दुनिया भर में आज फ्रेंडशिप डे मनाया जा रहा है. हिंदी सिनेमा में दोस्ती पर यादगार फिल्में देने वाले कई कलाकारों ने निजी जिंदगी में भी दोस्ती की मिसाल कायम की है. आनेवाले कई दशकों तक उनकी दोस्ती जेहन में रची-बसी रहेगी. बॉलीवुड में ऐसी ही खास दोस्ती की पड़ताल करता उर्मिला कोरी का यह विशेष आलेख.
सतीश कौशिक और अनुपम खेर का कभी ना टूटने वाला याराना
इंडस्ट्री में खास दोस्तों की चुनिंदा फेहरिस्त में अनुपम खेर और सतीश कौशिक का नाम भी शुमार है. अनुपम खेर और सतीश कौशिक की दोस्ती 45 साल पुरानी रही है. वे नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में एक-दूसरे के साथ थे. उसके बाद इंडस्ट्री में संघर्ष का लंबा सफर और सफलता का दौर भी साथ में देखा. इस साल सतीश कौशिक की अचानक हुई मौत अनुपम खेर के लिए किसी बड़े सदमे की तरह थी, जिससे अब तक वे उबरे नहीं हैं. उन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर साझा किया था कि 45 साल की दोस्ती एक आदत बन जाती है. एक ऐसी आदत, जिसे आप छोड़ने को तैयार नहीं होते. मैं आज सतीश को फोन करके पूछने वाला था कि मुझे क्या खाना चाहिए, क्योंकि मैं उससे छोटी-सी छोटी बात में राय लेता था. हम एक-दूसरे से ईर्ष्या करते थे और एक-दूसरे से लड़ते भी थे, लेकिन हम हर दिन सुबह 8:30 बजे एक-दूसरे को फोन करते थे, बिना चूके. जिंदगी तो आगे बढ़ानी पड़ती है… मैं जिंदगी को आगे बढ़ा रहा हूं मेरे दोस्त… तुम हमेशा मेरे जीवन का एक अहम हिस्सा बने रहोगे… गौरतलब है कि एक सच्चे दोस्त की तरह अनुपम खेर, सतीश कौशिक के परिवार और उनकी 10 साल की बेटी वंशिका के लिए मजबूत सहारा बने हुए हैं. वे अक्सर उनकी बेटी वंशिका संग वक्त बिताते नजर आते हैं. सिर्फ यही नहीं, सोशल मीडिया में अनुपम खेर ने यह बात भी साझा की थी कि अगर वंशिका बड़ी होकर अभिनेत्री बनना चाहेंगी, तो वह ना सिर्फ उन्हें एक्टिंग की ट्रेनिंग देंगे, बल्कि फिल्मों में वह उन्हें लॉन्च भी करेंगे. वंशिका उनके लिए बेटी से बढ़कर है.
इंडस्ट्री में जितेंद्र, राकेश रोशन व ऋषि कपूर की जबरदस्त तिगड़ी रही है. हालांकि, ऋषि और सुजीत कुमार इस दुनिया को अलविदा कह चुके हैं, पर जितेंद्र और राकेश रोशन के लिए उनके ऋषि कपूर हमेशा उनके दिल में रहेंगे. राकेश रोशन अपनी बीच इस गाढ़ी दोस्ती की शुरुआत का श्रेय अपनी पत्नियों को देते हैं. वे बताते हैं कि सबसे पहले फिल्मी पार्टियों में जितेंद्र की पत्नी शोभा कपूर और मेरी पत्नी पिंकी की गहरी दोस्ती हुई. इसने जितेंद्र और मेरे बीच भी बॉन्डिंग कर दी. ‘रफूचक्कर’ के सेट पर पिंकी और नीतू की दोस्ती हो गयी और ऋषि और मेरी यारी. फिर हम तीनों एक. हमारी दोस्ती के चार दशक हो चुके हैं. ऋषि और मैं खाने-पीने के शौकीन रहे हैं, पर जितेंद्र बहुत ही हेल्थी लाइफस्टाइल फॉलो करता रहा है. हम बच्चों की तरह एक-दूसरे से लड़ते भी हैं. हमने दोस्ती में एक-दूसरे का फायदा नहीं उठाया कि मेरी फिल्म कम पैसे में कर या मुझे काम दो. हम हमेशा सपोर्ट सिस्टम बनकर रहे. फिल्म ‘खुदगर्ज’ के वक्त ऐसा ही सपोर्ट मेरे दोस्तों से मिला था. वो फिल्म नहीं चलती, तो मैं खत्म था. मुझे अभी भी याद है. उस फिल्म का ट्रायल शो था. जितेंद्र उस फिल्म का हिस्सा था. मुझे ऋषि की राय जाननी थी. इसलिए मैंने फिल्म की रिलीज से पहले एक स्पेशल स्क्रीनिंग रखी थी. उसके बाद हम सुजीत कुमार के घर पर जाने वाले थे. ऋषि ने फिल्म देखी और सिर्फ अच्छी कहकर चला गया. मुझे लगा कि उसे अच्छी नहीं लगी. अचानक ऋषि कुछ देर बाद आया और कहा कि मैंने अच्छी फिल्म बनायी है. मैंने कहा कि पहले क्यों नहीं बोला. उसने बोला कि मैं चकित था, इसलिए ज्यादा कुछ नहीं बोल पाया. कार में लगा कि मुझे ये बात बतानी चाहिए कि तूने एक स्टैंडर्ड फिल्म बनायी है. उसकी बात सही निकली फिल्म बहुत बड़ी कामयाब निकली.
