भारतीय मनीषी कुछेक शब्दों में ही गहरी बात कह देते थे. उन्होंने कहा है- बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुध लेय यानी बीती हुई बातों को पकड़ के बैठे रहने से कुछ हासिल होने वाला नहीं है, भविष्य का चिंतन करें, उसे खुशहाल बनाने की योजना बनाएं. कहने का आशय यह है कि नये साल का आगाज नयी उम्मीदों के साथ हो. हर साल अनेक उतार चढ़ाव और खट्टे-मीठे अनुभव देकर जाता है. हम पिछले साल की घटनाओं पर नजर डाल सकते हैं, ताकि पिछली गलतियों को न दोहराएं और नये साल में उनसे सबक लें. भविष्य की योजनाओं के निर्माण का भी यह वक्त है. यही वजह है कि पूरी दुनिया नये साल का जोशो-खरोश के साथ स्वागत करती है. जिंदगी में उतार चढ़ाव जीवन का अभिन्न अंग हैं. पिछले खट्टे मीठे अनुभव हमें सुंदर, सुखद और न्यायपूर्ण भविष्य का निर्माण करने में मदद कर सकते हैं. अपने और अपने परिवार के दायरे से आगे बढ़े और लोगों के जीवन में कुछ खुशियां, उम्मीद की किरण जगा पाएं, तो मुझे लगता है कि हम अपने मकसद में कामयाब हुए.
राजनीतिक दृष्टि से देखें, तो नया साल राष्ट्रीय चुनाव का साल है. आम चुनाव देश की राजनीतिक दिशा और दशा तय करते हैं. इनके माध्यम से हम सत्ता की कुंजी किसी दल और व्यक्ति को सौंपते हैं. भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन के नेता मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वापसी होगी या फिर इंडिया गठबंधन की मिली-जुली सरकार बनेगी, भविष्य के गर्भ में इन सवालों के जवाब हैं. प्रभात खबर के लिए भी यह महत्वपूर्ण वर्ष है. प्रभात खबर इस साल रांची में अपनी स्थापना के 40 वर्ष पूरे करने जा रहा है. यह एक बड़ी उपलब्धि है. प्रभात खबर ने 14 अगस्त, 1984 को रांची से अपने सफर की शुरुआत की थी और कुछ ही समय में राष्ट्रीय फलक पर अपनी जगह बना ली. आज प्रभात खबर आठ स्थानों- रांची, जमशेदपुर, धनबाद, देवघर, पटना, मुजफ्फरपुर, भागलपुर और कोलकाता से एक साथ प्रकाशित होता है. केवल तीन राज्यों से प्रकाशित होने के बावजूद देश के शीर्ष हिंदी अखबारों में प्रभात खबर का स्थान है. अखबार निकालना पहले भी चुनौतीपूर्ण था, लेकिन मौजूदा दौर में और चुनौतीपूर्ण हो गया है. इसके बावजूद प्रभात खबर पूरी मजबूती से आगे बढ़ रहा है.
अगला साल और यूं कहें कि अगला पूरा दशक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और इलेक्ट्रिक वाहन का है. ये दोनों डिसरप्टिव टेक्नोलॉजी हैं या यूं कहें कि जो मौजूदा व्यवस्था है, उसमें अप्रत्याशित बदलाव ला देंगी. यह शुरुआत भर है और कई क्षेत्रों में इसके दूरगामी प्रभाव नजर आने लगे हैं. तकनीक ने हम सबकी जिंदगी बदल दी है. हमें यह एहसास नहीं है कि टेक्नोलॉजी कितनी तेजी से हमें अपनी गिरफ्त में लेती जा रही है. इसका दुष्परिणाम यह है कि हम सब एक आभासी दुनिया में जीने लगे हैं. क्या युवा, क्या बुजुर्ग, तकनीक के एक छोटे से अविष्कार मोबाइल से हमारा सोना-जागना, पढ़ना-लिखना और खान-पान सब प्रभावित हो जाता है. हम सब बेगाने से होते जा रहे हैं. पूरी दुनिया इस चुनौती से जूझ रही है. कुछ वर्ष पूर्व मुझे लंदन में आयोजित बीबीसी के लीडरशिप समिट में