7 मई को युवा साहित्यकार शशि भूषण द्विवेदी का निधन हो गया. यह एक दुखदायी घटना थी , जिसकी चर्चा भी उसी रूप में हुई. किसी ने उनके लेखन की तारीफ की तो किसी ने उनके असमय चले जाने पर गहरा शोक व्यक्त किया, जो स्वाभाविक भी था. लेकिन रात होते-होते इस समाचार के साथ एक विवाद जुड़ गया, जिसके कारण साहित्यजगत दो खेमों में बंट सा गया.
दरअसल विवाद तब शुरू हुआ जब उदय प्रकाश ने अपने फेसबुक पर देर रात एक पोस्ट किया, जिसमें उन्होंने यह बताया कि शशिभूषण द्विवेदी नामक हिंदी के लेखक की मृत्यु हुई है, वे कौन हैं, वे नहीं जानते. उनका आरोप यह है कि साहित्यकार और पत्रकार प्रभात रंजन ने उन्हें फोन पर भद्दी-भद्दी गालियां दीं, वह भी सिर्फ इसलिए क्योंकि उदय प्रकाश शशि भूषण द्विवेदी को नहीं जानते थे. उदय प्रकाश ने लिखा कि मेरे पास कॉल की रिकॉर्डिंग है. उदय प्रकाश ने लिखा- प्रभात रंजन नामक हिंदी के लेखक ने ( कोई लेखक हो नहीं सकता, यदि वह मनुष्य नहीं है) मेरे लिए मां और बहन की गालियां दी हैं. वहीं गालियां, जिन्हें सह पाना किसी भी तरह से असंभव है.
उदय प्रकाश के इस पोस्ट के तुरंत बाद प्रभात रंजन ने भी अपने पोस्ट पर जवाबी हमला किया, जिसमें उन्होंने लिखा- उदय जी ने शशिभूषण की मृत्यु के बाद रात के सवा ग्यारह बजे मुझे फ़ोन करके यह कहा कि यह वही लेखक है जिसने ब्रजेश्वर मदान को किराया नहीं दिया था और उसकी मौत के पीछे था. जबकि सच यह है कि शशि कभी मदान साहब का किरायेदार नहीं रहा. जब मैंने उनको टोका तो बुरा भला कहने लगे. मेरी पत्नी ने बीच बचाव किया तो उसको भी अनाप शनाप कहा. मैंने भी उनसे दुःख की इस घड़ी में उनसे कुछ ऊंच नीच कहा. अब वे विक्टिम कार्ड खेलने लगे. ईश्वर शशि भाई की आत्मा को शांति दे और उदय जी को बड़े लेखक का बड़प्पन.
उदय प्रकाश और प्रभात रंजन ने इस पोस्ट के बाद भी कई पोस्ट किये, जिसमें विवाद की झलक साफ दिखती है. प्रभात रंजन ने अगले दिन सुबह लिखा-2004-2005 के दिनों में शशिभूषण द्विवेदी और ब्रजेश्वर मदान के साथ बहुत समय बीता. सब याद आ रहा है. मदान साहब शशि भाई के बारे में जो कहते थे कल अचानक याद आया- ऐसा भी कोई इंसान होता है जिसको किसी तरह की महत्वाकांक्षा न हो. इसको लेकर यही बात डरा जाती है.
उदय प्रकाश और प्रभात रंजन दोनों साहित्य जगत में नामचीन हैं, यही कारण है कि विवाद बढ़ गया और दोनों ही पक्ष के लोग अपनी-अपनी बात लिखने लगे. किसी ने उदय प्रकाश के पोस्ट को गैर जरूरी बताया तो किसी ने प्रभात रंजन को दंतमंजन तक कह दिया.
रंजना त्रिपाठी लिखती हैं-“Uday Prakash जी ने अपनी वॉल पर लिखा कि वे शशिभूषण को नहीं जानते और उनके ना जानने पर प्रभात रंजन ने उनके साथ फोन पर गलत बातें कहीं.” सच कहूं, मैं भी शशिभूषण को नहीं जानती. कई लोगों की वॉल पर देख रही हूं, लोग बड़ी बड़ी पोस्ट लिख रहे हैं शशिभूषण की याद में, कई पोस्ट तो काफी भावुक कर देने वाली हैं, लेकिन इन सबका ये मतलब नहीं कि आप किसी व्यक्ति विशेष को इतने गहरे से जानते हैं, तो उसे दूसरे लोग भी जानते हों? कोई नहीं जानता तो उसमें गाली-गलौज करने की क्या ज़रूरत है भाई? नहीं जानते, हम भी नहीं जानते और हमारे जैसे तमाम लोग नहीं जानते. ज़रूरी थोड़े ना है जिनसे आप जुड़े हुए हैं, उनसे बाकी लोग भी उसी तरह जुड़े हुए हों?
संजीव दुबे ने लिखा-आदरणीय उदय प्रकाश जी ने फेसबुक पर जो लिखा है वह निहायत गैर जरूरी है. दो लोगों के बीच फोन पर क्या बातचीत हुई उसे सार्वजनिक पटल पर लाना वह भी तब कि जिसके बारे में बात हुई हो वह उसी दिन असमय अलविदा कह गया हो. थोड़ा इंतजार भी कर सकते थे. प्रभात रंजन से उनका रंज कितना सघन और गहन था कि वे अपने कैमरे का मॉडल बताना तक नहीं भूले. गूगल जिसकी कीमत पौने दो लाख आंक रहा है उसकी कीमत एक कवि और कथा शिल्पी के हाथ में आकर कितनी बढ़ जाती है इसका अनुमान हिंदी जगत को होना ही चाहिए, यह कैसा दुर्योग है कि बुद्ध पूर्णिमा की शशि की तस्वीर सहेज रहा छायाकार, संवेदनशील कवि-कथाकार हिंदी की खास अपनी आकाशगंगा के एक ‘शशि’ के बुझ जाने से बेखबर है.