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Dhoop Ki Deewar Review: भारत पाक युद्ध के मानवीय पक्ष को दर्शाती है यह सीरीज

आमतौर पर भारत या पाकिस्तान में बनी युद्ध की फिल्मों में दूसरे पक्ष को हमेशा खलनायक के रूप में दिखाती हैं लेकिन पाकिस्तान में बनी सीरीज धूप की दीवार तटस्थ रुख अपनाती है. यह शो किसी भी पक्ष के सैनिकों को नीचा दिखाए बिना युद्ध-विरोधी संदेश को बखूबी देती है.

वेब सीरीज- धूप की दीवार

निर्देशक- हबीब हसन

प्लेटफार्म -ज़ी 5

कलाकार-सजल अली, अहद रज़ा मीर , जैब रहमान, सवेरा नदीम,सामिया,समीना ,मंजर और अन्य

रेटिंग ढाई

Dhoop Ki Deewar Review: आमतौर पर भारत या पाकिस्तान में बनी युद्ध की फिल्मों में दूसरे पक्ष को हमेशा खलनायक के रूप में दिखाती हैं लेकिन पाकिस्तान में बनी सीरीज धूप की दीवार तटस्थ रुख अपनाती है. यह शो किसी भी पक्ष के सैनिकों को नीचा दिखाए बिना युद्ध-विरोधी संदेश को बखूबी देती है. यह सीरीज जवानों और उनके परिवारों के प्रति गहरी सहानुभूति दिखाता है और उन्हें भारतीय या पाकिस्तानियों के बजाय मानवीय रूप देता है. यह सीरीज बखूबी इस बात को दर्शाती है कि बॉर्डर पर सिर्फ सैनिक नहीं मरता है उसके साथ उसके परिवार की खुशियां भी दम तोड़ जाती हैं.

18 एपिसोड्स वाले इस सीरीज की कहानी की कहानी पाकिस्तान की सारा (सजल अली) और भारत के रहने वाले विशाल मल्होत्रा (अहद रज़ा मीर) की है।.दोनों ने अपने पिताओं को भारत पाकिस्तान के बॉर्डर पर हुए एक संघर्ष में खो दिया है. जिसके बाद वह सोशल मीडिया और मीडिया के ज़रिए एक दूसरे के खिलाफ मोर्चा शुरू कर देते हैं लेकिन जल्द ही उन्हें समझ आ जाता है कि दोनों का दुख एक जैसा है. दोनों अपना गम भुलाकर एक दूसरे का सहारा बनने की कोशिश करते हैं. दोनों इस बात को समझ जाते हैं कि युद्ध में अपने को खोना किसी भी परिवार के लिए भयानक होता है फिर चाहे वह भारत का हो या पाकिस्तान का. सीरीज के आखिरी दो एपिसोड में कहानी अलग ही मोड़ पर लेती है. जो सोच के बिल्कुल विपरीत है. मौजूदा अन्धराष्टीयता के दौर में यह सीरीज शांति का मूल संदेश बखूबी बयां करती है.

खामियों की बात करें तो 18 एपिसोड की यह सीरीज बहुत लंबी बन गयी है और कहानी को कहने की रफ्तार भी धीमी है. कई बार यह वेब सीरीज कम टीवी धारावाहिक के करीब ज़्यादा नज़र आता है. विशाल मल्होत्रा का किरदार अमृतसर का होकर भी अमृतसर का नहीं लगता है. उसके परिवार का मेरे को तेरे को शब्दों का इस्तेमाल करते देखना अखरता है.

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अभिनय की बात करें तो इस सीरीज की यूएसपी है जो इसे मजबूती देता है. सजल अली और अहद रज़ा मीर ने अपने किरदारों को बखूबी जिया है. जैब रहमान, सवेरा नदीम,सामिया,समीना और मंजर जैसे कलाकारों ने कहानी के दर्द और उसमें छिपे संदेश को अपने अभिनय ने बखूबी दिल को छू जाने वाला रंग भरा है. सीरीज का गीत संगीत और बैकग्राउंड स्कोर कहानी के साथ न्याय करते हैं.

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