प्रोफेसर टीवी कट्टीमनी
कुलपति (केंद्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, आंध्र प्रदेश)
जनजातियों को किसी भी भूमि का पहला निवासी कहा जाता है. वे प्राकृतिक नियतिवाद के उदाहरण हैं, जो हमें प्रकृति के साथ मिलकर रहना सिखाते हैं. उनका सौहार्दपूर्वक रहने और लोकतंत्र का जश्न मनाने का तरीका तथा उनकी संस्कृतियां कुछ अमूर्त विरासतें हैं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही हैं. लेकिन विशेष रूप से स्वतंत्रता के बाद विभिन्न सरकारों द्वारा उनकी उपेक्षा की गयी है. हालांकि पंचशील जैसी उनकी नीतियों को सरकारों ने अपनाया, पर बदले में उनके विकास के लिए ठोस कदम नहीं उठाये गये. उनकी आवश्यकताओं को अन्य विकासात्मक नीतियों में मिला दिया गया, लेकिन उनके लिए विशेष रूप से कोई विशिष्ट परियोजना शुरू नहीं की गयी. वर्तमान सरकार ने अपने लक्ष्य ‘आदिवासियों को सशक्त बनाना, भारत को बदलना’ के तहत कई कदम उठाया है. इस दिशा में पहला कदम द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद के लिए समर्थन करना था. यह आदिवासियों के साथ-साथ महिलाओं के विकास में एक महत्वपूर्ण कदम था. यह ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका प्रयास’ के लिए समाज के हाशिये के उत्थान की दिशा में एक नयी सोच थी. कई आदिवासी लोगों को पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें धनी राम टोटो, जनम सिंह सोय और बी रामकृष्ण रेड्डी, जिन्होंने आदिवासी भाषाओं को संरक्षित करने में बहुत योगदान दिया है, दुखू माझी और चामी मुर्मू जैसे आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ता, जादव पायेंग, तुलसी गौड़ा जैसे पर्यावरणविद, अजय कुमार मंडावी जैसे समाज सुधारक, जो कांकेर (छत्तीसगढ़) में जेल कैदियों को लकड़ी पर नक्काशी सिखाने से जुड़े हैं आदि शामिल हैं.
भारत ने 2023 को ‘अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष’ घोषित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी और अपने जी-20 कार्यक्रमों में बाजरा को ‘श्री अन्न’ के रूप में प्रस्तुत किया, जो आदिवासियों के लिए एक मुख्य भोजन है. इसे अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भविष्य के लिए एक सतत फसल के रूप में मिलेट की क्षमता का प्रदर्शन करने के लिए लहरी बाई (डिंगोरी) और रायमती घुरिया (कोरापुट) को भी आमंत्रित किया. आदिवासी विकास के क्रम में सबसे महत्वपूर्ण कदम प्रधानमंत्री जनजातीय आदिवासी न्याय महा अभियान (पीएम जनमन) को लागू करना है, जिसमें विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (पीवीटीजी) के समग्र विकास के लिए लगभग 24 हजार करोड़ रुपये का बजट शामिल है. सार्वजनिक सूचना ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार, मिशन को नौ मंत्रालयों के 11 विभागों के माध्यम से कार्यान्वित किया जा रहा है. पीएम जनमन योजना के तहत एक लाख लाभार्थियों को पहली किस्त भी दी जा चुकी है. बीते साल नवंबर में प्रकाशित इस रिपोर्ट में बताया गया है कि वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत सरकार ने 2014 से पिछले दशकों की तुलना में लगभग दोगुना लाभ वितरित किया है.