हिस्सा लेने का मौका मिला था. इसमें एक चौंकाने वाला तथ्य बताया गया कि ब्रिटेन में हर व्यक्ति प्रतिदिन औसतन 2,617 बार अपना मोबाइल फोन छूता है. मुझे जानकारी नहीं है कि ऐसा कोई सर्वे भारत में हुआ है, लेकिन मेरा अनुमान है कि भारत में भी हम इस आंकड़े से कोई बहुत पीछे नहीं होंगे. हमें नयी परिस्थितियों से तालमेल बिठाने के विषय में सोचना होगा. पिछले साल अपार्टमेंट में तैनात सुरक्षा गार्डों और अन्य कामगारों के साथ दुर्व्यवहार की अनेक घटनाएं सामने आयीं. कई घटनाओं में तो गार्ड का कसूर सिर्फ इतना था कि उसने कार को सही स्थान पर पार्क करने को कह दिया था. दिल्ली में ही एक महिला पायलट और उसके पति ने एक 10 वर्षीय कामगार बच्ची को बेरहमी से पीटा. देश भर में ऐसी घटनाएं रोजाना घटित होती हैं. हमें घरेलू सहायकों के प्रति संवेदनशील रवैया अपनाना होगा. इनके बिना उच्च और मध्यम वर्ग के लोग जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं, जबकि उनका न्यूनतम वेतन, काम के घंटे, छुट्टियां, कुछ भी निर्धारित नहीं है. इनके प्रति हमें संवेदनशील होना होगा और संकल्प लेना होगा कि हम उनके प्रति आदर का भाव रखेंगे.
हमारी एक बड़ी चुनौती युवा मन को समझने की है. आज के बच्चे बदल चुके हैं. उनका आचार-व्यवहार बदल गया है. इसे स्वीकार करना होगा. युवाओं से संवाद में मैंने पाया है कि बच्चों में माता-पिता को लेकर अविश्वास का भाव है. अधिकतर बच्चे परिवार की मौजूदा व्यवस्था से संतुष्ट नहीं हैं. पीढ़ी के परिवर्तन पर आपका बस नहीं है. हमें नयी परिस्थितियों से सामंजस्य बिठाना होगा और सबसे जरूरी है कि बच्चों से संवाद बना रहना चाहिए. प्रदूषण इस देश के लिए गंभीर खतरा बनता जा रहा है. दिल्ली में प्रदूषण की स्थिति गंभीर तो है ही, लेकिन बिहार और झारखंड के कई शहरों में भी हालात कोई बहुत बेहतर नहीं हैं. देश के विभिन्न शहरों से प्रदूषण को लेकर पिछले कई वर्षों से लगातार चिंताजनक रिपोर्ट आ रही हैं, लेकिन स्थिति जस की तस है. हम इस ओर आंख मूंदे हैं. कोई चिंता नहीं जतायी जा रही है. हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने की स्थिति किसी भी देश के लिए बेहद चिंताजनक हैं. अगर समाज ठान ले, तो परिस्थितियों में सुधार लाया जा सकता है.
और अंत में एक अहम बात. तकनीक के इस दौर में सोशल मीडिया ताकतवर माध्यम बन कर उभरा है, लेकिन यह बात भी एकदम साफ है कि सोशल मीडिया बेलगाम है. हम सबके पास सोशल मीडिया के माध्यम से रोजाना अनगिनत खबरें और वीडियो आते हैं. इनमें से अधिकांश फेक होते हैं. आम आदमी के लिए यह अंतर कर पाना बेहद कठिन होता है कि कौन-सी खबर सच है और कौन-सी फेक. फेक न्यूज के इस दौर में अखबार खबरों के सबसे विश्वसनीय स्रोत के रूप में उभरकर सामने आये हैं. और, चलते चलते हरिवंश राय बच्चन की कविता की कुछ पंक्तियां- साथी, नया वर्ष आया है!/ वर्ष पुराना, ले, अब जाता,/ कुछ प्रसन्न सा, कुछ पछताता,/ दे जी भर आशीष,/ बहुत ही इससे तूने दुख पाया है!/ साथी, नया वर्ष आया है!/ उठ इसका स्वागत करने को,/ स्नेह बाहुओं में भरने को,/ नये साल के लिए, देख, यह नयी वेदनाएं लाया है!/ साथी नया वर्ष आया है.