के आकार की है
इसके अलंकृत फलकीय पुरोभाग के बीचों-बीच पांच विशाल मेहराबों से युक्त प्रवेश द्वार है. मेहराबों के मध्य भाग में भारी नक्काशी की गयी है. भवन के भीतरी भाग में छज्जायुक्त अलंकृत आला है जिसकी झुकी हुई छत पर्णकुटी के आकार की है. सूरज भवन के पीछे है हरदेव भवन जिसके सामने मुगलकालीन चार-बाग शैली का एक विशाल उद्यान है. इस भवन का पिछला भाग तीन ओर से स्तंभों पर आधारित मेहराबदार बरामदों से घिरा हुआ है.
गरजते बादलों की अनुभूति होती थी
आमतौर पर बारादरी कहलाने वाला किशन भवन रूप सागर के किनारे स्थित एक मंजिला चौरस खुला मंडप है. इस मंडप में वर्षा का आभास दिलाने के लिए एक अनूठी व्यवस्था की गयी थी. इसकी छत में बहते हुए पानी द्वारा प्रस्तर गोलकों के आंदोलित होने से गरजते बादलों की अनुभूति होती थी तथा मेहराबों के ऊपर स्थित परनालों से गिरते हुए पानी में वर्षा का आभास होता था. इसके चारों ओर एक चौड़ी नहर भी बनायी गयी थी.
स्थानीय शासकों के वैभवपूर्ण जीवनशैली को देखा जा सकता है
राजपूत शैली में निर्मित पुराना महल का निर्माण बदन सिंह ने करवाया था. इस महल के विस्तृत आयताकार आंतरिक भाग में दो अलग-अलग प्रांगण हैं. इनमें बनी मेहराब दंताग्र व नुकीली दोनों प्रकार की हैं, जो एक अलग ही प्रभाव छोड़ती हैं. परिसर में ही संग्रहालय स्थित है, जिसमें जाने के लिए टिकट लेना पड़ता है. यहां स्थानीय शासकों के वैभवपूर्ण जीवनशैली को देखा जा सकता है. इसमें 10 वीथिकाएं हैं जिनमें लगभग 550 पुरावशेष संग्रहित हैं.
लाखा तोप
डीग के किले का आकर्षण है महाराजा सूरजमल के समय बनायी गयी लाखा तोप. इसका वजन एक लाख किलोग्राम है, इसलिए इसे लाखा तोप कहा जाता है. इसकी मारक क्षमता 300 किलोमीटर तक की है. इसका इस्तेमाल एक बार 1761 में किया गया था. डीग से दागा गया गोला आगरा किले की दीवारों पर जाकर गिरा और उसका दरवाजा टूट गया.