राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने अपने पहले अग्रिम आकलन में बताया है कि वर्तमान वित्त वर्ष 2023-24 (अप्रैल 2023 से मार्च 2024 तक) में भारत के वास्तविक सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) की वृद्धि दर 7.3 प्रतिशत रहेगी. पिछले साल यह आंकड़ा 7ी.2 प्रतिशत रहा था. इस अनुमान से इंगित होता है कि वृद्धि की उत्साहजनक गति बनी रहेगी. इस वित्त वर्ष की पहली छमाही (अप्रैल से सितंबर 2023) में भारतीय अर्थव्यवस्था ने 7.7 प्रतिशत की दर से वृद्धि कर कई लोगों को अचरज में डाल दिया है. लागत खर्च में कमी तथा कॉर्पोरेट मुनाफे में बढ़ोतरी के साथ ऐसी वृद्धि अगले कुछ तिमाहियों तक बनी रहेगी. उल्लेखनीय है कि सरकार ने इस वित्त वर्ष की पहली छमाही में बजट में अनुमानित राजस्व के आधे से अधिक हिस्से को हासिल कर लिया है. साथ ही, अनुमानित खर्च को भी आधे से कम के स्तर पर रखा गया है. इससे केंद्र को 5.9 फीसदी के अपने कुल वित्तीय घाटे के लक्ष्य को पूरा करने में मदद मिलेगी. इस स्थिति से सरकार को अपने पूंजी व्यय में भी बढ़ोतरी करने में सहायता मिलेगी. कर संग्रहण में वृद्धि और नियंत्रित घाटे से भी अर्थव्यवस्था की मजबूती के ठोस संकेत मिलते हैं.
वार्षिक वृद्धि दर 7.3 प्रतिशत रहने का मतलब है कि इस वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में रफ्तार कुछ कम होगी, जिसका अंदेशा पहले से ही लगाया जा रहा है. भारतीय रिजर्व बैंक ने पहले यह अनुमान लगाया था कि वृद्धि दर सात प्रतिशत रह सकती है, लेकिन एनएसओ का अनुमान उससे अधिक है. अनेक एजेंसियों और संस्थाओं ने इसके 6.5 प्रतिशत के आसपास रहने की बात कही थी. चूंकि यह पहला अग्रिम अनुमान है, तो बात के अनुमान और संशोधित आकलनों में यह आंकड़ा बदल भी सकता है. बहरहाल, इस अनुमान के ठोस आधार हैं. जैसा कि ऊपर रेखांकित किया गया है कि पहली छमाही में विकास दर 7.7 प्रतिशत रही है. इससे दूसरी छमाही को एक बड़ा आधार मिला है. यह महत्वपूर्ण है कि जीडीपी में उपभोग का हिस्सा लगभग 57 प्रतिशत है, जो बहुत सकारात्मक है. पिछले दो वर्षों से निवेश यानी पूंजी निर्माण में भी लगातार बढ़ोतरी हुई है. जीडीपी में इसका भाग लगभग 35 प्रतिशत है. देश में कंस्ट्रक्शन गतिविधियों का विस्तार भी जीडीपी को आधार दे रहा है. इस कारण सीमेंट, लोहा, इस्पात आदि मूलभूत वस्तुओं की मांग में अच्छी बढ़त हुई है. महामारी के दौरान कंस्ट्रक्शन और खनन गतिविधियां ठप पड़ गयी थीं और उसके बाद अर्थव्यवस्था को भी पटरी पर आने में कुछ समय लगा था. लेकिन अब इन दोनों क्षेत्रों में बढ़ोतरी हो रही है. मैनुफैक्चरिंग सेक्टर एक और बड़ा आधार बना है.