नवीनतम बजट में भी आदिवासी विकास पर चिंतन को देखा जा सकता है. इसमें अगले वित्त वर्ष के लिए जनजातीय मामलों के मंत्रालय के लिए 13 हजार करोड़ आवंटित किये गये है. एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय परियोजना के लिए 5,943 करोड़ रुपये का आवंटन हुआ है. इस बजट में तय किया गया है कि 2047 तक सिकल-सेल रोगों को खत्म करने के लिए शून्य से 40 वर्ष की आयु के सात करोड़ लोगों की सार्वभौमिक जांच की जाए. बजट में विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों के लिए प्रधानमंत्री पीवीटीजी विकास मिशन शुरू करने की घोषणा की गयी, जो इन समूहों के परिवारों और बस्तियों को सुरक्षित आवास, स्वच्छ पेयजल जैसी बुनियादी सुविधाओं से संतृप्त करेगा. यह उन तक बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य, सड़क और दूरसंचार कनेक्टिविटी और स्थायी आजीविका के अवसर पहुंचायेगा. मिशन को लागू करने के लिए अनुसूचित जनजातियों के लिए विकासात्मक कार्य योजनाओं के तहत अगले तीन वर्षों के भीतर 15 हजार करोड़ रुपये उपलब्ध कराये जायेंगे.
जनजातीय विकास और भूले-बिसरे जनजातीय नायक हमेशा प्रधानमंत्री मोदी के लिए प्राथमिकता रहे हैं. अपने रेडियो शो ‘मन की बात’ में उन्होंने आदिवासी नायकों पर बार-बार प्रकाश डाला है. उन्होंने कार्यक्रम में गोविंद गुरु के मानगढ़ धाम का विशेष जिक्र किया. उन्होंने पिछले साल नवंबर में धाम का दौरा भी किया था, जहां उन्होंने आदिवासी इतिहास को लोकप्रिय बनाने के लिए मानगढ़ नरसंहार की सालगिरह मनाने को महत्व दिया था. जनजातीय गौरव दिवस के अवसर पर धरती आबा बिरसा मुंडा को याद करने के साथ-साथ उन्होंने आदिवासी साहस और भावना को उजागर करने के लिए वीर रामजी गोंड, वीर गुंडा धुर या भीमा नायक और अल्लूरी सीताराम राजू को भी याद किया. ‘मन की बात’ में उन्होंने यह भी बताया कि स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासी भाइयों-बहनों के योगदान को समर्पित दस नये संग्रहालय स्थापित किये जा रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने छत्तीसगढ़ की मानकुंवरी बाई जैसी आधुनिक आदिवासी नायकों का उल्लेख किया, जो दोना पत्तल बनाने का प्रशिक्षण प्राप्त कर रही हैं और दीप समूह नामक स्वयं सहायता समूह के जरिये पीएम जनमन से जुड़ी योजनाओं के बारे में जागरूकता भी पैदा कर रही हैं, जिसमें 12 सदस्य शामिल हैं. उन्होंने महाराष्ट्र के आदिवासी शिवाजी शामराव डोले के बारे में भी बात की, जिन्होंने वेंकटेश्वर को-ऑपरेटिव पावर एंड एग्रो प्रोसेसिंग लिमिटेड नाम से सहकारी संगठन चलाने के लिए 20 लोगों की एक टीम बनायी. इससे लगभग 18 हजार लोग जुड़े हुए हैं. केरल की लक्ष्मीकुट्टी, जो एक आदिवासी चिकित्सा विशेषज्ञ हैं, ओडिशा के कुन्नी देवरी, जो सौर ऊर्जा के उपयोग के लिए काम कर रही हैं, झारखंड के हीरामन जी, जो लुप्तप्राय कोरवा भाषा को बचाने के लिए सक्रिय हैं, विजयनगरम के अशोक गजपति राजू, जो वयस्क शिक्षा के लिए एक योद्धा के रूप में कार्यरत हैं, जैसे कई आदिवासी नायकों का उल्लेख प्रधानमंत्री मोदी ने किया है. उनके कुशल नेतृत्व में आदिवासियों को नयी पहचान मिल रही है. उनके लिए विकास और आत्मसम्मान के लिए निरंतर कार्य किये जा रहे हैं. इन प्रयासों से निश्चित रूप से उनमें एक नयी गरिमा और गौरव उत्पन्न होगा तथा वे 2047 के विकसित भारत का अभिन्न अंग बन जायेंगे.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)