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Dream Girl 2 Movie Review: एंटरटेनमेंट से भरपूर है ड्रीम गर्ल 2…आयुष्मान खुराना ने पूजा बन लूट ली है महफिल

Dream Girl 2 Movie Review: ड्रीम गर्ल 2 सिनेमाघरों में दस्तक दे चुका है. पहले सीक्वल में वह कॉल सेंटर में लड़की की आवाज़ में पुरुषों से प्यार भरी बातें करते थे. इसी बात को फ़िल्म ड्रीम गर्ल 2 में आगे बढ़ाया गया है.

फ़िल्म – ड्रीम गर्ल 2

निर्माता – एकता कपूर

निर्देशक – राज शांडिल्य

कलाकार – आयुष्मान खुराना, अनन्या पांडे, परेश रावल, राजपाल यादव, अन्नू कपूर, सीमा पाहवा, मनोज जोशी, अभिषेक बनर्जी और अन्य

प्लेटफार्म – सिनेमाघर

रेटिंग – तीन

लीग से अलग हटकर फिल्मों का चेहरा रहे अभिनेता आयुष्मान खुराना की 2019 में रिलीज फ़िल्म ड्रीम गर्ल उनकी पहली कमर्शियल फ़िल्म थी. उनकी मानें तो यह फ़िल्म उनके करियर की सबसे कमाई करने वाली फ़िल्म भी थी. अब इस फ़िल्म का सीक्वल ड्रीम गर्ल 2 सिनेमाघरों में दस्तक दे चुका है. पहले सीक्वल में वह कॉल सेंटर में लड़की की आवाज़ में पुरुषों से प्यार भरी बातें करते थे. इसी बात को फ़िल्म ड्रीम गर्ल 2 में आगे बढ़ाया गया है. अब वह लड़की की आवाज ही नहीं बल्कि लड़की के गेटअप और अदाओं से पुरुषों को रिझा रहे हैं. कहानी आगे बढ़ी है, तो एंटरटेनमेंट भी आगे बढ़ा है. फ़िल्म में कॉमेडी का ओवरडोज है और आयुष्मान के साथ उम्दा कलाकारों की टोली भी है. पिछली फ़िल्म की तरह इस बार खास मैसेज भले ही फ़िल्म की कहानी नहीं दे पायी है और सेकेंड हाफ में कहानी कमज़ोर भी पड़ती है, लेकिन इसके बावजूद यह एंटरटेन कर गयी है.

प्यार के लिए कुछ भी कर गुज़रने की है कहानी

फ़िल्म की कहानी करमवीर (आयुष्मान खुराना ) की है. इस बार जिसे परी ( अनन्या पांडे ) से प्यार है, लेकिन परी के पिता ( मनोज जोशी ) को पैसा चाहिए. उसकी शर्त है कि करम के पास अपना घर और बैंक में पच्चीस लाख रुपये रहेंगे तो ही वह अपनी बेटी की शादी करम से करेंगे. इधर करमवीर और उसके पिता (अनु कपूर ) को बैंक वाले घर से बेघर कर चुके हैं और उन पर लाखों का कर्ज है. ऐसे में परी के पिता को शादी के लिए राजी करना उसे दूर की कौड़ी लग रही है. आखिरकार अपने पिता और दोस्त ( मनजोत ) के कहने पर वह पैसों के लिए एक बार में बार गर्ल बन जाता है, लेकिन उसके पैसों की जरूरत यही खत्म नहीं होती है. उसे पैसों के लिए शादी तक करनी पड़ जाती है. असल ज़िन्दगी में महिला बने रहना और उस पर शादी भी कर लेना आसान नहीं है. इससे फ़िल्म में अजीबोगरीब स्थिति आती है, जो हंसी और ठहाकों का ओवरडोज के साथ ट्विस्ट एंड टर्न भी परदे पर ले आती है. क्या परम अपनी असलियत सभी को बता पाएगा. यह सब कैसे होगा. यही आगे की कहानी है.

फ़िल्म की खूबियां और खामियां

फ़िल्म की कहानी को मनोरंजक तरीके से कहा गया है. फ़िल्म शुरू होते ही कुछ मिनटो में सीधे मूल कहानी पर आ जाती है. करम के पूजा बनने में ज़्यादा समय नहीं लेती है और उसके बाद हंसी ठहाके शुरू हो जाते हैं. फ़िल्म के संवाद इसकी यूएसपी है. जो पूरी फ़िल्म का एंटरटेनमेंट लेवल बढ़ाये रखती है. एक पंचलाइन हंसा ही रही होती है कि दूसरी भी आ जाती है. निर्देशक और लेखक राज शांडिल्य की कॉमेडी के ओवरडोज के साथ – साथ इस बात के लिए भी तारीफ करनी होगी कि उन्होने फ़िल्म को फूहड़ नहीं होने दिया है, बल्कि फ़िल्म में बीच – बीच में मैसेज भी दे जाती है. लड़की बनना इतना मुश्किल है तो लड़की होना कितना मुश्किल होगा. रिश्तों की भी अपनी किस्त होती है. जो समय – समय पर भरनी पडती है हालांकि पिछली फ़िल्म की तरह मैसेज प्रभावी नहीं बन पाया है. खामियों की बात करें तो कहानी में उतार -चढ़ाव की कमी है. दो लाइन की कहानी में सवा दो घंटे की फ़िल्म बना दी गयी है. फ़िल्म का क्लाइमेक्स भी खिंचा गया है. यह बात भी कहानी में नहीं बतायी गयी है कि आखिरकार करम और उसके पिता पर बैंक से लेकर इतने लोग का कर्ज कैसे हुआ है. परी का किरदार ठीक से लिखा नहीं गया है. पेंटिंग बेचने वाले दृश्य में उनका किरदार बेवकूफ़ सा लगता है, लेकिन फिर वकील के किरदार में सशक्त दिखती हैं. फ़िल्म के कमज़ोर पहलुओं में इसका संगीत है. पिछली फ़िल्म कर मुकाबले यह कमजोर रह गया है.

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आयुष्मान खुराना ने महफिल लूट ली है

अभिनय की बात करें तो यह आयुष्मान खुराना की फ़िल्म है. उन्होने पूजा और करम दोनों के किरदार में अलग – अलग छाप छोड़ी है. पूजा के किरदार के लिए उनकी मेहनत दिखती है. उनकी अदाएं, नखरे, अंदाज सबकुछ बेहद खास है. पिछली फ़िल्म की तरह इस बार भी आयुष्मान को सह कलाकारों का जबरदस्त साथ मिला है. विजय राज,अन्नू कपूर और राजपाल यादव की विशेष तारीफ करनी होगी. ये अपनी मौजूदगी से फ़िल्म को एक लेवल ऊपर ले जाते हैं. सीमा पाहवा को इस अंदाज में देखना दिलचस्प था. अभिषेक बनर्जी,मनजोत, परेश रावल, असरानी ने भी अपनी मौजूदगी से इस फ़िल्म को खास बनाया है. अनन्या पांडे को फ़िल्म में करने को ज़्यादा कुछ नहीं था. उन्हें खुद पर और काम करने की ज़रूरत है.

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