क्रिसमस ट्री का नाम तो सबने सुना है और क्रिसमस डे के दिन इसे सबने देखा भी है, लेकिन वाराणसी के काशी हिंदू विश्वविद्यालय में रिपब्लिक डे ट्री के बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं. ये ट्री 16 जनवरी 1950 के वक्त का ही है. इसे बिड़ला छात्रावास के कैंपस में यहां के प्रोफेसर और छात्रों ने यादगार के तौर में अभी तक रखा है. इस ट्री के पास ही साल 1950 में भी उस समय के वार्डन और छात्रों ने गणतंत्र दिवस मनाया था. वहीं आज भी यहां मौजूद लोगों ने 73 वां गणतंत्र दिवस मनाया.
आज भी यहां के प्रोफेसर और छात्र इस ट्री की देखरेख में कोई कसर नहीं छोडते है. इस ट्री को जब लगाया गया था, तब बिड़ला छात्रवास बंटा नहीं था. आज बिड़ला विभाजित हो चुका है. यहां एक स्मृति पटल भी स्थापित किया गया है. जिसपर इसे लगाए जाने का समय अंकित है. गणतंत्र दिवस की कहानी बयां करता यह ट्री 73 वर्ष की स्मृतियों को संजोए हुए है.
सीता-अशोक का यह वृक्ष काशी हिंदू विश्वविद्यालय के छात्रों और प्रोफेसर की ओर से 16 जनवरी, 1950 के वक्त कैंपस स्थित बिड़ला हॉस्टल में रोपा गया था. तब से इस पेड़ को सरंक्षित और देखरेख करने की जिम्मेदारी यहां के छात्र निभा रहे हैं. बिड़ला होस्टल भले ही अब ए, बी और सी में विभजित हो गया हो, लेकिन इसकी खूबसूरती में कोई कमी यहां के छात्रों ने नहीं आने दी. आज यह पेड़ बिड़ला ए हॉस्टल में है. लेकिन पूरे हॉस्टल के छात्र दिन-रात देखभाल में रहते हैं.
इस ट्री के पास एक स्मृति पटल है. यही प्रत्येक वर्ष छात्रों और वार्डन की ओर से रिपब्लिक डे मनाया जाता है. इसे लगाने वाले लोगों को भी यह अनुमान नहीं था कि यह ट्री आजतक युही खड़ा रहेगा. BHU के पूर्व विशेष कार्याधिकारी डॉ. विश्वनाथ पांडेय बताते हैं कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय भारत के स्वतंत्रता संघर्ष में पूर्वांचल का केंद्र रहा. इस लिहाज से यहां पर क्रांतिकारी प्रोफेसर और छात्रों ने 16 जनवरी, 1950 को सीता-अशोक का यह पेड़ लगाया. इसी पेड़ के नीचे एक स्तंभ भी लगाया गया. जिस पर इस पेड़ की तारीख लिखवाई गयी थी. BHU कैंपस में यह ट्री आज भी ऐसी हैं, जिन्हें मालवीय जी के समय ही सींचा गया होगा.
रिपोर्ट- विपिन सिंह, वाराणसी