देश के कई हिस्सों से भूजल में घातक रसायनों के होने की खबरें बरसों से आती रहती हैं और इनसे कई तरह की गंभीर बीमारियां भी होती हैं. पर इस समस्या के समाधान के लिए ठोस प्रयास नहीं हो रहे हैं. हाल में छपी एक खबर में बताया गया था कि देश के 25 राज्यों के 230 जिलों के भूजल में आर्सेनिक पाया गया, जबकि 27 राज्यों के 469 जिलों में फ्लोराइड मिला. इसके आधार पर राष्ट्रीय हरित ट्रिब्यूनल ने 24 राज्यों एवं चार केंद्रशासित प्रदेशों को नोटिस जारी किया है. ट्रिब्यूनल ने रेखांकित किया है कि इन धातुओं या रसायनों की मात्रा मिलना एक बेहद गंभीर मामला है और इनसे बचाव के उपाय तुरंत किये जाने चाहिए. ऐसी समस्याओं के अध्ययन और समाधान में कुछ अजीब पेंच हैं. उदाहरण के लिए, भूजल का नियमन करना केंद्रीय भूजल प्राधिकरण की जिम्मेदारी है, पर ट्रिब्यूनल ने पाया कि इस अथॉरिटी ने इस आधार पर कोई स्वतंत्र पहल नहीं की क्योंकि जल राज्य का विषय है. पर प्राधिकरण के इस तर्क को 1997 में सर्वोच्च न्यायालय और 2022 में हरित ट्रिब्यूनल द्वारा खारिज किया जा चुका है. अपनी जिम्मेदारी और जवाबदेही से बचने की कोशिश पर ट्रिब्यूनल ने भूजल प्राधिकरण को फटकार भी लगायी है.
इस मामले में राज्यों के साथ-साथ भूजल प्राधिकरण और केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को भी पक्ष बनाया गया है. जिन राज्यों को नोटिस दिया गया है, उनमें बिहार, झारखंड और बंगाल भी शामिल हैं. अगली सुनवाई 15 फरवरी को होगी. उल्लेखनीय है कि वायु प्रदूषण के मामले में भी कई राज्यों का रवैया निराशाजनक रहा है. बहुत से राज्य अपने यहां प्रदूषण की स्थिति और समाधान के प्रयास के बारे में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को नियमित जानकारी नहीं भेजते. अनेक बार तो अदालती आदेशों की भी परवाह नहीं की जाती. हालांकि केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा नल से जल पहुंचाने तथा संक्रामक रोगों से बचाव के लिए ठोस उपाय हो रहे हैं, पर देश के बड़े हिस्से में भूजल का बहुत ज्यादा इस्तेमाल होता है. लोग कई बार जानकारी के अभाव में या मजबूरी में घातक रसायनों वाले पानी को उपयोग में लाते हैं. इसलिए जागरूकता बढ़ाना भी आवश्यक है. भूजल प्रकृति द्वारा दी गयी अमूल्य निधि है. उसका संरक्षण भी हमारी प्राथमिकताओं में होना चाहिए.
देश के अनेक हिस्सों में भूजल का इतना दोहन हुआ है कि जल स्तर बहुत नीचे चला गया है. वर्षा जल ठीक से जमा नहीं होने और लगातार दोहन से रिचार्ज प्रक्रिया पर असर पड़ता है. आशा है कि केंद्र और राज्य सरकारें अपनी जल, पर्यावरण और स्वास्थ्य नीति में भूजल प्रबंधन को समुचित स्थान देंगी. लोग कई बार जानकारी के अभाव में या मजबूरी में घातक रसायनों वाले पानी को उपयोग में लाते हैं, इसलिए जागरूकता बढ़ाना भी आवश्यक है.