यह उत्साहजनक है कि कुल निवेश बढ़ा है, लेकिन यह हर क्षेत्र में एक समान नहीं है. अगर अगली कुछ तिमाहियों तक वृद्धि दर अपेक्षित स्तर पर बनी रहती है, और इसकी ठोस संभावना भी है, तो असमान निवेश की बाधा भी कम हो जायेगी. सेवा क्षेत्र में भी कुछ सुधार है. आने वाले समय में इसमें और बेहतरी की उम्मीद की जा सकती है. कृषि क्षेत्र को लेकर चिंताएं बढ़ी हैं. पिछले वित्त वर्ष में कृषि क्षेत्र में चार प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई थी, पर अभी यह आंकड़ा 1.8 प्रतिशत पर आ गया है. अन्य क्षेत्रों के विस्तार से इस कमी को पाटने में मदद मिल रही है. कृषि में गिरावट की आशंका पहले से ही थी. मौसम के मिजाज में बदलाव से खेती पर असर पड़ रहा है. चावल और गेहूं के निर्यात पर पाबंदी लगाने का प्रमुख कारण यही है कि देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके तथा मुफ्त राशन योजना जैसी पहलों के लिए भी अनाज की उपलब्धता बनी रहे. इसी से जुड़ा मसला मुद्रास्फीति का भी है, जिसके बारे में रिजर्व बैंक ने भी आगाह किया है.
सरकार ने इंफ्रास्ट्रक्चर और विभिन्न क्षेत्रों में जो लगातार पूंजी खर्च किया है, उससे भी जीडीपी को मजबूती मिली है. इस कारण निजी क्षेत्र के निवेश को भी आकर्षित करने में मदद मिल रही है, लेकिन इस खर्च में कमी के संकेत हैं. यह चुनावी साल है, तो मौजूदा तिमाही में सरकार के लिए इसे बढ़ा पाना मुश्किल होगा, लेकिन चुनाव के बाद जो पूर्ण बजट आयेगा, उसमें यह खर्च बढ़ भी सकता है. खबरों की मानें, तो अंतरिम बजट में ही ग्रामीण रोजगार योजना और महिलाओं के कल्याण से जुड़े कार्यक्रमों के लिए आवंटन बढ़ाया जायेगा. इससे अगले वित्त वर्ष में ग्रामीण भारत में मांग बढ़ाने में मदद मिल सकती है, जिसमें अपेक्षित वृद्धि नहीं होने से जीडीपी दर पर असर पड़ा है. सरकार का पूंजी व्यय पहली छमाही में 43.1 प्रतिशत बढ़ा था, पर अक्टूबर-नवंबर में इसमें 8.8 प्रतिशत की कमी देखी गयी. हालांकि उपभोग जीडीपी का बड़ा हिस्सा है और इससे वृद्धि दर को गति मिली है, लेकिन निजी उपभोग के बढ़ने की दर 4.4 है. इससे भी दूसरी छमाही में दर में कमी के आसार हैं.
वैश्विक स्तर पर जो संघर्ष चल रहे हैं, उससे भी अन्य देशों की तरह हमारी अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होती है. हाल में हमारे निर्यात में कमी आयी है. विश्व बैंक ने कहा है कि इस साल वैश्विक जीडीपी 2.4 प्रतिशत की दर से बढ़ेगी. यह लगातार तीसरा साल है, जब वैश्विक वृद्धि की दर नीचे है. रूस-यूक्रेन युद्ध के थमने के आसार नहीं हैं. पश्चिम एशिया में बढ़ते संकट का असर अंतरराष्ट्रीय बाजार पर होने लगा है. लाल सागर में तनाव के कारण स्वेज नहर पर भी असर पड़ा है तथा लंबे रास्ते से जहाजों के आने-जाने से ढुलाई का खर्च बढ़ता जा रहा है. आकलनों की मानें, तो भारतीय निर्यात में 30 अरब डॉलर का नुकसान हो सकता है. यदि भू-राजनीतिक तनाव और संघर्ष जारी रहते हैं, तो निर्यात में नुकसान के साथ हमारे आयात का खर्च भी बढ़ सकता है. अगर वैश्विक वृद्धि कमजोर रही, तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय सामानों की मांग घट सकती है. इस स्थिति में हमें अपनी अर्थव्यवस्था को गतिशील बनाने के लिए घरेलू बाजार में मांग में बढ़ोतरी करने पर ध्यान देना होगा. सरकार ने भी यह प्रतिबद्धता जतायी है कि देश के आर्थिक विकास का लाभ सभी तबकों को मिलना चाहिए. इसे सुनिश्चित कर हम न केवल आय और संपत्ति की असमानता में कमी ला सकते हैं, बल्कि मांग में वृद्धि कर उत्पादन, रोजगार और मांग को भी बढ़ा सकते हैं.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)