फ़िल्म – ग़दर 2
निर्माता – जी सिनेमा
निर्देशक – अनिल शर्मा
कलाकार – सनी देओल, अमीषा पटेल, उत्कर्ष शर्मा, सिमरत कौर, मनीष वाधवा और अन्य
प्लेटफार्म – सिनेमाघर
रेटिंग – दो
हिंदी सिनेमा की यादगार फिल्मों में शुमार गदर का सीक्वल 22 साल बाद सिनेमाघरों में दस्तक दे चुका है, लेकिन यह फ़िल्म आइकॉनिक फ़िल्म की लीगेसी के साथ न्याय नहीं कर पायी है. कमजोर कहानी और स्क्रीनप्ले के साथ 90 के दशक वाला फ़िल्म का ट्रीटमेंट फ़िल्म को एक कमजोर अनुभव दे पाया है.
फ़िल्म की कहानी वही से शुरू होती है, जहां पर 22 साल पहले गदर खत्म हुई थी. नाना पाटेकर ने फ़िल्म गदर 2 की आवाज बने हैं, वह नरेशन में बताते हैं कि असरफ अली (अमरीश पुरी )ने अपनी ख़ुशी के साथ सकीना (अमीषा पटेल) को तारा सिंह (सनी देओल) के साथ भारत भेज दिया है. पाकिस्तान नें असरफ अली को तारा सिंह की मदद के लिए फांसी दी जा चुकी है और कहानी 22 साल आगे बढ़ गयी है. 70 के दशक में कहानी तारा सिंह अपनी पत्नी सकीना और बेटे (उत्कर्ष शर्मा) के साथ खुशहाल जिंदगी जी रहा है. वह भारतीय सैनिकों तक हथियार पहुंचाता है. एक दिन भारतीय सैनिकों पर हमला होता है और तारा सिंह भारतीय सैनिकों की मदद करने पहुंचता है, लेकिन उसके बाद से तारा सिंह का कुछ पता नहीं चल रहा है.जीते ( उत्कर्ष शर्मा ) अपने पिता को पाकिस्तान जाकर तलाशने का फैसला करता है,जीते को पाकिस्तानी सेना पकड़ लेती है, उसके बाद कैसे तारा सिंह एक बार फिर पाकिस्तान पहुंचता है और अपने बेटे को वापस लेकर आता है. यही आगे की कहानी है.
गदर हिंदी सिनेमा की पॉपुलर फिल्मों में से रही है. गदर के सीक्वल के लिए सबसे अहम जरूरत कहानी की थी, जो इस फ़िल्म में नहीं दिखती है. पहली वाली गदर के लीग पर ही यह फ़िल्म चलती है.परिवार, देशप्रेम, हिन्दू मुस्लिम भाईचारा, पाकिस्तान विरोधी नारे सबकुछ वही है. फ़िल्म का फर्स्ट हाफ बहुत स्लो है. सेकेंड हाफ में कहानी थोड़ी रफ़्तार पकड़ती है.फ़िल्म की एडिटिंग पर थोड़ा और काम करने की जरूरत थी. फ़िल्म के एक्शन में कुछ नयापन नहीं है. हां हैंडपम्प और हथोड़ा वाला सीन सनी देओल के फैन्स के लिए ट्रीट की तरह है. कहानी की नहीं बल्कि तकनीकी तौर पर भी यह फ़िल्म कमज़ोर रह गयी है. फ़िल्म का वीएफएक्स कमज़ोर रह गया है. फ़िल्म का संगीत जरूर सुकून दे गया है खैरियत गाना अच्छा बन पड़ा है.
अभिनय की बात करें तो सनी देओल ने साबित कर दिया कि दो दशकों के बाद भी उनमें तारा सिंह को उसी ऊर्जा, शैली और दृढ़ विश्वास के साथ पेश करने की क्षमता है.परदे पर उन्हें एक बार फिर से तारा सिंह के किरदार में देखना फ़िल्म का एकमात्र अच्छा पहलू है, लेकिन फ़िल्म की कमज़ोर स्क्रिप्ट उसके साथ न्याय नहीं कर पायी है. उत्कर्ष और अमीषा पटेल कमज़ोर रह गयी है. मनीष वाधवा की कोशिश अच्छी रही है, तो सिमरत कौर नें पहली फ़िल्म के लिहाज से ठीक काम किया है. बाकी का किरदारों का अनुभव कहानी के अनुरूप है.