19.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

रंगों से नहीं, यहां चप्पलों से खेली जाती है होली, भगवान कृष्ण के समय से चली आ रही परंपरा

Mathura News: मथुरा के बछगांव में धुलेंडी के दिन बड़े बुजुर्ग एक-दूसरे के साथ गुलाल की होली खेलते हैं. वहीं, छोटे बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद लेते हैं. गांव में करीब 11 बजे से हम उम्र लोग आपस में एक दूसरे को चप्पल मार कर होली खेलना शुरू कर देते हैं. यह परंपरा सैकड़ों साल से चली आ रही है.

Mathura Holi 2022, Mathura News: ब्रजमंडल के आसपास स्थित तमाम गांव में अलग-अलग तरीके से होली मनाने की प्रथा है. कहीं टेसू के रंगों से होली मनाई जाती है, तो कहीं लट्ठमार होली, कहीं पर लड्डुओं की होली होती है तो कहीं पर दहकते अंगारों पर होली मनाई जाती है. आज हम एक ऐसे गांव की बात करेंगे, जहां पर रंगों से नहीं, बल्कि चप्पलों से होली मनाई जाती है. जी हां आप सुनकर चौंक गए होंगे, लेकिन ब्रजमंडल क्षेत्र में एक ऐसा गांव भी है जहां पर चप्पल मार होली होती है. आइए जानते हैं… क्या है इस गांव की परंपरा और क्यों होती है इस तरह की होली…

धुलेंडी के दिन होती है चप्पल मार होली

मथुरा के सौंख क्षेत्र के बछगांव में धुलेंडी के दिन बड़े बुजुर्ग एक दूसरे के साथ गुलाल की होली खेलते हैं. वहीं, छोटे बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद लेते हैं. गांव में करीब 11 बजे से हम उम्र लोग आपस में एक दूसरे को चप्पल मार कर होली खेलना शुरू कर देते हैं. इस गांव में चप्पल मार होली की परंपरा सैकड़ों साल से चली आ रही है. वहीं आपको यह भी बता दें कि 20 हजार आबादी वाले इस गांव में अभी तक चप्पल मार होली की वजह से कोई भी विवाद नहीं हुआ है.

Also Read: Holi 2022: फालैन गांव में आग के शोलों पर मनाई जाती है होली, मेहमानों को अपने घर में ठहराते हैं ग्रामीण
भगवान कृष्ण के समय से चली आ रही परंपरा

गांव में चप्पल मार होली खेलने की परंपरा की अगर बात की जाए तो बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि चप्पल मार होली की परंपरा बलदाऊ और कृष्ण की होली से शुरू हुई थी. बताया गया कि होली पर कृष्ण को बलदाऊ ने प्यार से अपनी पहनी हुई चप्पल मार दी थी. इसी परंपरा को धुलेंडी के दिन बछगांव के लोग दशकों से निभाते चले आ रहे हैं. वहीं दंडी स्वामी रामदेवानंद सरस्वती जी महाराज का कहना है कि बलदाऊ और कृष्ण घास और पत्तों से बनी पहनी पैर में धारण करते थे.

चप्पल मार होली मनाने के पीछे की दूसरी धारणा 

वहीं एक धारणा यह भी है कि गांव के बाहर ब्रजदास महाराज का मंदिर है. पहले महाराज वही रहा करते थे. होली के दिन गांव के किरोड़ी और चिरौंजी लाल वहां गए और उन्होंने महाराज की खड़ाऊ अपने सिर पर रख ली. इसके बाद उन दोनों की किस्मत ही खुल गई. बस वहीं से चप्पल मार होली की शुरुआत हो गई.

ब्रजमंडल में खेली जाती है कई तरह की होली

आपको बता दें इस गांव के अलावा ब्रजमंडल के कई गांव ऐसे हैं, जिनमें अलग-अलग तरीके की होली खेली जाती है.

  • लड्डूमार होली- बरसाना के लाडली जी मंदिर में लड्डू मार होली होती है, जिसमें श्रद्धालुओं के ऊपर लड्डुओं की बरसात होती है.

  • लट्ठमार होली- अगले दिन बरसाना में हुरियारिन हुरियारों पर लट्ठ बरसाती हैं, जिसे हुरियारे अपनी ढाल से रोकते हैं.

  • छड़ीमार होली- गोकुल में छड़ी मार होली का आयोजन किया जाता है. मान्यता है कि जब कान्हा गोपियों से शरारत करते थे, तब गोपियां उन्हें छड़ी मारा करती थीं. इसीलिए यहां छड़ी मार होली होती है.

  • कीचड़ होली- नौहझील में कीचड़ की होली खेली जाती है. इसे देखने के लिए भी तमाम देसी विदेशी पर्यटक गांव पहुंचते हैं.

रिपोर्ट- राघवेंद्र सिंह गहलोत, आगरा

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें