60 के दशक के हिंदी सिनेमा के मशहूर अभिनेता विश्वजीत दिलीप कुमार को ना सिर्फ अभिनय की प्रेरणा कहते हैं बल्कि उनसे अपने रिश्ते को निजी बताते हुए उन्हें अपना बड़ा भाई करार देते हैं. अभिनय सम्राट दिलीप कुमार के साथ उनकी कई यादें जुड़ी हैं. उर्मिला कोरी से हुई बातचीत में उन्होंने पुरानी यादों को सांझा किया. बातचीत के प्रमुख अंश
पहली मुलाकात
मैं उन्हें युसूफ भाई कहता था. हमारे कई साल पुराने रिश्ते हैं. युसुफ भाई से मेरी पहली मुलाकात 1970 में एक बंगाली फिल्म पत्रिका के पुरस्कार समारोह में हुई थी. पुरस्कार समारोह कलकत्ता में आयोजित किया गया था. गायक हेमंत मुखर्जी ने मुझे पहली बार यूसुफ भाई से मिलवाया।मैं बॉलीवुड में कदम रखने ही वाला था. ‘बीस साल बाद’ से बॉलीवुड में डेब्यू करने वाला हूं. यह सुनकर उन्होंने पूरे दिल से मेरा स्वागत किया. जिस तरह से उन्होंने मुझसे बात की उससे मैं अभिभूत हो गया था. उस पुरस्कार सामारोह में उत्तम कुमार भी उपस्थित थे. मैंने पहल की और यूसुफ भाई से उत्तम दा की बात कराई. दोनों के बीच औपचारिक बातचीत हुई. वैसे मेरी जिंदगी का वो खास दिन था जब दिलीप कुमार मेरी पहली फिल्म ‘बीस साल बाद’ के प्रीमियर पर आए. मैं यह बात शब्दों में बयां नहीं कह सकता कि मैं उन्हें देखकर कितना खुश हुआ था.
सेट पर वो निर्देशक को गाइड नहीं करते थे
मैं उन खुशनसीब एक्टर्स में से हूं जिन्होंने यूसुफ भाई के साथ काम किया है. हमने साथ फिल्म ‘फिर कब मिलोगी’ में काम किया था. इस फिल्म के डायरेक्टर ऋषिकेश मुखर्जी थे. ऋषि दा के युसूफ भाई अच्छे दोस्त थे. उन्होंने न केवल ऋषि दा की पहली फिल्म ‘मुसाफिर’ में अभिनय किया था बल्कि उसमें गाना भी गाया था. फ़िल्म फिर कब मिलोगी की सेट पर मैंने देखा कि बहुत बड़े कलाकार होने के बावजूद सेट पर उनको पता होता था कि कैप्टन ऑफ शिप डायरेक्टर होता है. वे कभी भी सेट पर शूटिंग के वक़्त निर्देशक को नहीं कहते थे कि ये सीन ऐसा नहीं होना चाहिए या ऐसे वे करेंगे तो बेहतर होगा. जो भी चेंज उनको करना होता था वो शूट से पहले वे मेकअप रूम में अकेले में निर्देशक से मिलकर अपनी बात रखना पसंद करते थे.
इस बात के लिए मेरी करते थे तारीफ
एक दिन लता जी के घर पर हम सभी खाने पर मिले थे. उस दौरान सभी ये बातचीत कर रहे थे कि हर एक्टर शुरुआत में यूसुफ भाई से प्रभावित रहा है. उन्ही को परदे पर परिभाषित करने की कोशिश की है अलग अलग दृश्यों में धर्मेंद्र से अमिताभ तक. इस पर उन्होंने मेरा नाम लिया और कहा कि मैंने उन्हें कभी कॉपी करने की कोशिश नहीं की. ये बात उन्हें मेरी बहुत पसंद थी. वो हमेशा कुछ अलग करने वालों को पसंद करते थे.
हर काम में बेस्ट देना पसंद था
यूसुफ भाई अनेक गुणों के धनी थे. वे ना सिर्फ बेहतरीन एक्टिंग करते थे बल्कि स्पोर्ट्स में भी चैंपियन थे. वे बहुत अच्छा क्रिकेट खेलते थे.
हम साथ में क्रिकेट मैच बहुत सारे खेलते थे. मैच से पहले वह सुबह मैदान पर जाकर अभ्यास करते थे ताकि मैच के दौरान मैदान में भी अपना बेस्ट दे सकें. वे बहुत अच्छा कुक भी करते थे. खाने में भी वो अलग अलग तरह का एक्सपेरिमेंट करते थे. उन्हें मुगलई खाना बहुत पसंद था. हैदराबादी बिरयानी और कबाब के भी वो बहुत शौकीन थे.
बहुत केयरिंग इंसान
यूसुफ भाई बहुत ही केयरिंग इंसान थे. अपने आसपास के लोगों का बहुत खयाल रखते थे।मुझे याद है हम लखनऊ एक शादी में शरीक होने गए थे लखनऊ से मुंबई वापस आते समय, मैं एक फोटोशूट के लिए कोलकाता चला गया लेकिन मेरी पत्नी यूसुफ भाई और सायरा जी के साथ वापस मुम्बई आ रही थी. मेरी पत्नी को अस्थमा है. ये बात यूसुफ भाई जानते थे उन्होंने मेरी पत्नी का बहुत खयाल रखा. मेरी पत्नी के लिए उन्होंने कंबल की व्यवस्था भी की. उन्होंने मेरी पत्नी को समझाया कि कैसे अपना ख्याल रखना चाहिए. क्या चीज़ें परहेज करनी चाहिए.
आखिरी मुलाकात
आशा पारेख की बर्थडे पार्टी थी सन एंड सैंड में. तकरीबन 10 साल पहले की बात है. उस समय वे बीमार हो रहे थे और लोगों को पहचान नहीं पाते थे. अमिताभ बच्चन,मनोज कुमार कई लोगों को उन्होंने नहीं पहचाना लेकिन उन्होंने मुझे पहचान लिया और मेरा हाथ पकड़ लिया और कहने लगे यहां से चलते हैं बाहर. चूंकि पार्टी थी तो बहुत भीड़ थी इसलिए वो बाहर जाना चाहते थे. बाहर बारिश हो रही थी. इशारे से सायरा जी ने मुझे कहा कि मत ले जाइए बाहर. मैंने यूसुफ भाई का हाथ पकड़ा और उन्हें भीड़ से अलग एक कोने में रखे सोफे पर ले जाकर बिठा दिया. जहां से वह बाहर की बारिश को देख सकते थे।फिर वह पार्टी में सहज हो गए थे.
यूसुफ भाई अमर रहेंगे
उनमें कुछ भी बनावटी नहीं था. जमीन से जुड़े इंसान थे।बहुत प्यार से बात करते थे कंधे पर हाथ रखकर बात करते थे. आखिर के सालों में उनसे मुलाकात कम हो गयी थी. सच कहूं तो उन्हें इस तरह से देखना अच्छा नहीं लगता था. हम तो उन्हें लीजेंड के तौर पर देखते आए हैं. जब तक जिऊंगा उनकी पुरानी इमेज को लेकर ही जिंदा रहूंगा. यूसुफ भाई सिनेमा में अपने अहम योगदान की वजह से हमेशा अमर रहेंगे. जब तक हिंदुस्तानी फ़िल्म लोग देखेंगे तब तक दिलीप कुमार रहेंगे एक सूरज की तरह.
Posted By: Shaurya Punj