आपातकाल का जो वृत्तांत उस समय लिखे गये साहित्य में उपलब्ध है, वह उस समय की सत्ता की ज्यादती और निरंकुशता का परिचय देता है. तत्कालीन साहित्य ने सत्ता की उस निरंकुशता का प्रतिरोध किया. वर्ष 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जब आपातकाल की घोषणा की तो उन्हें संबोधित करते हुए नागार्जुन ने कविता लिखीः
क्या हुआ आपको? क्या हुआ आपको?
सत्ता की मस्ती में भूल गयी बाप को?
इंदु जी, इंदु जी, क्या हुआ आपको?
बेटे को तार दिया, बोर दिया बाप को!
क्या हुआ आपको? क्या हुआ आपको?
भवानी प्रसाद मिश्र ने देश पर आपातकाल थोपने पर व्यंग्य करते हुए ‘चार कौवे उर्फ चार हौवे’ शीर्षक कविता लिखी. उसमें उन्होंने कहा थाः
बहुत नहीं थे सिर्फ चार कौवे थे काले
उन्होंने यह तय किया कि सारे उड़ने वाले
उनके ढंग से उड़ें, रुकें, खायें और गायें
वे जिसको त्योहार कहें, सब उसे मनायें.
कभी-कभी जादू हो जाता है दुनिया में
दुनियाभर के गुण दिखते हैं औगुनिया में
ये औगुनिए चार बड़े सरताज हो गये
इनके नौकर चील, गरुड़ और बाज हो गये.
देश में 25 जून, 1975 की रात आपातकाल लगा था. उसके लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जयप्रकाश नारायण के भाषण को ढाल बनाया था. छब्बीस जून, 1975 को सुबह देश के नाम अपने संदेश में इंदिरा जी ने कहा था कि एक व्यक्ति सेना को विद्रोह के लिए भड़का रहा है. देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए यह ठीक नहीं. इसलिए देश में राष्ट्रपति जी ने आपातकाल लगा दिया है. पच्चीस जून, 1975 को दिल्ली के रामलीला मैदान की रैली में जेपी ने इंदिरा गांधी से इस्तीफे की मांग की थी. इस रैली में दिनकर की काव्य पंक्ति ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’ गूंजी थी. देश के विभिन्न हिस्सों में चल रहे आंदोलन का नेतृत्व कर रहे जयप्रकाश नारायण ने संपूर्ण क्रांति का नारा दिया था. उनके लिए दिनकर ने लिखा थाः
अब जयप्रकाश है नाम देश की आतुर, हठी जवानी का.
कहते हैं उसको जयप्रकाश जो नहीं मरण से डरता है,
हां, जयप्रकाश है नाम समय की करवट का, अंगड़ाई का,
भूचाल, बवंडर के ख्वाबों से भरी हुई तरुणाई का.
है जयप्रकाश वह नाम जिसे इतिहास समादर देता है,
बढ़ कर जिसके पदचिह्नों को उर पर अंकित कर लेता है.
ज्ञानी करते जिसको प्रणाम, बलिदानी प्राण चढ़ाते हैं,
वाणी की अंग बढ़ाने को गायक जिसका गुण गाते हैं.
आते ही जिसका ध्यान, दीप्त हो प्रतिभा पंख लगाती है,
कल्पना ज्वार से उद्वेलित मानस तट पर थर्राती है.
वह सुनो, भविष्य पुकार रहा, वह दलित देश का त्राता है,
स्वप्नों का दृष्टा जयप्रकाश भारत का भाग्य विधाता है.’
भारत के उस भाग्य विधाता की पटना रैली में पुलिस लाठीचार्ज हुआ और अखबारों में रघु राय की एक तस्वीर छपी जिसमें पुलिस जेपी पर लाठी ताने हुए थी. उस तस्वीर को देख धर्मवीर भारती ने मुनादी शीर्षक कविता लिखी थी. उसमें भारती ने कहा थाः
खलक खुदा का, मुलुक बाश्शा का
हुकुम शहर कोतवाल का
हर खासो-आम को आगाह किया जाता है कि
खबरदार रहें
और अपने-अपने किवाड़ों को अंदर से
कुंडी चढ़ा कर बंद कर लें
गिरा लें खिड़कियों के परदे
और बच्चों को बाहर सड़क पर न भेजें क्योंकि
एक बहत्तर बरस का बूढ़ा आदमी
अपनी कांपती कमजोर आवाज में
सड़कों पर सच बोलता हुआ निकल पड़ा है!
उसी बहत्तर साल के बूढ़े आदमी के लिए दुष्यंत कुमार ने लिखा थाः
एक बूढ़ा आदमी है मुल्क में या यों कहो,
इस अंधेरी कोठरी में एक रोशनदान है.
दुष्यंत ने जिसे अंधेरी कोठरी का रोशनदान कहा था, उस जेपी को इंदिरा जी ने 25 जून, 1975 को दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान से गिरफ्तार कराया और जेल की अंधेर कोठरी में डाल दिया. चौधरी चरण सिंह, मोरारजी देसाई, राजनारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और कांग्रेस कार्य समिति के तत्कालीन सदस्य चंद्रशेखर और रामधन सहित कई नेताओं को भी जेल में डाला गया था.