रजनीकांत को साल 2021 में भारत सरकार ने दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया. सम्मान पाने के बाद रजनीकांत ने कहा था कि मैं यह अवॉर्ड अपने गुरु के बालाचंदर सर को समर्पित करता हूं. साथ ही मेरे दोस्त और सहकर्मी राज बहादुर को भी मेरा धन्यवाद. जब मैं बस कंडक्टर था, तो उन्होंने ही मेरे अंदर के अभिनेता को पहचाना और मुझे सिनेमा से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित किया. उनके इस धन्यवाद भाषण को सुनकर सभी का ध्यान राज बहादुर की तरफ गया और मालूम हुआ कि राज बहादुर, रजनीकांत के संघर्ष के दिनों से दोस्त हैं. 70 के दशक में राज बहादुर ने ही रजनीकांत को अभिनय को सीरियस लेने को कहा और मद्रास फिल्म इंस्टीट्यूट में दाखिला लेने के लिए प्रोत्साहित किया था. यही नहीं, रजनीकांत की तमिल भाषा पर अच्छी पकड़ बनाने का श्रेय भी राज बहादुर को ही जाता है. जब रजनीकांत मद्रास इंस्टीट्यूट में थे, तब राज हर महीने अपनी चार सौ रुपये की सैलरी में से दो सौ रुपये रजनी को भेजते थे, ताकि उन्हें पैसों की दिक्कत ना हो. यह सिलसिला तीन सालों तक चला. रजनीकांत ने अपने कई साक्षात्कार में इस बात का जिक्र िकया है. मालूम हो कि रजनीकांत कुछ महीनों के अंतराल पर भेष बदलकर अपने इस दोस्त से मिलने अक्सर जाते रहते हैं. राज बहादुर के घर पर रजनीकांत के लिए एक अलग कमरा है, क्योंकि वह बिना किसी को बताये अचानक आ जाते हैं.
अभिनेत्रियों में दोस्ती सिर्फ आज के दौर में ही नहीं, बल्कि गुजरे जमाने में भी होती रही है. 60 के दशक की मशहूर अभिनेत्री वहीदा रहमान, हेलन और आशा पारेख अक्सर एक-दूसरे के साथ वेकेशन पर जाती रहती हैं. इन तीनों अभिनेत्रियों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर अक्सर सुर्खियां बटोरती रहती हैं. वहीदा रहमान दोस्ती जैसे खास रिश्ते पर बात करते हुए कहती हैं कि दोस्ती में एक-दूसरे के लिए समझ और विश्वास बहुत जरूरी है. दोस्ती में किसी को भी दूसरे व्यक्ति के लिए बदलने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, बल्कि उन्हें वैसे ही स्वीकार करना चाहिए जैसे वे हैं. यही बातें हमारी दोस्ती को खास बनाती हैं. आशा पारेख तो मौजूदा दौर में अपनी खुशियों की कुंजी अपनी दोस्ती को ही देती हैं. वे कहती हैं कि आप अपनी मां या भाई-बहनों से कभी भी सब कुछ शेयर नहीं कर सकते हैं, लेकिन दोस्त से आप कुछ भी साझा कर सकते हैं. वे आपको कभी जज नहीं करेंगे. गौरतलब है कि कभी शादी नहीं करने का फैसला लेने वाली ये अभिनेत्री अपने दोस्तों को अपना सपोर्ट सिस्टम करार देते हुए कहती हैं कि अपने दोस्तों की वजह से ही मैं अपनी मानसिक स्थिति को मजबूत बनाये रखने और डिप्रेशन से लड़ने में कामयाब रही हूं. इसलिए हर किसी की जिंदगी में एक खास दोस्त होना बहुत जरूरी है.