बढ़ती मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों द्वारा ब्याज दरों में लगातार वृद्धि को देखते हुए ऐसा लगा था कि 2023 वैश्विक मंदी का साल होगा. पहले महामारी और फिर रूस-यूक्रेन युद्ध एवं पश्चिम एशिया में संघर्ष के कारण आपूर्ति शृंखला में आते अवरोध से भी अर्थव्यवस्था के कमजोर होने की आशंका बनी रही, लेकिन साल के अंत तक ऐसी आशंकाएं गलत साबित हुईं. इस वर्ष सकल वैश्विक उत्पादन में लगभग तीन प्रतिशत वृद्धि होने की संभावना है. दुनिया भर में रोजगार बाजार लगातार बढ़ोतरी हुई, हालांकि इसकी दर बहुत अधिक नहीं रही. आम तौर पर मुद्रास्फीति भी घटती गयी है और विश्वभर के शेयर बाजारों में 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. कहा जा सकता है कि वैश्विक मंदी की आशंकाएं बढ़ा-चढ़ा कर बतायी जा रही थीं और सबसे बुरा दौर बीत चुका है, लेकिन वैश्विक अर्थव्यवस्था पर चर्चा करते हुए यह भी रेखांकित किया जाना चाहिए कि जहां कुछ देशों की अर्थव्यवस्था की स्थिति अच्छी रही, वहीं कुछ देशों का प्रदर्शन वैसा नहीं रहा.
मूल्य प्रबंधन, सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) में वृद्धि, रोजगार बढ़ाने और शेयरों के दाम के मामलों में यूनान ने लगातार दूसरे साल भी बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है. यह प्रदर्शन इसलिए उल्लेखनीय है कि कुछ साल पहले तक यूनानी अर्थव्यवस्था को लेकर तमाम चिंताएं जतायी जा रही थीं. इसी तरह दक्षिण कोरिया और अमेरिका की अर्थव्यवस्थाओं का प्रदर्शन भी उत्साहजनक रहा. दिलचस्प है कि कुछ अन्य अच्छे प्रदर्शन उत्तर और दक्षिण अमेरिका के देशों में देखने को मिले. कनाडा और चिली शीर्ष के तीन देशों से बहुत पीछे नहीं हैं. सबसे निराशाजनक स्थिति उत्तरी यूरोप के देशों में रही, जिनमें ब्रिटेन, जर्मनी, स्वीडन और फिनलैंड शामिल हैं. रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण ऊर्जा स्रोतों के दाम में बड़ी वृद्धि तथा चीन से आयातित कारों से प्रतिस्पर्धा जैसे कारणों से जर्मनी की स्थिति खराब है. ब्रिटेन अभी भी यूरोपीय संघ से अलग होने के परिणामों से जूझ रहा है. माना जा रहा था कि यूरो जोन से निकलना ब्रिटेन के लिए लाभप्रद नहीं होगा और ऐसा ही होता हुआ दिख रहा है. कुछ अन्य यूरोपीय देश भी यूक्रेन युद्ध से महंगे हुए तेल और गैस के कारण मुश्किलों का सामना कर रहे हैं. एस्टोनिया ऐसा ही एक देश है. रूसी ऊर्जा आपूर्ति पर बहुत अधिक निर्भर फिनलैंड की अर्थव्यवस्था भी संकटग्रस्त है. ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, जर्मनी और स्पेन जैसे देशों में अब भी मुद्रास्फीति उच्च स्तर पर है. हालांकि बहुत अच्छा प्रदर्शन करने वाले देशों में आर्थिक वृद्धि अच्छी रही, पर दुनिया भर में उत्पादकता बढ़ोतरी कमजोर रहने से वैश्विक अर्थव्यवस्था उस गति से नहीं बढ़ पा रही है, जैसी उसकी क्षमता है. कुछ देशों में रोजगार जरूर बढ़े, पर आंकड़े शून्य से कुछ ही ऊपर हैं. इस कारण साल के शुरू में श्रम बाजार जैसे ठिठका हुआ था, वही हाल साल के अंत में भी है.
चीन की अर्थव्यवस्था में कमी आने से भी वैश्विक वृद्धि प्रभावित हुई है. मुद्रास्फीति को सफलतापूर्वक नियंत्रित करने के बाद भी चीन में जीडीपी की दर कमतर है और रोजगार वृद्धि में भी गिरावट आयी है. इसी बीच वर्तमान वित्त वर्ष की पहली छमाही (अप्रैल से सितंबर) में भारतीय अर्थव्यवस्था ने औसतन 7.7 प्रतिशत की वृद्धि कर कई लोगों को अचरज में डाल दिया है. लागत खर्च में कमी तथा कॉर्पोरेट मुनाफे में बढ़ोतरी के साथ ऐसी वृद्धि अगले कुछ तिमाहियों तक बनी रहेगी, लेकिन मुद्रास्फीति अभी भी चिंता का विषय है. हालांकि हालिया आंकड़े सुधार को इंगित कर रहे हैं, पर रिजर्व बैंक का मानना है कि मुद्रास्फीति को लेकर सतर्क रहने की आवश्यकता है. भारतीय शेयर बाजारों में बड़ी तेजी निकट भविष्य में ब्याज दरों में कटौती का एक कारण हो सकती है, लेकिन रिजर्व बैंक को दामों पर, खास कर खाद्य और ऊर्जा में, नजर रखनी होगी. मुद्रास्फीति लक्ष्य के दायरे से कुछ अधिक बनी रह सकती है. केंद्र सरकार ने चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में बजट में अनुमानित राजस्व के आधे से अधिक हिस्से को हासिल कर लिया है तथा खर्च को भी आधे से कम के स्तर पर रखा गया है. इससे 5.9 फीसदी के कुल वित्तीय घाटे के लक्ष्य को पूरा करने में मदद मिलेगी. साथ ही, सरकार अपने पूंजी व्यय में भी बढ़ोतरी कर सकेगी.
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारत के बढ़ते कर्ज को लेकर चिंता जतायी है, पर 15 दिसंबर को समाप्त होने वाले सप्ताह में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 9.11 अरब डॉलर बढ़कर 615.97 अरब डॉलर के स्तर पर पहुंच गया. स्वर्ण भंडार में भी 446 मिलियन डॉलर की वृद्धि हुई और और वह 47.58 अरब डॉलर हो गया है. विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) में भी बढ़ोतरी हुई है. इन वृद्धियों से 2024 में अर्थव्यवस्था के विदेशी खाते के प्रबंधन में सहायता मिलेगी. भारत की वृद्धि अगले साल बरकरार रहने के आसार हैं, पर इसके फायदों को आबादी के हर हिस्से तक पहुंचना चाहिए. आपूर्ति शृंखला में कोई बाधा भारत समेत सभी देशों को प्रभावित कर सकती है. भारत की वृद्धि मुख्य रूप से उपभोग मांग और केंद्र एवं राज्य सरकारों के पूंजी व्यय के कारण है. इसलिए, सतर्क और सचेत रहने की आवश्यकता है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)