आपातकाल में जेल जाने पर अटल बिहारी वाजपेयी ने ‘कैदी कविराय की कुंडलियां’ शीर्षक कविता पुस्तक लिख डाली. एक कुंडली में अटलजी ने कहा थाः
धरे गये क्यों रामधन, शेखर क्यों हैं बंद
मुझको समझाकर कहो, मैं ठहरा मतिमंद
‘हुआ जब बलिया बागी’ शीर्षक की एक दूसरी कुंडली में अटल जी ने लिखा थाः
धन्य धन्य हैं रामधन, कृष्णभूमि आबाद
साथ चंद्रशेखर सुभग, बयालीस की याद
बयालीस की याद हुआ जब बलिया बागी
विनोबा भावे ने आपातकाल को जब अनुशासन पर्व कहा, तो इसी शीर्षक से अटलजी ने एक कुंडली में लिखा:
अनुशासन का पर्व है, बाबा का उपदेश
हवालात की हवा भी देती यह संदेश
देती यह संदेश, राज डंडे से चलता
जब हज करने जाएं रोज कानून बदलता
कह कैदी कविराय शोर है अनुशासन का
लेकिन जोर दिखाई देता दुःशासन का
केवल कविता में ही नहीं, गद्य की विभिन्न विधाओं में भी आपातकाल के विभिन्न पक्षों को अभिव्यक्ति मिली. आपातकाल के दौर को समझने में दो डायरियां अहम हैं. पहली डायरी है जेपी की और दूसरी चंद्रशेखर की. जेपी ने 21 जुलाई, 1975 को जेल डायरी लिखनी शुरू की थी और वह सिलसिला चार नवंबर, 1975 तक चला. कैद के दौरान जेपी की सेहत का ध्यान नहीं रखा गया. उन्होंने अपनी जेल डायरी ‘कारावास की कहानी’ में इसका संकेत दिया है. पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की जेल डायरी में भी तब के दिनों का वर्णन है. इसी तरह नरेंद्र मोदी की किताब ‘आपातकाल में गुजरात’, मनोहर पुरी की किताब ‘आपातनामा’ और नवल जायसवाल की पुस्तक ‘दूसरी आजादी’ में सत्ता द्वारा हुई ज्यादती की बहुत सी घटनाओं का वर्णन मिलता है. इसके अलावा, राही मासूम रजा के उपन्यास ‘कटरा बी आर्जू’, गोपाल व्यास के उपन्यास ‘सत्यमेव जयते’, यादवेंद्र शर्मा ‘चंद्र’ के उपन्यास ‘प्रजाराम’, निर्मल वर्मा की रचना ‘रात का रिपोर्टर’ और श्रवण कुमार गोस्वामी द्वारा रचित ‘जंगल तंत्रम’ में लोकतंत्र के हनन का संपूर्ण यथार्थ अभिव्यक्त हुआ है. आपातकाल पर ही दीनानाथ मिश्र ने ‘इमरजेंसी में गुप्त क्रांति’ नामक किताब में उस दौर में भूमिगत रहे पत्रकारों के प्रयासों और तत्कालीन घटनाओं को दर्ज किया.
अंग्रेजी में भी आपातकाल पर उपन्यास लिखे गये. सलमान रुश्दी ने ‘मिडनाइट्स चिल्ड्रेन’ नामक उपन्यास में इमरजेंसी को 19 महीने लंबी रात बताया था. विनोद मेहता ने अपनी पुस्तक ‘द संजय स्टोरी’ के बहाने उस दौर में की गयी ज्यादतियों के साथ-साथ मारुति कार प्रोजेक्ट और उसके घोटालों पर भी विस्तार से लिखा. पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने ‘द ड्रामैटिक डिकेड: द इंदिरा गांधी इयर्स’ पुस्तक में लिखा कि आपातकाल को टाला जा सकता था. श्रीधर दामले की किताब ‘द ब्रदरहुड इन सैफ्रन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एंड हिंदू रिवाइलिज्म’, तपन बसु, प्रदीप दत्ता, सुमित सरकार, तनिका सरकार की किताब ‘खाकी शॉर्टस एंड सैफ्रन फ्लैग्स’, कूमी कपूर की किताब ‘द इमरजेंसीः अ पर्सनल हिस्ट्री’, पीएन धर की किताब ‘इंदिरा गांधीः द इमरजेंसी एंड इंडियन डेमोक्रेसी’, कुलदीप नैयर की किताब ‘इमरजेंसी रीटोल्ड’, मीसा कानून के बंदियों द्वारा जेल में लिखी गयी हस्तलिखित पुस्तक ‘कालचक्र’, ए सूर्यप्रकाश की किताब’ द इमरजेंसीः इंडियन डेमोक्रेसीज डार्केस्ट आवर’ से भी कई अनजाने तथ्यों का पता चलता है.
(लेखक महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में प्रोफेसर हैं)