फ़िल्म – फुकरे 3
निर्माता – रितेश सिधवानी और फरहान अख्तर
निर्देशक – मृगदीप सिंह लाम्बा
कलाकार – वरुण शर्मा, पंकज त्रिपाठी, पुलकित सम्राट, मंजोत सिंह, ऋचा चड्ढा, मनु ऋषि चड्ढा और अन्य
प्लेटफार्म – सिनेमाघर
रेटिंग -ढाई
बॉलीवुड की लोकप्रिय फ्रेंचाइजी फ़िल्म फुकरे 3 एक बार वापस लौट आयी है. फुकरे यानी गुड फॉर नथिंग लोग लेकिन सपने बड़े – बड़े, जिसे पूरा करने के लिए यह गैंग हमेशा शार्टकट का रास्ता अपनाता है. इस बार इस फ़िल्म के किरदारों ने नहीं बल्कि मेकर्स ने उस शार्टकट के रास्ते को अपना लिया है. इस फ्रेंचाइजी की यूएसपी इसकी कॉमेडी रही है, इस बार वही फ़िल्म में कम हो गयी है. लेखन कमज़ोर रह गया है. हालांकि मामला बोझिल नहीं हुआ है, लेकिन फ़िल्म को औसत ज़रूर बना गया है.
कॉमेडी के साथ है मैसेज का डोज
फुकरे 3 की कहानी वही से शुरू होती है, जहां दूसरे पार्ट की खत्म हुई है. फुकरे गैंग दिल्ली के सीएम द्वारा मिले जनता स्टोर को संभाल रहे हैं, लेकिन जनता स्टोर का हाल आम जनता की तरह बेहाल है. किसी तरह वह चुचे (वरुण शर्मा ) के देजा चू की मदद से फुकरे गैंग की ज़िन्दगी गुज़र बसर हो रही है. उधर भोली पंजाबन (रिचा चड्ढा ) चुनाव लड़ने की तैयारी में है, ताकि वह बड़ा हाथ मार सके. इसमें उसका साथी पानी की काला बाजारी कर रहा ढींगरा भी हैं, जो सत्ता के पावर से अपनी मनमानी को और बढ़ाना चाहता है. फुकरे गैंग को बात मालूम पड़ जाती है और वह आम जनता की मदद के लिए चूचा ( वरुण शर्मा ) को भोली के खिलाफ इलेक्शन में खड़ा करता है. इसी ड्रामे के बीच चूचा और हनी को एक और अजीबोगरीब सुपर पावर भी मिल जाती है. इसके साथ ही इस बार कहानी सिर्फ दिल्ली नहीं बल्कि साउथ अफ्रीका के केप टाउन तक जा पहुंची है. अब सब कहानी में क्या ट्विस्ट और टर्न जोड़ता है. यही आगे की कहानी है.
कहानी की खूबियां और खामियां
फुकरे की कहानी दोस्ती और अजीबोगरीब सुपर पावर की है. इस बार भी कहानी का आधार वही है. निर्देशक मृगदीप ने अपने लेखन टीम के साथ मिलकर कॉमेडी पंचेज के साथ इस स्लैपस्टिक कॉमेडी फ़िल्म में परोसा है. फ़िल्म के ओपनिंग ट्रैक के साथ पिछले दोनों सीक्वल्स की कहानी को बयान कर दिया गया है. यह अच्छा पहलू है. इससे पिछली दोनों कहानी ना सिर्फ आपको फिर से याद हो जाती है, बल्कि फ़िल्म से तुरंत ही आपको जोड़ देती है.फ़िल्म का लेखन इस तरह से किया गया है कि यह फ़िल्म शुरू से आखिर तक आपको बांधे रखती है. खामियों की बात करें तो पिछले दोनों सीक्वल में फ़िल्म में मज़ेदार सीक्वेन्स बने थे. इस बार इसकी कमी खलती है. कॉमेडी पंचेस की भी कमी खलती है.
इस बार के जोक्स टॉयलेट एक प्रेम कथा को ज़्यादा समर्पित हो गए हैं. फ़िल्म के कई जोक सुसु, पॉटी के इर्द – गिर्द लिखे गए हैं. जो अजीब लगता है. भोली पंजाबन का किरदार जिस तरह से बेबाक और बिंदास रहा है. वह मर्दों की दुनिया में अपनी शर्तों पर जीती नज़र आयी है. इस बार वह किरदार थोड़ा कमज़ोर रह गया है खासकर ढींगरा के सामने जिस कदर वह कई जगहों पर बेबस नज़र आयी है. वह बात अखरती है. फ़िल्म में पानी की समस्या से जुड़ा मैसेज भी है,लेकिन वह कहानी में वह प्रभाव नहीं ला पाया है. जिसकी ज़रूरत थी. इस बार गीत – संगीत के मामले में भी बात औसत वाली रह गयी है. गीत – संगीत कहानी के साथ न्याय तो करता है, लेकिन अम्बर सरिया वाली बात नहीं बनी है. फ़िल्म के बीच – बीच में अम्बर सरिया वाली मेलोडियस धुन बजती रहती है, जो सुकून देती है।बैकग्राउंड म्यूजिक ज़रूर कहानी के साथ न्याय करता है.
वरुण शर्मा और पंकज त्रिपाठी की यादगार परफॉरमेंस
अभिनय की बात करें तो फुकरे के ज़्यादातर कलाकार पहले पार्ट से ही हैं. ऐसे में वह पूरी तरह से अपने किरदार में रचे – बसे दिखते हैं, लेकिन बाजी वरुण शर्मा और पंकज त्रिपाठी मार ले गए हैं, जिस तरह से उनदोनों डायलॉग डिलीवरी की है. पंचेस कई बार साधारण होने के बावजूद आपको हंसी आ जाती है. फ़ूड डिलीवरी एप्प का पेड प्रमोशन वाला सीन भी पंकज त्रिपाठी ने अपने अंदाज में जिस तरह से बताया है. वह सिर्फ वही कर सकते थे. फ़िल्म में इस बार मनु ऋषि और कुछ नये चेहरे भी हैं. उन्होंने भी अपनी सीमित भूमिका में अच्छा काम किया है.